बिहार में आज भी लौंडा नाच को बेहद पसंद किया जाता हैं। बिहार के छपरा निवासी स्वर्गीय ढोढा मांझी के 72 वर्षीय लखीचंद मांझी को भी इसी कला की बदौलत एक पहचान मिली थी। बिहार सरकार द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हो चुका है। बुधवार को वह इस दुनियां को अलविदा कह दिए। भोजपुरी के प्रसिद्ध नाट्यकार सह भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले छपरा सदर प्रखंड अंतर्गत कुतुबपुर दियारा गांव निवासी लोक कवि भिखारी ठाकुर के शिष्य रहे लोक कलाकार लखीचंद मांझी का बुधवार की देर शाम को निधन हो गया। इनके निधन से भिखारी ठाकुर रंगमंडल प्रशिक्षण सह शोध केंद्र छपरा के संचालक डॉ जयेंद्र दोस्त और भोजपुरी लोक मंच के कलाकार रंजीत भोजपुरिया सहित कई अन्य भोजपुरी कलाकारों ने शोक व्यक्त किया है।
सारण जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत खैरा थाना क्षेत्र के इटहिया गांव निवासी स्वर्गीय ढोढा मांझी के 72 वर्षीय लखीचंद मांझी विगत कई वर्षों से बीमार चल रहे थे। जिनकी आज मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु की सूचना पर बिहार सरकार के पूर्व कला संस्कृति विभाग के पूर्व मंत्री सह जिले के मढ़ौरा से राजद विधायक जितेंद्र कुमार राय ने अपनी संवेदना व्यक्त की है। वहीं इसे भोजपुरी लोक कला जगत की बड़ी क्षति बताया है। विधायक ने बताया कि घटना की जानकारी के बाद से काफी मर्माहत है। क्योंकि भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोक कला की साक्षात प्रतिमूर्ति रहे लोककवि भिखारी ठाकुर से लखिचंद मांझी महिला के रूप में कला सीख कर अपनी अलग पहचान बनाए थे। जिस कारण अपनी कला से उम्र भर समाज की सेवा कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि जब कला संस्कृति एवं युवा विभाग का मंत्री था, तो दिवंगत लखीचंद मांझी को लाइफ़ टाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित करने का सौभाग्य मिला था।लेकिन लखीचंद मांझी का अब नही होना कला जगत में कमी कमहसूस होगी। गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि इस दुःख की घड़ी में उनके परिवार के साथ हैं।
लौंडा नाच बिहार की ग्रामीण क्षेत्रों की प्रसिद्ध प्राचीन लोक नृत्यों में से एक है। इसमें लड़का, लड़की की तरह मेकअप करने के बाद एक महिला की वेशभूषा में नृत्य करता है। किसी भी धार्मिक, मांगलिक या शादी विवाह और जन्मोत्सव पर लोग अपने यहां ऐसे आयोजन कराते हैं। हालांकि वर्तमान दौरा में लौंडा नाच हाशिए पर खड़ा है। लेकिन अब कुछ ही ऐसी नाच मंडलियां बची हुई हैं, जो इस कला को जीवित रखे हुए हैं। लेकिन आज उनकी हालत भी कुछ खास अच्छी नहीं है। जिले के सदर प्रखंड छपरा के इटहियां गांव निवासी 72 वर्षीय लखीचंद मांझी मात्र 12 वर्ष की उम्र में भिखारी ठाकुर जी के साथ जुड़े और अपने कला से भोजपुरी भाषा भाषियों के दिल में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी।
वर्ष 2023 के दिसंबर महीने में बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा भिखारी ठाकुर जी की 136वीं जयंती के अवसर पर पटना में दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें विभाग के मंत्री जितेंद्र कुमार राय एवं विभाग की अपर मुख्य सचिव श्रीमती हरजोत कौर बम्हरा द्वारा भिखारी ठाकुर के शिष्य लखीचंद मांझी के द्वारा किया गया लौंडा नाच की सराहना करते हुए उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड (प्रदर्शन कला) की श्रेणी के तहत नृत्य कला में उनके उत्कृष्ट आजीवन योगदान के लिए प्रतिष्ठित “बिहार कला पुरस्कार” प्रदान किया गया था।
लखीचंद मांझी को बिहार कला सम्मान के तहत एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार और स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया था। यही नहीं लखीचंद मांझी को कई अन्य पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके साथ ही बिहार के तत्कालीन महामहिम राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर द्वारा वर्ष 2024 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पटना में आयोजित स्वागत समारोह और सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए अतिथि के रूप में शामिल किया जा चुका है। लेकिन अब लखिचंद मांझी की मृत्यु के बाद इनके परिवार में पुरानी परंपरा के लौंडा नाच को आगे बढ़ाने वाला कोई सदस्य तैयार नहीं है। या यूं कहा जाए कि एक सांस्कृतिक पीढ़ी का अंत हो गया।