प्रयागराज से तकरीबन 350 किलोमीटर दूर जीवराखन टोले की चौदह महिलाएं कुंभ मेले में मौनी अमावस्या का स्नान करने गईं थीं. लेकिन सिया देवी लौट कर घर नहीं आ सकीं.
जो महिलाएं जीवित लौट आई हैं, उनके चेहरे पर हादसे के निशान रह-रहकर उभर आते हैं और वो अब भी सदमे में हैं.
इस हादसे में जीवित बचीं सविता देवी के बेटे कहते हैं कि वो अब अपनी मां को कभी किसी मेले में जाने नहीं देंगे. विशाल कुमार कहते हैं, ” हमारी मम्मी वापस आ गई. समझिए पुनर्जन्म हो गया.”
समूह में प्रयागराज गईं महिलाओं में रिंकू भी हैं. उनके चेहरे पर बस ख़ामोशी है, घर की दूसरी औरतों की तरह वो रो नहीं रहीं.
ऐसा लगता है कि हादसे की चश्मदीद होने के चलते उन्होंने मौत को बहुत करीब से देखा है और स्वीकार कर लिया है.
रिंकू सिया देवी की बहू हैं.
घटना के बारे में वो बीबीसी से कहती हैं, “मैं अपनी सास के साथ संगम घाट जा रही थी, तभी दूसरी तरफ से बहुत भीड़ आई और हम लोग गिर गए. मैं और मेरी सास कई लोगों के नीचे दब गए.”
“किसी तरह बाहर निकली तो मैंने अपने टोले की कई दूसरी औरतों को निकाला, लेकिन जब मैं सास के पास पहुंची तो वो मर चुकी थीं. घंटों बाद पुलिस आई तो हम लोग एम्बुलेंस से अस्पताल गए. लेकिन अस्पताल में भी लोग हमें भगाते थे. मैंने उनसे कहा कि बिना बॉडी लिए वापस नहीं जाउंगी.”
रिंकू देवी को 29 जनवरी की दोपहर अपनी सास का पार्थिव शरीर पोस्टमार्टम के बाद मिला. रिंकू बताती हैं, “मुझे 15,000 रुपये दिए और कहा जाओ. मैं पहली बार कुंभ गई थी अब दोबारा कभी नहीं जाउंगी.”
हालांकि, रिंकू देवी से जब हमने ये जानना चाहा कि उन्हें 15,000 रुपये किसने दिए तो उनका कहना है कि उन्हें नाम याद नहीं. सिया देवी का पार्थिव शरीर एक गाड़ी से उनके आवास तक पहुंचाया गया था.
सिया देवी के चार बेटे और चार बेटियां हैं. मज़दूर परिवार से ताल्लुक रखनेवाली सिया की एक पासपोर्ट साइज़ धुंधली तस्वीर ही अब उनके परिवार वालों के पास है. साथ ही महाकुंभ प्रयागराज के केन्द्रीय चिकित्सालय का एक पर्चा है जिस पर सिर्फ़ ‘ब्रॉट डेड’ यानी मृत लाया गया लिखा हुआ है.
सिया देवी और अस्पताल का पर्चा
इमेज कैप्शन,सिया देवी के परिवार के पास कुंभ के अस्पताल का एक पर्चा है, जिसमें ‘ब्रॉट डेड’ लिखा हुआ है
सिया के घर से कुछ दूरी पर ही जानकी देवी खटिया पर लेटी हैं. उनके आसपास बच्चों और महिलाओं की भीड़ जमा है. जानकी के पास खड़ी औरत कहती हैं, “सूखे पत्ते की तरह थरथराती रहती हैं. कई इंजेक्शन लगे हैं तब जाकर होश में आई हैं.”
जानकी देवी के पूरे शरीर पर जख़्मों के गहरे निशान हैं. थोड़ा सा भी शरीर इधर-उधर करने पर वो दर्द से कराह उठती हैं. जानकी, सिया देवी के साथ मौनी अमावस्या के स्नान के लिए कुंभ गईं थीं.
