यूक्रेन का अस्तित्व खतरे में है। अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों से लगता है कि साम्राज्यवादी ताकतें यूक्रेन को बांट कर खत्म कर देना चाहती हैं। यूक्रेन युद्ध के शुरुआत की वजह खनिज संपदा थी, यूक्रेन में शांति की बात भी खनिज संपदा पर अटक गई है। ऐसे में संसाधनों पर समुदाय के हक के विमर्श को इस वैश्विक परिघटना से जोड़ कर देखा जा सकता है।
खनिज के मामले में यूक्रेन और झारखंड में समानता
यूक्रेन झारखंड से लगभग 7 गुना बड़ा है। दोनों की आबादी लगभग समान है। यूरोप में सबसे ज्यादा खनिज यूक्रेन में है। भारत में सबसे ज्यादा खनिज झारखंड में है।यूक्रेन के लगभग 25% क्षेत्र में खनिज संपदा है जबकि झारखंड के लगभग 40% क्षेत्र में खनिज संपदा है। यूक्रेन के पास यूरोप का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार है झारखंड में भी भारत का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार है। यूक्रेन के पास 34 अरब टन कोयला है। झारखंड में लगभग 80 अरब टन कोयले का भंडार है। यूक्रेन के पास 30 अरब टन लौह अयस्क का विशाल भंडार है, जबकि झारखंड में लगभग 5 अरब टन लौह अयस्क हैंl यूक्रेन में दुनिया का 20% ग्रेफाइट है,झारखंड के पास भी सीमित मात्रा में ग्रेफाइट है। कुल मिलाकर दोनों क्षेत्र अपनी खनिज संपदा के कारण रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
यूक्रेन के संसाधनों पर बाहरी नियंत्रण
यूक्रेन के संसाधनों पर हमेशा बाहरी नियंत्रण रहा है। ज़ार के शासन के दौरान, यूक्रेन के संसाधनों पर रूस का नियंत्रण था। सोवियत संघ के शासन में यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पूरी तरह मॉस्को द्वारा नियंत्रित थी। यूक्रेन का औद्योगिक उत्पादन सोवियत संघ की ज़रूरतों के अनुसार तय किया जाता था.
1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन पर अमेरिका एवं यूरोपीय देशों का धीरे धीरे वर्चस्व बढ़ता गया। सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया गया। कुछ स्थानीय अमीर उद्योगपति(Oligarch ) उभरकर आए, जिन्होंने यूक्रेन के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। यूरोप और अमेरिका ने आईएमएफ और विश्व बैंक के जरिए आर्थिक मदद दी जिससे निजीकरण और विदेशी कंपनियों की घुसपैठ और बढ़ी और अब यूक्रेन का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर नजर आ रहा है।
क्या झारखंड सुरक्षित है ?
खनिज संपदा से संपन्न झारखंड में अभी यूक्रेन जैसी स्थिति नजर नहीं आती है. झारखंड कई मायनों में सुरक्षित नजर आता है क्योंकि झारखंड भारतीय गणराज्य का हिस्सा है जिसका संविधान खनिज संसाधन वाले आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सामुदायिक हक की गारंटी देता है और यहां खनिज संसाधनों पर कब्जा के लिए कोई प्रत्यक्ष युद्ध होता भी नजर नहीं आता है।
लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि झारखंड भी उसी वैश्विक भू राजनीति का हिस्सा है जिसका हिस्सा यूक्रेन है। झारखंड के सारंडा में खनन करने वाली आर्सेलर मित्तल कंपनी का कारोबार यूक्रेन में भी है। वर्तमान में झारखंड में टाटा,अदानी, एनटीपीसी, मित्तल,रूंगटा, हिंडालको जैसी कई कम्पनियां खनन में लगी हुई हैं।हजारीबाग के गोंदलपुरा सहित कई जगहों पर खनन परियोजनाओं का विरोध किया जा रहा है। खनन कार्य करने वाली अदानी एंटरप्राइजेज झारखंड के कई गांवों में घुस चुकी है।
वहीं दूसरी ओर खनिज संसाधनों के लूट के मामले में झारखंड की अबुआ सरकार भी पूर्व की सरकारों की तरह ही कार्य करती दिख रही है।वर्तमान सरकार वन पट्टा देने एवं पेसा के अनुरूप नियमावली बनाने बजाए झारखंड में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमंत्रित कर रही है एवं संविधान व कानून का उल्लंघन कर जनता के संसाधनों को खनन कंपनियों के हवाले कर रहे है।
पेसा के माध्यम से हो सत्ता का सम्पूर्ण हस्तांतरण
झारखंड जैसे खनिज बहुल क्षेत्रों में संसाधनों पर सामुदायिक हक को केंद्रीय राजनीतिक विमर्श होना चाहिए और इसी संदर्भ में पेसा की बहस को भी देखना चाहिए। संसाधनों पर सामुदायिक हक के लिए सत्ता के सम्पूर्ण हस्तांतरण एवं अनुसूचित क्षेत्र को नौकरशाहों से पूर्ण रूप से मुक्त करने की मांग करनी चाहिए वरना आने वाले समय में औपनिवेशिक ताकतें नौकरशाह एवं जनप्रतिनिधियों के माध्यम से झारखंड का भी खंड खंड कर देंगी।
- धीरज कुमार (आलेख)