सुकमा-बीजापुर इलाके का अकेला आदिवासी चेहरा नक्‍सली कमान्‍डर हिड़मा फर्राटे से अंग्रेजी बोलता है!

मीडिया में आयी चर्चा से पता चलता है कि हिड़मा नक्सलियों का आदिवासी चेहरा है। दंडकारण्य इलाके में हिड़मा को छोड़ बाकी सभी नक्सली लीडर आंध्रप्रदेश या अन्य प्रदेशों के हैं। हिड़मा अकेला ऐसा स्थानीय आदिवासी है जिसे कमांडर रैंक मिला है और सेंट्रल कमेटी का सदस्य भी बनाया गया है। हिड़मा ऐसा नक्सली लीडर है जो सबसे कुख्यात है पर उसके बार में फोर्स को कोई खास जानकारी नहीं है। उसकी कुछ तस्वीरें मीडिया में आती रही हैं। एक तस्‍वीर आप यहां देख सकते हैं। 

अब तक खुफिया सूत्रों ने जो जानकारी जुटाई है उसके मुताबिक माड़वी हिड़मा सुकमा जिले के पुवर्ती गांव का रहने वाला है। पुवर्ती जगरगुंडा इलाके का गांव है। जगरगुंडा तक पहुंचना आम आदमी के लिए वैसे भी बेहद दुरूह काम रहा है। पुवर्ती जगरगुंडा से 22 किमी दूर दक्षिण में घने जंगलों में बसा एक गांव है। 2005 के बाद इस गांव में स्कूल नहीं लगा है। यहां नक्सलियों ने अपना तालाब बना रखा है जिसमें मछली पालन होता है।

सामूहिक कृषि होती है और नक्सलियों की जनता सरकार के नियम कायदे यहां चलते हैं। ऐसे माहौल में पले बढ़े हिड़मा उर्फ देवा उर्फ संतोष को नक्सली तो बनना ही था। उसने 10वीं तक पढ़ाई की है। बताया जाता है कि वह नाटे कद का दुबला-पतला आदमी है। पुलिस अफसरों के मुताबिक उसके बाएं हाथ की एक उंगली गायब है यही उसकी पहचान है। 2019 में अफवाह उड़ी कि हिड़मा को मार गिराया गया है। हालांकि हिड़मा अब भी फोर्स के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है।

हिड़मा मीडिया से नहीं मिलता। बातचीत के दौरान वह एक नोटबुक हाथ में रखता है जिसमें नोट्स लिखता चलता है। दसवीं तक पढ़ाई करने के बावजूद नक्सल संगठन में आगे बढ़ने के लिए उसने अध्ययन जारी रखा। अब वह अंग्रेजी की किताबें पढ़ लेता है। उसके साथी रहे नक्सली बताते हैं कि उसने सिर्फ दो साल में अंग्रेजी सीख ली। अब फर्राटे से अंग्रेजी बोलता है। बस्तर के स्थानीय आदिवासी नक्सल संगठन में लड़ाके ही बनते हैं पर हिड़मा ने अपनी प्रतिभा के दम पर कमांडर का रैंक हासिल कर लिया। उसे बड़ा रणनीतिकार माना जाता है।

उसकी उम्र कहीं 30 तो कहीं 36 या 50 बताई जाती है। उसके बारे में जानकारी इतनी कम है कि दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। वर्ष 2013 से सभी बड़ी घटनाओं का वही मास्टर माइंड रहा है। वह सुकमा-बीजापुर इलाके में स्थित नक्सलियों की बटालियन वन का कमांडर है। 2017 में उसे सेंट्रल कमेटी में जगह मिली। उसके परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

हिड़मा 1990 में नक्सल संगठन में शामिल हुआ और जल्द ही उसे एरिया कमेटी का कमांडर बना दिया गया। 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या में वह शामिल रहा। 2013 में झीरम घाट में कांग्रेस के काफिले पर हमला हुआ जिसमें 31 नेता और फोर्स के लोग मारे गए। इस घटना का नेतृत्वकर्ता उसे ही माना जाता है। 2017 में बुरकापाल में 25 सीआरपीएफ जवानों की हत्या में भी उसी का हाथ रहा। वह एके 47 रायफल लेकर चलता है और चार चक्रों के सुरक्षा घेरे में रहता है। उसे सबसे कम उम्र का सेंट्रल कमेटी सदस्य बताया जाता है।

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