लव जिहाद : हिंदुओं का खून खौलाने का एक और अभिक्रम

Approved by Srinivas on Fri, 11/27/2020 - 14:48

:: श्रीनिवास ::

बेशक यदि कोई आदमी इस नीयत से, अपनी पहचान छिपा कर प्रेम (असल में दिखावा और फरेब) करता है, फिर विवाह के लिए लड़की का धर्म बदलने की शर्त रखता है या जबरन ऐसा करता है, तो उसे अधार्मिक कृत्य ही कहा जायेगा.

आप बेरोजगारी, महंगाई, भूख, विस्थापन और कोरोना आदि का रोना रोते रहिये, धर्मान्धता फैलाने के लिए उनके पास एक से एक हथियार हैं, जो देश को बुनियादी मुद्दों से भटकाने के लिए कारगर हैं. ऐसा ही एक नया हथियार या शिगूफा है- लव जिहाद. उप्र की योगी सरकार ने इस पर एक अध्यादेश लाने का फैसला कर लिया है - अवैध धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश. गत 24 नवम्बर को कैबिनेट से इसे मंजूरी मिलने बाद यूपी सरकार ने कहा कि यह  'महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए जरूरी था!' बढ़िया जोक है, नहीं? क्योंकि  चंद 'भोले' या शातिर.लोगों के अलावा सभी जानते हैं कि इस कदम का उद्देश्य हिंदुओं का खून खौलाने के पुराने एजेंडे पर नये सिरे से अमल और हिंदू युवतियों को मुसलिम से प्रेम और विवाह करने से रोकना है.

ध्यान रहे, हिंदू लड़कियों का उनकी मर्जी के खिलाफ, बचपन में ही विवाह कर दिया जाये, इनको कोई परेशानी नहीं होती. हिंदू विधवाएं उपेक्षा की शिकार होकर नारकीय जीवन जीती रहें, यह इनकी चिंता का विषय नहीं है. किसी हिंदू युवती के साथ कोई या अनेक हिंदू मर्द कुछ भी करें,  इनको खास कष्ट नहीं होता. एक हिंदू लड़की के विजातीय हिंदू लड़के से भी विवाह करने पर जब उसके परिवार की कथित प्रतिष्ठा आहत हो जाती है; इस हद तक कि वे अपनी बहन और बेटी की हत्या तक कर देते हैं, वह कोई समस्या नहीं है! कोई हिंदू महिला दहेज के लिए प्रताड़ित हो या उसकी हत्या भी हो जाये, तो विशेष चिंता की बात नहीं है! कोई हिंदू मर्द किसी हिंदू युवती से झूठ बोल कर, शादी या कोई अन्य प्रलोभन देकर उसके साथ दुष्कर्म करे, वह इनके लिए एक ‘सामान्य’ अपराध है. कोई हिंदू युवक किसी अहिंदू युवती से अपना परिचय और धर्म छिपा कर विवाह कर ले, तो कोई बात नहीं. बस कोई हिंदू लड़की किसी मुसलिम लड़के से दोस्ती न करे, उससे विवाह न करे. स्वेच्छा से भी धर्मांतरण न करे. इनका मानना है कि कोई बालिग हिंदू लड़की भी किसी से प्रेम नहीं कर सकती. यह ‘अस्वाभाविक’ है. प्रकृति और कानून कुछ भी कहे, हम उसे ऐसा करने नहीं देंगे.

वैसे तो ये स्त्री-पुरुष के बीच सहज नैसर्गिक आकर्षण और प्रेम के ही खिलाफ हैं. ये मानते हैं कि विवाह का फैसला सिर्फ अभिभावक कर सकते हैं.  बालिग  युवक और युवती के बीच दोस्ती और उनका परस्पर सहमति से विवाह करने का फैसला इस जमात के अनुसार गलत और स्वेच्छाचार है. तभी तो इनके जत्थे  ‘वेलेंटाइन डे’ पर उत्पात करते हैं. प्रेमी जोड़ों को, कभी कभी एक साथ जा रहे भाई -बहन तक को प्रताड़ित करते हैं. तभी तो योगी सरकार ने बाकायदा एक ‘एंटी रोमियो’ फ़ोर्स ही बना दिया था. और कोई हिंदू लड़की मुसलिम से दोस्ती कर ले, यह इनके लिए एकदम असह्य है. उप्र के अवैध धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश का अघोषित उद्देश्य यही है.     

