14 मई 2019 को भारतीय भुइयां विकास परिषद् के दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश भुइयां को पुलिस ने गढ़वा ज़िला के धुरकी प्रखंड के भंडार गाँव से उनके घर से गिरफ्तार कर ले गयी। इस दौरान जब परिवार के सदस्यों ने पुलिस से पूछा कि, वे नरेश को क्यों और कहाँ ले जा रहे हैं, तो पुलिस ने कहा कि वे उसे कुछ पूछताछ के लिए नगर थाना ले जा रहे हैं और जल्द ही वापस भेज देंगे। जब नरेश 15 मई की शाम तक घर वापस नही लौटें, तो परिवार के सदस्य उनसे मिलने के लिए नगर पुलिस स्टेशन गए, लेकिन नगर थाना की पुलिस ने परिजनों को नरेश से मिलने नही दिया। गिरफ़्तारी के कई दिनों तक उन्हें कोर्ट में भी पेश नहीं किया गया। हालाँकि अभी तक FIR की प्रति नहीं मिली है, लेकिन ऐसी सुचना मिल रही है कि स्थानीय पुलिस द्वारा नरेश राम पर माओवाद व अन्य फ़र्ज़ी आरोप लगाया गया है। यह भी सुचना मिली है कि पुलिस द्वारा नरेश को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
नरेश भुइयां वर्ष 2009 से ही “भारतीय भुईयां विकास परिषद्” के सदस्य हैं, जो इस क्षेत्र में भुईयां, दलित और आदिवासियों के अधिकारों के लिए आंदोलन करते रहे हैं। वे आदिम जनजाति परिषद्, विस्थापन विरोधी जन विकास मंच, भारतीय भुईयां विकास परिषद जेसे जन संगठनों में एक दशक से आदिम जनजातियों, आदिवासियों, दलितों के हक के लिए संघर्षरत रहे है। आदिम जनजातियों को दिये जाने वाले अनाज वितरण में गड़बड़ी, बिरसा आवास का घोटाला, मानव तस्करी के मामले, आठवीं व दशवीं पास आदिम जनजाति की सीधी नौकरी में बहाली आदि मुद्दों पर संघर्ष में नरेश राम ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है।
यह गौर करने की बात है कि हाल के दिनों में नरेश मंडल डैम के विरोध में खड़े डूब क्षेत्र के दलित और आदिवासियों के साथ उनके संघर्ष में शामिल थे। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तरी कोयल नदी पर मंडल बांध परियोजना के लिए 5 जनवरी, 2019 को ऑनलाइन आधारशिला रखी। यह परियोजना आसपास के लगभग 46 गांवों को जलमग्न कर देगी एवं लाखों पेड़ कटेंगे। इस प्रस्तावित परियोजना से दलित व आदिम जनजातियों का घर से बेघर होना एवं पर्यावरण प्रदूषण में बढ़ोतरी निश्चित है। इन खतरों को भाप इन 46 गांवों के निवासी जो अधिकांश दलित व आदिवासी हैं, परियोजना का विरोध कर रहे हैं।
नरेश भुइयां को फ़र्ज़ी आरोप पर गिरफ्तार किया जाना मंडल डैम के विरुद्ध लोगों के संघर्ष को कमज़ोर करने की कोशिश है। यह राज्य के भाजपा सरकार के जन विरोधी रवैया का एक और उदहारण है। झारखंड में 6000 से अधिक दलित-आदिवासी जेलों में विचारधीन कैदी के रूप में सालों से बंद है। इनमें से अनेक पर माओवाद का फ़र्ज़ी आरोप लगाया गया है। अधिकांश लोगों के विरुद्ध पुलिस ने सबूत देने में नाकामयाब है। यह भी गौर करने की बात है कि पिछले पांच सालों में राज्य सरकार ने कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह तक के नाम पर फ़र्ज़ी प्राथमिकी दर्ज की है।
झारखंड जनाधिकार महासभा नरेश भुइयां के गैर-कानूनी गिरफ़्तारी की कड़ी निंदा करता है एवं झारखंड सरकार से माँग करता है कि : उपर्युक्त घटना की तत्काल, निस्पक्ष जाँच का आदेश दिया जाए और नरेश राम और उनके परिवार के सदस्यों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक अखंडता सुनिस्चित की जाए। जेल में लम्बे समय से बंद विचारधीन कैदियों की तुरंत रिहाई की जाए। एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का फ़र्ज़ी आरोपों के माध्यम से दमन तुरंत रोका जाए।