70 साल की ये महिला अपने पूरे जीवनकाल में कभी मनेर से बाहर भी नहीं गईं थीं. उनके पास कोई संपर्क का ज़रिया या फोन भी नहीं था.
उनकी बहु मौनी देवी बताती हैं, “हम लोगों को रात दो बजे भगदड़ का पता चला. मन बेचैन हो गया. सुबह किसी भैया ने फ़ोन किया और बताया कि इनको स्टेशन पर बैठा दे रहे हैं. इनके पास पर्स में घर का मोबाइल नंबर था. फिर पापा इनको जाकर ले आए. हमारे लिए तो वो भैया देवता थे. बड़े- बुजुर्ग कहते हैं कि प्रयागराज धाम है, लेकिन वहां तो मर्डर हो रहा. सब चैनल मोबाइल में यही दिखा रहे हैं.”
जानकी और सिया से कुछ दूरी पर अनीता देवी, सविता देवी, चंद्रा देवी का घर है. ये महिलाएं भी पहली बार कुंभ गईं थीं. ये सभी 27 जनवरी की सुबह 11 बजे अपने टोले से निकली थीं और स्थानीय दानापुर स्टेशन से कुंभ स्पेशल ट्रेन पर बैठी थीं.
ये महिलाएं बताती हैं, “ट्रेन में आना-जाना फ़्री था. मर्दाना से पैसा मांगना नहीं था. इसलिए हम लोग संघतिया (समूह) बनाकर चले गए. अकेले जाना होता तो नहीं जाते.”
अनीता देवी अपनी 12 साल की बच्ची के सहारे पूरा घर छोड़कर मौनी अमावस्या के स्नान के लिए गईं थीं. उनके पति मदन राय दिल्ली में रहकर दूध से जुड़ा काम करते हैं.
वो बताती हैं, “सब बोले स्वर्ग मिलता है तो हम भी चले गए. लेकिन घाट के पास पहुंचते उससे पहले ही भगदड़ हो गई. हम एक जवान आदमी का कॉलर पकड़कर उससे विनती करने लगे कि हमको निकाल दो. वो आदमी हमको झिटकता था, लेकिन हमने कॉलर नहीं छोड़ा.”
“उसने मेरा हाथ पकड़कर घसीटते हुए मुझे बाहर निकाल दिया. लेकिन जब बाहर निकले तो देखा बदन पर कपड़े नहीं थे. 20-30 लोगों से कपड़ा मांगा लेकिन किसी ने कपड़ा नहीं दिया. आखिर में एक औरत तरस खाई. मेरा झोला कपड़ा सब खो गया.”
सविता देवी तो अपने घर से चोरी छिपे कुंभ के लिए निकल गईं थीं. उनके बेटे विशाल कुमार बताते हैं, “मैं ट्यूशन गया था तभी मम्मी निकल गईं. अगर कुछ हो जाता तो क्या होता. ये मोबाइल लेकर गईं थीं, लेकिन उसका चार्जर नहीं था. हम पांच भाई बहन रोते थे कि मम्मी मर गईं.”
सविता देवी की जान पुलिसवालों ने बचाई.
सविता बताती हैं, “भगदड़ मची तो हम पुलिस वाले से विनती किए. उसने कहा आंटी आप मेरा बैग पकड़े रहिए. उसी बैग के सहारे हम भीड़ से निकल पाए. गला दबता था, ऐसा लगता था मर जाएंगे. अपने बच्चों से दोबारा मिलेंगें या नहीं. हाथ खड़ा करके भीड़ में चलते रहे, पूरा देह इतना दर्द कर रहा कि उसको बताना मुश्किल है.”
