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पीवी सिंधु ने रचा इतिहास, बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय बनी

मात्र 24 साल की उम्र में पीवी सिंधु ने भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया। 2016 रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली सिंधु ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहली बार गोल्ड पर भी कब्ज़ा जमा लिया। 

अपनी मां के जन्मदिन के दिन सिंधु ने अपनी प्रतिद्वंद्वी जापान की स्टार खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को सीधे सेटों में हरा दिया। 2017 में 110 मिनट तक चले फाइनल मुकाबले में ओकुहारा से हारने वाली सिंधु ने 2 साल बाद मात्र 38 मिनट में ही इस बार खेल खत्म कर दिया। वर्ल्ड रैंकिंग में पांचवें स्थान की सिंधु ने चौथे रैंक वाली ओकुहारा को पूरे गेम में एक बार भी वापसी का मौका नहीं दिया।  सिंधु ने सीधे सेटों में 21-7 और 21-7 से ओकुहारा को शिकस्त दी। 

इससे पहले सिंधु ने 2013 और 2014 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य तथा 2017 और 2018 में रजत पदक जीता था। लेकिन इस बार गोल्ड जीतने के साथ ही सिंधु जहां वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं वहीं पांच वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडल के साथ उन्होंने चीन की महान खिलाड़ी झेंग निंग की भी बराबरी कर ली।

पुलेला गोपीचंद के मार्गदर्शन में सिंधु खास तरह से तैयारियां करती हैं। खाने-पीने की बहुत शौकीन सिंधु अपनी पसंदीदा आइसक्रीम और बिरयानी को भी छोड़ चुकी हैं।  फिटनेस के लिए सिंधु ने इन सभी चीजों से दूरी बना ली है।

सिंधु की ताकत: पीवी सिंधु का खेल देखने पर पता चलता है कि उनका सबसे बड़ा पक्ष है उनका ‘नैचुरली टैलेंटेड’ खिलाड़ी होना। शारीरिक बनावट के लिहाज से भी वो शानदार एथलीट हैं। 5 फुट 10 इंच की लम्बाई वाली सिंधु बैडमिंटन कोर्ट में दमदार शॉट लगाने से लेकर कोर्ट को कवर करने तक में माहिर हैं। 

मानसिक तौर पर भी सिंधु बहुत मजबूत हैं और उनका बेखौफ होना उनकी सबसे बड़ी खूबी है। उन्हें इस बात से फर्क ही नहीं पड़ता है कि कोर्ट में उनके सामने कौन है। वे हमेशा अपना स्वाभाविक खेल खेलती हैं। सिंधु को भी इस बात की परवाह कम ही रहती है कि कोर्ट में दूसरी तरफ उनके सामने कौन है। 

वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए की खास तैयारी: लगातार दो बार से वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में हार जाने वाली सिंधु ने इस बार खास तैयारी की। उन्होंने चैंपियनशिप के लिए कई दूसरे टूर्नामेंटों से अपना नाम वापस ले लिया। सिंधु ने अपनी कमियों पर काम करते हुए लगातार उन्हें मजबूत किया और वर्ल्ड चैंपियनशिप में जबरदस्त शुरुआत की। सेमीफाइनल में जीत के बाद सिंधु ने कहा ‘अभी मैं संतुष्ट नहीं हूं और फाइनल में हार जाने का दाग धोना चाहती हूं। 

कठिन रहा है सिंधु का सफर: ये कहानी पीवी सिंधु के ओलंपिक मेडल जीतने के बहुत पहले की है। तब बहुत कम ही लोग उन्हें जानते थे। करीब 8 साल बीत गए होंगे। हैदराबाद की पुलेला गोपीचंद एकेडमी की बात है। अभी 6 भी नहीं बजे थे। एक पतली दुबली लंबी सी लड़की वहां पहुंची। उस लड़की ने एकेडमी के बड़े से हॉल में आने के बाद अपनी किट रखी। 

एक सेकेंड की देरी किए बिना भी उसने दौड़कर कोर्ट के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। ऐसा लगा कि उसके शरीर में कोई मशीन लगी है तो एकेडमी के उस हॉल में घुसते ही ऑन हो जाती है। उसके बाद पीवी सिंधु ने रैकेट थामा और प्रैक्टिस शुरू हो गई। उस हॉल में करीब एक दर्जन खिलाड़ी और भी खेल रहे थे। लेकिन बीच-बीच में हर कोई पीवी को देख लेता था। 

ऐसा इसलिए क्योंकि उसके चेहरे पर एक स्वाभाविक मुस्कान थी। जो पसीना बहा रहे हर खिलाड़ी को अच्छी लगती थी। पीवी सिंधु के चेहरे पर वो शायद अपने हर शॉट के बाद अपनी ताकत और कमजोरी को समझने की हंसी। उसी रोज पहली बार मुझे कोच गोपीचंद ने बताया था कि वो हर सुबह 50 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर से उनकी एकेडमी में आती रही हैं।

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