MP का गुलाबी गांव - काश भारत का हर गांव इसी रंग में रंग जाए

गुलाबी गांव से लौटकर पुष्पेन्द्र वैद्य

मध्यप्रदेश का गुलाबी गांव। नाम नवादपुरा जिला धार। आबादी करीब 12 सौ। यहां का हर मकान गुलाबी रंग में रंगा हुआ है। गुलाबी गांव की एक नहीं कई सारी खूबियां हैं। इस गांव ने बीते ढाई-तीन सालों में खुद अपने विकास की इबारत लिख कर पूरे देश में एक मिसाल कायम की है। गुलाबी गांव नवादपुरा ने देश के बडे शहरों को मात दे डाली। गांव में दाखिल होते ही यहां की रंगत दिखने लगती है। सडक के दोनों किनारों पर हरे-भरे पेड-पौधे सुकून देते हैं। दूर से ही टीलेनुमा पहाडी पर बने एक जैसे मकानों का चटख गुलाबी रंग। सडके चकाचक। कचरे का दूर-दूर तक नामो निशान नहीं। सीमेंट की सडकों के दोनों तरफ पेवर ब्लॉक। गांव से पहले ही आईएसओ पंचायत का साइन बोर्ड। यहां से थोडा आगे बढते ही दिखाई देता है स्कूल और आंगनवाडी। भवन सरकारी है मगर हुलिया किसी निजी स्कूल से भी बेहतर। हुलिया ही नहीं बच्चों और टीचर्स के ड्रेसकोड से लगाकर स्कूल के संसाधन और ड्रेसकोड भी किसी हाईप्रोफाईल स्कूल की तरह का। हैरानी तब हुई जब स्कूल के पास ही स्विमिंग पुल और आंगनवाडी में एयर कंडीशनर देखा। गांव की सडकों के दोनों तरफ बडे शहरों की तरह बगीचे और उनमें खिले फूल मानों आवाजाही करने वालों का सत्कार कर रहे हों। गांव की दीवारों पर महापुरुषों की तस्वीरें और उनके बारे में डिस्क्रिप्शन इसलिए उकेरा गया है ताकि गांव में देश प्रेम की भावना बनी रहे। गांव की खासियत यह है कि यहां कोई ऊंच-नीच, जात-पात नहीं बल्कि सबकी जाती और धर्म भारत माता है। गांव में पीने के पानी के लिए आरओ प्लांट लगाया गया है। कीमत 2 रुपए में 20 लीटर पानी। हर घर में एटीएम की तरह का कार्ड है। स्वाइप करते ही मशीन 20 लीटर पानी उगल देती है। गांव में साफ पानी की वजह से बीमारियां थम गई। गांव में चुनाव नहीं होता। पंचायत निर्विरोध चुनी जाती है। इससे मिलने वाली पुरस्कार की रकम से पिछली बार आरओ प्लांट लगवाया था। खूबियां यहीं खत्म नहीं होती। गांव नशा मुक्त हो चुका है। कुछ साल पहले तक गांव नशे का अड्डा हुआ करता था। पडोस के गांव वाले भी यहां शराब पीने आते थे। तीन सालों से ना तो यहां से कोई पुलिस थाने की सीढियां चढा और ना ही पुलिस ने कभी गांव में आमद दी। विवाद हुआ भी तो पंचायत बैठाकर सुलह-समझौते कर लिए जाते हैं। गुलाबी गांव का क्राईम ग्राफ जीरो है।

इस गांव की तकदीर ऐसे ही नहीं बदली। इसके पीछे पूरा क्रेडिट गांव के ही होनहार नौजवान को जाता है। नाम है कमल पेमाजी पटेल। गांव को स्वर्ग से सुंदर बनाने का सपना कमल के पिता पेमाजी का था लेकिन गांव बदलते इससे पहले ही वे चल बसे। सरपंच की सीट आरक्षित है। कमल सरपंच का चुनाव नहीं लड सकते थे। उन्होंने निर्विरोध चुनाव के जरिए गांव के ही एक व्यक्ति को सरपंच की जिम्मेदारी सौंपी। कमल पटेल ने पंचायत फंड के अलावा गांव के विकास के लिए सांवरिया ट्रस्ट बनाया। मंदिर में दान मिलने वाली रकम से कमल विकास कार्य करवाते हैं। खुद अपनी जेब से भी काफी सारा पैसा खर्च कर चुके हैं। दिन-रात जुनून की तरह गांव की कायाकल्प में लगे रहते हैं। गांव के लोग उनका कहा नहीं लांघते। कमल कहते हैं मकानों को गुलाबी रंग में रंगने का मकसद भेदभाव को मिटाकर एक समानता लाना है। गुलाबी रंग समृद्धता और शांति का प्रतीक भी है। कमल सौ गायों वाली गौशाला भी संचालित करते हैं। गायों को आर्गनिक खान-पान देते हैं। उनका अगला मकसद हर घर में गायों का पाल कर उनका गोबर और अन्य उत्पादों से गांव को पूर्ण जैविक बनाना है। इसके लिए दो से तीन साल की टाईम लिमिट भी तय कर ली गई है।

काश भारत का हर गांव इसी रंग में रंग जाए..........

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