शालडूंगरी का सपना घायल भर हुआ है, लड़ाई अभी बाकी है...
लेखक मनोज भक्त पत्रकार रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक ही मीडिया के अंदर के हालात, पत्रकारों व संपादकों के चरित्र, उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा और राजनीतिक पक्षधरता आदि का उपन्यास में बहुत जीवंत चित्रण हुआ है. राजनीति- पक्ष और विपक्ष- में चलने वाली गोलबंदी और साजिशों का रोचक ढंग से खुलासा भी बखूबी हुआ है.
झारखंड के भूगोल, ग्रामीण इलाकों की बनावट, इसकी भिन्न जनजातियों के जीवन और अंदाज, उनकी बोली आदि पर बारीक पकड़ उपन्यास को यथार्थ के धरातल पर खड़ा करता है. टाटा/ जमशेदपुर शहर की संरचना और वहां के ट्रेड यूनियन नेताओं के अंदाज की भी खासी जानकारी लेखक को है, यह साफ दिखता है.