राहुल गांधी का मूढ़ा पटकना
हो सकता है, कांग्रेस जल्द ही नेतृत्व की समस्या का हल खोज ले. संभव है, जल्द ही गांधी/नेहरू परिवार से बाहर का कोई नेता कांग्रेस का अध्यक्ष बन जाये. और हो सकता है, यह पार्टी के हित में साबित हो. हालांकि यह इतना आसान नहीं होगा. यदि यह दांव उल्टा पड़ा, क्योंकि यह आशंका निराधार नहीं है कि देश भर के कांग्रेसी आसानी से नये नेतृत्व को स्वीकार कर लेंगे. तब पार्टी बिखर भी सकती है; और इसका श्रेय राहुल गांधी को भी जायेगा.
संसदीय चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी का कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना अप्रत्याशित नहीं था. पार्टी की विफलता के लिए अध्यक्ष अपनी नैतिक जवाबदेही स्वीकार कर पद छोड़ने की पेशकश करे, यह स्वाभाविक है. फिर अपने इस्तीफे पर अड़ कर उन्होंने अपनी दृढ़ता का परिचय दिया; बताया कि इस्तीफा कोई दिखावे के लिए नहीं दिया था, जैसा कि उनके विरोधी मजाक उड़ाते हुए कह रहे थे. मगर सवाल है कि जब पार्टी एकदम पस्तहाल हो, अपने सबसे बुरे दौर म़े हो, तब उनके इस्तीफे से पार्टी को मजबूती मिलेगी; या कि वह और रसातल को चली जायेगी? क्या राहुल गांधी ने इस सवाल पर विचार किया?