पेगासस केस में केंद्र सरकार को झटका! जवाब न मिलने पर SC ने बना दी जांच कमेटी

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नई दिल्ली: पेगासस जासूसी मामले में जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में केंद्र द्वारा कोई विशेष खंडन नहीं किया गया। इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा।

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बीजेपी के बंगाल चीफ रहे तथागत रॉय ने कैलाश विजयवर्गीय की तुलना कुत्ते से की

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार के बाद पार्टी के अंदर ही बवाल मचा हुआ है। भाजपा के कई विधायक पार्टी का साथ छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। अब पश्चिम बंगाल के पूर्व अध्यक्ष व मेघालय के पूर्व राज्यपाल रहे तथागत रॉय के ट्वीट ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। तथागत रॉय ने अपने एक ट्वीट में पश्चिम बंगाल भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की तुलना कुत्ते से करते हुए दोनों की फोटो का कोलाज बनाकर सोशल मीडिया पर साझा कर दिया।

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न्यायिक परिसरों में जजों के लिए बैठने की जगह नहीं, शौचालय और पेयजल सुविधाओं की भी कमी : सीजेआई रमना

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औरंगाबाद (महाराष्ट्र): भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमना ने शनिवार को देश में न्यायिक बुनियादी ढांचे पर प्रमुख चिंताओं को उजागर करते हुए कुछ चौंकाने वाली बातें कही। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि देश में लगभग 20 प्रतिशत न्यायिक अधिकारियों के पास बैठने के लिए उचित कोर्ट रूम (न्यायालय कक्ष) तक नहीं है।

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5जी तकनीक से आ सकता है जीवन में बड़ा बदलाव

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इंटरनेट अब जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। अगर इसकी गति धीमी या तेज होती है तो रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर पड़ता है। कल्पना करें कि इंटरनेट की स्पीड बहुत अधिक बढ़ जाए तो आम जन-जीवन पर उसका क्या-क्या असर या सकारात्मक बदलाव हो सकता है। हेल्थकेयर से लेकर यातायात तक और मनोरंजन से लेकर शिक्षा व्यवस्था तक, संचार से लेकर आरामदायक लाइफ स्टाइल तक, जीवन के हर पहलू में क्रांति देखने को मिल सकती है। ड्राइवरलेस कार की अवधारणा हो या ड्रोन द्वारा घर तक दवाईयां या पिज्ज़ा पहुंचाना, सब कुछ 5जी आधारित इंटरनेट सेवा से मुमिकन हो सकता है। ऐसा कई वर्षों पहले विज्ञान पर आधारित फिल्मों में ही देखने को मिल

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22% गिरी मोदी की लोकप्रियता : एक सर्वेक्षण

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एक सर्वे के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रेटिंग एक नए निचले स्तर पर आ गई है।  डेटा इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट के एक दर्जन वैश्विक नेताओं के एक सर्वे से पता चला है कि इस सप्ताह मोदी की कुल रेटिंग 63 प्रतिशत है, जो कि अगस्त 2019 में अमेरिकी फर्म द्वारा उनकी लोकप्रियता पर नज़र रखने के बाद से उनकी सबसे कम रेटिंग है। पीएम मोदी, जो 2014 में सत्ता में आए थे और 2019 में बड़े बहुमत के साथ फिर से चुने गए, ने लंबे समय से एक शक्तिशाली हिंदू राष्ट्रवादी नेता की छवि को बढ़ावा दिया है। लेकिन मॉर्निंग कंसल्ट ट्रैकर के अनुसार, भारत के COVID-19 मामले ढाई करोड़ से ऊपर हैं। इसने मोदी के समर्थन आध

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पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर घोषित किया उड़ीसा सरकार ने, मौत पर 15 लाख मिलेगा

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ओडिशा सरकार ने राज्य के पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर घोषित किया है। इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पत्रकार निर्बाध रूप से खबरें देकर और लोगों को कोरोना वायरस से संबंधित मुद्दों से अवगत कराकर राज्य की बहुत सेवा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘कोविड-19 के खिलाफ हमारी जंग में पत्रकारों का बहुत बड़ा सहयोग हैं।’

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मोदी के दीया जलाओ आह्वान का जलती चिताओं के साथ हो रहा समापन : गोवा कांग्रेस

