नई दिल्ली: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा है कि सबरीमाला पर सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ आंदोलन लोकसभा चुनाव से पहले देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भारतीय स्तर के गेम प्लान का हिस्सा है। माकपा के समाचारपत्र ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक’ के संपादकीय के अनुसार, “मोदी सरकार हर क्षेत्र में विफल रही है और लोकसभा चुनाव में अब केवल छह महीने दूर है, ऐसे में भाजपा और आरएसएस ने सांप्रदायिक और विभाजनकारी मुद्दों को पुनर्जीवित करना शुरू कर दिया है, क्योंकि उसके पास धोखा खाई हुई जनता को खुश करने के लिए कुछ भी नहीं है।”
माकपा ने कहा, “इनमें केंद्रीय मुद्दा अयोध्या में राम मंदिर है।”
संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा, आरएसएस और संबंद्धित समूहों का उद्देश्य हिंसा को उकसाना और सबरीमाला मंदिर परिसर में तनाव पैदा करना है, मगर इसका दोष माकपा के नेतृत्व वाली केरल सरकार पर डालना है।
संपादकीय में केरल भाजपा अध्यक्ष श्रीधरन पिल्लई का संदर्भ लेते हुए कहा गया है कि उनका संघर्ष कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ था, न कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के लिए।
माकपा ने कहा कि केरल सरकार ने केवल कुछ आपराधिक तत्वों सहित भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं के खिलाफ काम किया था जो मंदिर परिसर पर अपना नियंत्रण रखना चाहते थे।
संपादकीय के अनुसार, “मंदिर में प्रार्थना करने वाले श्रद्धालुओं के लिए कोई बाधा नहीं थी।”
लेकिन 17 नवंबर को भाजपा और अन्य समूहों द्वारा बुलाए गए बंद से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को परेशानी हुई जो राज्य के बाहर से सबरीमाला तीर्थस्थल पर आए थे।