आखिर कांग्रेस फिलहाल टूटने से बच गई। युवा और अनुभवी नेताओं के बीच बढ़ रही खाईं पाटने के लिए आखिर सोनिया गांधी को ‘स्वघोषित सन्यास’ के बावजूद कांग्रेस की कमान संभालनी पड़ी। फिलहाल यह तय नहीं है कि अंतरिम प्रबंध कितने समय के लिए है। सूत्रों के मुताबिक दो से छह महीने के अंदर नए अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। पार्टी के अनुभवी नेता इस फैसले में अपनी जीत देख रहे हैं। उनका मानना है कि सोनिया के सक्रिय होने से युवा नेताओं की मनमानी पर रोक लगेगी। सोनिया 1998 से 19 वर्षों तक अध्यक्ष रही हैं। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस ने को-दो बार केंद्र में और कई राज्यों में सरकार बनाई, लेकिन उनका यह भी दावा है कि यह मात्र अंतरिम प्रबंध है, अंतिम नहीं। इससे पार्टी का विभाजन कुछ समय के लिए थम गया हो, लेकिन मतभेद खत्म नहीं हुए हैं।
दरअसल, युवा और अनुभवी नेताओं के बीच मतभेदों से निपटने के लिए पार्टी ने नए अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया में फेरबदल किया। पार्टी के नियमों के अनुसार अध्यक्ष चुनने का अधिकार सिर्फ कार्यसमिति (सीडब्लूसी) को है, लेकिन शुक्रवार को इस दायरे को बढ़ाकर प्रदेश अध्यक्ष, विधानमंडल दल के नेता और प्रदेश प्रभारियों को भी इसमें शामिल कर लिया गया।
इनमें से अधिकतर को राहुल ने ही नियुक्त किया थी और इन लोगों से राहुल या उनके द्वारा नामित व्यक्ति का ही समर्थन करने की उम्मीद थी। हालांकि कार्यसमिति का यह फैसला राहुल गांधी की उस घोषणा को हवा में उड़ाने वाला है जो उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते समय की थी। तब राहुल ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कहा था कि नया अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति होगा।
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