बेशक यदि कोई आदमी इस नीयत से, अपनी पहचान छिपा कर प्रेम (असल में दिखावा और फरेब) करता है, फिर विवाह के लिए लड़की का धर्म बदलने की शर्त रखता है या जबरन ऐसा करता है, तो उसे अधार्मिक कृत्य ही कहा जायेगा. कोई धर्म इसकी इजाजत नहीं देता. और वैसे भी इस तरह के अपराधों के लिए पहले से कानून बने हुए हैं. जाहिर है, ऐसी चंद अपवाद घटनाओं के बहाने एक नया कानून बनाने का मकसद 'महिलाओं को इंसाफ' दिलाना नहीं, ध्रुवीकरण की राजनीति करना है.

वैसे भी, महज विवाह करने के लिए स्वेच्छा से धर्मान्तरण करना आपको या मुझे कितना भी गलत या अनैतिक लगे, यह गैरकानूनी कैसे है?

बहुत पहले एक फिल्म  'अमर, अकबर एंथोनी’ आयी थी. नाम से ही जाहिर है कि इसमें मनोरंजन के साथ हिंदू, मुसलिम व ईसाई एकता का एक पैगाम भी थे. उसमें एक ही हिंदू परिवार के तीन भाई बचपन में बिछड़ गये थे, जो अलग अलग परिवार और परिवेश में पले-बढ़े. उसमें मुसलिम पात्र (ऋषि कपूर) की प्रेमिका का बाप एक  दरजी था- तैयब अली, जो इनके रिश्ते को पसंद नहीं करता था. हमेशा टांग अड़ाने का प्रयास करता था. फिल्म में उसके एक प्यार विरोधी रवैये का मजाक  उड़ाता एक गीत भी था- ‘तैयब अली प्यार के दुश्मन...’ 

तो यह 'तैयब अलियों' की जमात तो है ही. पर इससे भी आगे यह हिंदू-मुसलिम के बीच प्रेम और भाईचारे की विरोधी जमात है. यही इसकी यूएसपी है. यही इसकी पहचान भी है. इसे छोड़ देंगे, तो फिर इनकी प्रासंगिकता क्या रह जायेगी?   
  
अंत में- डॉ लोहिया की पुस्तक ‘भारत विभाजन’ के गुनहगार’ का एक उद्धरण :  ‘सामाजिक क्षेत्र में पूरी एकसानियत (मेलमिलाप/समरसता) विवाह से संबंधित होती है. मुझे यकीन है कि जब तक देश में होनेवाले सौ में से एक विवाह हिंदू और मुसलमान के बीच नहीं होगा, तब तक यह समस्या पूरी तौर पर नहीं सुलझेगी. यह हिंदू पद्धति की आतंरिक जातियों के बारे में भी सही है. परंतु एकसानियत के सैकड़ों और तरीके हैं, जैसे- नाम, भूषा, उत्सवों में संयुक्त रूप से भाग लेना, वाह्य आकृति, सहभोज और सर्वोपरि सार्वजानिक संगठनों में मिलीजुली सदस्यता, विश्वास और कर्म... यहां पर मैं कुछ धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों में आवश्यक परिवर्तनों की चर्चा नहीं करूंगा, पर इतना कहूँगा कि हिंदूवाद में जातिप्रथा का नाश इन सभी के लिए पहली शर्त है...’

मगर जिनकी राजनीति की बुनियाद ही हिंदू-मुसलिम वैमनस्य पर टिकी की हो, उनके लिए लोहिया जैसों की सीख का क्या अर्थ हो सकता है.

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