मैने श्रीमती इंदिरा गांधी को सन् 1967 में रावर्ट्सगंज के रामलीला मैदान में भुक्का फाड़(फफक कर) रोते हुए देखा था।उस समय सोनभद्र मिर्जापुर जिले का दक्षिणांचल कहा जाता था। भीषण अकाल पड़ा था ।भुखमरी फैली थी। मैदान में हजारों नंगे-भूखे आदिवासी बैठे थे।खादी की सफेद साड़ी पहनी प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी किनारे से पैदल आयीं ।उन्होंने इशारे से सुरक्षाकर्मियों को दूर रहने को कहा।भीड़ में भीतर घुस गयीं।वे भूखे-नंगे आदिवासियों के बीच अकेली थीं।जब आदिवासियों को ज्ञात हूआ तब उन्होंने श्रीमती गांधी का पैर छान(पकड़) लिया।अब वे बाहर निकलने के लिये अपने हाथ से अपने पैर छुड़ाने का प्रयास कर रही थीं।उन्होंने एक बार फिर इशारे से सुरक्षा कर्मियों को दूर रहने को कहा।पांच मिनट तक प्रयास करके वे बाहर निकलीं।साड़ी के आंचल से मुंह ढंक कर रोने लगीं ।वे फफक कर असहाय आदिवासी की भांति रो रहीं थीं।उनके पास सिर्फ मैं खड़ा था।श्रीमती गांधी को इस तरह रोते देखकर मेरी आंखें भी नम हो गयीं।यहां से वापस लौटने के बाद उन्होंने रेलगाड़ी से अमेरिकी दलिया, दूध का पाउडर और पीने का पानी भेजा।गांव-गांव में मुफ्त भोजनालय खुल गये।भुखमरी पर नियंत्रण कर लिया गया।
एक बार श्रीमती गांधी ने कहा था कि ‘अगले जन्म में मैं किसी आदिवासी के घर जन्म लेना चाहूंगी’।
पं. जवाहर लाल नेहरू की पंचशील नीति और उनकी पुस्तक ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ के बारे में लोग जानते हैं लेकिन यह कम ललोग जानते हैं कि वे एक मानवशास्त्री भी थे।देश के जनजातियों के लिये नीति बनाने के निमित्त ब्रिटिश और भारतीय मानव -वैज्ञानिकों ने गंभीर विचार-विमर्श किया । इनमें ठक्कर बापा, मजुमदार और जवाहरलाल नेहरू प्रमुख भारतीय थे।आरजादी के बाद भारत की जनजातियों के लिये
जो नीति बनी उसे नेहरू की मैत्रीपूर्ण नीति, आदिवासी- पंचशील या नेहरू अभिवृत्ति कहते हैं लेकिन यह नीति कभी पूरी तरह लागू नहीं की गयी।
अभी हाल में संसद का बजट सत्र शुरू होने से पहले देश की माननीया राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद को संबोधित किया।
मैं भी उनका भाषण सुन रहा था।धाराप्रवाह हिंदी में वे बोल रही थीं। मैने जीवन के पचास साल आदिवासियों के साथ और आदिवासियों के बीच काम करने के बाद उनकी प्रकृति- संस्कृति का प्रत्यक्ष अनुभव किया, उनसे कठिन परिस्थितियों में जीना सीखा।उनके भाषण के बाद पत्रकारों ने कांग्रेस के सांसद, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से प्रतिक्रिया जाननी चाही तब बोले-‘नथिंग…बोरिंग’! और उनकी मां राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति को ‘ पुअर’ कहा।पुअर का अर्थ हीन, तुच्छ ,बेचारी होता है।शायद सोनिया जी सांवली स्त्री को राष्ट्रपति पद पर नहीं सहन कर सकीं या उनकी कुंठा ही व्यक्त हो गयी।उनका वक्तव्य राष्ट्रपति के मान-सम्मान की परंपरा,वाणी की स्वतंत्रता, की कोमल -मृदुल भावनाओं,संवैधानिक दायित्वों और इंदिरा गांधी ,जवाहर लाल नेहरू के विचारों का भी अपमान है।इससे माननीया राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के मान-सम्मान पर तनिक भी आंच नहीं आयेगी। वे शालीन, मृदुल, सुशिक्षित ,सौम्य और राष्ट्र -राज्य की सबसे सबल प्रथम नागरिक हैं।उनकी गरिमा, विनम्रता और शक्तिमत्ता को प्रणाम्!जयहिंद!!
शब्द: नरेंद्र नीरव /छाया: फेसबुक से साभार
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