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पणजी: कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को चिह्न्ति करने के लिए एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दीया जलाओ आह्वान का देश भर में जलती चिताओं के साथ समापन हो रहा है। यह बात गोवा कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने शनिवार को कही। गिरीश ने एक बयान में कहा, "विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोविड की वजह से जान गंवाने वाले सैकड़ों लोगों की चिता जलती हुई परेशान करने वाली तस्वीरें हैं। दूसरी तरफ, दाह संस्कार के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे सैकड़ों शवों को लेकर भी रिपोर्ट सामने आई हैं। यह दुखद स्थिति केवल इसलिए पैदा हुई, क्योंकि भाजपा सरकार ने आम आदमी के कल्याण की परवाह नहीं की।"

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बोधगया आंदोलन की यादें-3

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गया से मुंबई के सफर के दौरान मैं मणिमाला जी द्वारा कही पंक्ति, 'जो जमीन को जोते-बोये, वो जमीन का मालिक होये', याद कर रही थी और अपने गया के अनुभवों को मन में दोहरा रही थी. गया में जब हम लोग धान बो रहे थे और महिलाएं गाना गा रही थी, उस गाने की एक पंक्ति सुन कर मैंने उसका मतलब जानने की कोशिश की. पंक्ति थी - 'हमरे घरवा सुअर के बखोर हो किसनवां.'

बोधगया आंदोलन में महज चंद दिनों के लिए और एक कार्यक्रम में  शामिल होकर मुझे काफी गर्व हुआ. खास तौर पर यह जान कर कि इस ज़मीन के मालिक अब मज़दूर होंगे और फसल भी उनकी ही होगी. 

आईने भी नहीं थे उनके  पास! 

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बोधगया आंदोलन की यादें-2

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वहां से हम पिपरघट्टी के लिए निकले. मुझे ठीक से नहीं, पर इतना याद है कि पहले हम लोग ब्लॉक और वहां से गाँव गये, जहाँ एक और मीटिंग रात में होने वाली थी. मीटिंग में कारू जी भी थे. उनके अलावा मज़दूर किसान समिति के नेता मांझी (पूरा नाम याद नहीं) जी भी वहां मौजूद थे. मुझे उनके पास बैठ कर बातें करने का बहुत मन था, पर मुझे उनकी बोली-भाषा समझ नहीं आ रही थी.

मैं पटना पहुंच गयी. पटना से गया मेरी पहली बिना टिकट वाली यात्रा थी. टीटी आये और टिकट के लिए पूछा, तो हमने बताया- हम संघर्ष वाहिनी से हैं. यह सुन कर उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं को बिना टिकट के बैठने की इजाज़त दी. यह मेरे लिए एकदम अलग अनुभव था. मैं मन ही मन खुश हो रही थीं कि हमारे देश में आंदोलनकारियों को कितना सम्मान हासिल है, उन्हें कैसे छोड़ दिया जाता है. इसमें मुझे आंदोलन की मजबूती झलक रही थीं.

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बोधगया आंदोलन की यादें-1

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

उन दिनों मैं एमकॉम के पहले वर्ष में थी. चूंकि मैं संघर्ष वाहिनी में नयी थी. मुझे बहुत-सी जानकारी नहीं थी. पर मैं सभी कुछ जानना और सीखना चाहती थी. येरवदा जेल में जाने के कारण मुझे औरंगाबाद के सक्रिय सदस्यों की बैठक में शामिल किया गया.  वहां भी मेरे लिए सभी कुछ नया था. बहुत से लोग बिहार, खास कर बोधगया से भी आये थे. क्योंकि उन दिनों मेरी हिंदी बहुत कमज़ोर थी, तो जो भी चर्चा हो रही थी, वो मेरी समझ से परे थी. इसी कारण रात की मीटिंग में मैं ज़्यादा देर बैठी भी नहीं.

आजाद भारत के एक अद्भुत और सफल शांतिमय भूमि आंदोलन हुआ था बिहार (अविभाजित) के गया जिले बोधगया के शंकराचार्य मठ की अवैध जमींदारी के खिलाफ. आंदोलन का नेतृत्व किया था जेपी की प्रेरणा से उनके द्वारा गठित छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी ने. वाहिनी के पुराने साथी कार्यकर्ता अभी उस आंदोलन को अपने ढंग से याद कर रहे हैं. ये संस्मरण अपने आप में एक  इतिहास के जीवंत दस्तावेज हैं. हम उनमें कुछ को टुकड़ों में अपने पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे. उसी.आंदोलन से आकर्षित होकर सुदूर मुंबई से वाहिनी की चेतना नाम की एक युवती बोधगया पहुंची थी. शुरुआत हम उनके संस्मरण से कर रहे हैं.

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