सविता बताती हैं, “भीड़ से निकले तो 30-35 किलोमीटर पैदल चले, तब जाकर स्टेशन पहुंचे. वहां से पहले मुगलसराय लाया गया और मुगलसराय में दूसरी गाड़ी मिली जो पटना लाई. यहां पहुंचे तो घर में बच्चे, भाई, बहन सब रो रहे थे कि मम्मी मर गईं. लेकिन हम बच गए थे. अब किसी मेले में नहीं जाएगें. अपने मायका-ससुराल सभी से फोन करके बोल दिया है कोई कुंभ में नहीं जाना.”
सविता देवी सिर्फ़ शारीरिक तौर पर ही नहीं बल्कि इस घटना के बाद मानसिक तौर पर भी परेशान हैं. उनके बेटे विशाल बताते हैं, “मम्मी रह रहकर रोती हैं. डर से सिहर जाती हैं. हम लोग अकेला नहीं छोड़ रहे लेकिन फिर भी रात में जाग जाती हैं और रोना शुरू कर देती हैं.”
इन महिलाओं से बातचीत में सरकार और प्रशासन के प्रति गुस्सा भी ज़ाहिर होता है. कुंभ गईं चंद्रा देवी कहती हैं, “ऐसा लगता था जैसे लाश पर भागदौड़ हो रही है. जो जितना मजबूत था वो अपने से कमजोर आदमी को दबा रहा था. सरकार नाम की चीज़ ही नज़र नहीं आ रही थी. सरकार बुलाया था हम लोगों को लेकिन जब हम लोगों की जान पर बनी तो पुलिस प्रशासन ने भी कुछ नहीं किया.”
‘हम ज़िंदा थे, लेकिन सिपाही बोला इसे गंगा में बहा दो’
अनीता देवी
इमेज कैप्शन,अनीता देवी अपनी 12 साल की बच्ची के सहारे पूरा घर छोड़कर कुंभ गईं थीं
जीवराखन टोला से थोड़ी दूरी पर भूधर टोला है. यहां की पांच महिलाएं भी कुंभ स्नान के लिए गईं थीं. माधुरी देवी उनमें से एक थी. उनके पांव पर चोट के काले निशान साफ देखे जा सकते हैं.
वो बताती हैं, “हम अपने पति से लड़-झगड़कर चले गए. जाना फ़्री था तो कोई दिक्कत भी नहीं थी. लेकिन वहां जाकर भगदड़ में फंस गए. उस भगदड़ में मेरी पायल, बिछिया सब गुम गई. किसी तरह से जान बच गई.”
इस टोले की तीन सगी बहनें भी कुंभ गईं थीं. सीता देवी, पनपतिया देवी और भगवनिया देवी. ये तीनों बहनें भी कुंभ में बिछड़ गईं थीं. हालांकि शुक्रवार दोपहर तक ये सभी वापस लौट आईं.
भगवनिया देवी बीबीसी से कहती हैं, “भगदड़ में फंसने के बाद कोई हित (समाज का आदमी) हमको नहीं दिखाई दे रहा था. हम सबसे हाथ जोड़ रहे थे, लेकिन लोग मेरा बैग छीन लेना चाहते थे. बैग नहीं देने पर एक आदमी मुझको छाती पर मारा. हम बेसुध हो गए.”
वो बताती हैं, “थोड़ा होश आया तो सिपाही को बोलते सुना कि ये मर गई है, इसको गंगा में बहा दो. इतने में एक औरत ने सिपाही को डांटा कि तुम्हारे घर में मां, बहन नहीं है क्या. उस औरत ने मेरे मुंह पर पानी डाला तब हम होश में आए. और लोगों से विनती करते-करते आज (शुक्रवार) सुबह लौटे हैं.”
बिहार में स्थानीय अख़बारों में कई लोगों के लापता होने की भी ख़बर है. सरकार ने इस हादसे में मृतकों के परिजनों को दो लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये की मदद देने की घोषणा की है. (साभार: बीबीसी)