बिहार, जिसे “डबल इंजन सरकार” और “सुशासन” का मॉडल कहा गया, आज देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। नीतियों की विफलता, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही ने इस राज्य को विकास से कोसों दूर कर दिया है।
1. विकास के नाम पर ढहते पुल
2014 में 1,700 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुआ अगुवानी-सुल्तानगंज पुल आज तक अधूरा है। दस साल में दो बार ढह चुका यह पुल बिहार की सरकारी नाकामी का प्रतीक बन गया है।
2. देश का सबसे पिछड़ा राज्य
नीति आयोग के SDG इंडिया इंडेक्स 2023–24 के अनुसार, बिहार गरीबी, भूख, शिक्षा की गुणवत्ता और आर्थिक विकास—सभी पैमानों पर सबसे नीचे है। “सुशासन” और “डबल इंजन” के तमाम दावों के बावजूद बिहार हर मोर्चे पर पिछड़ गया है।
3. गरीबी का गहराता संकट
राज्य सरकार के जातीय सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार में 94 लाख परिवार रोज़ 200 रुपये से भी कम कमाते हैं। अनुसूचित जाति और जनजातियों में गरीबी दर 43% है, जबकि सामान्य वर्ग में 25%। केवल 10% लोग ही 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी कर पाए हैं और 95% घरों के पास कोई वाहन नहीं है।
4. आर्थिक स्थिति दयनीय
बिहार की प्रति व्यक्ति आय (PCI) देश में सबसे कम है—झारखंड की आधी और ओडिशा की एक-तिहाई। 2024 में राज्य का कर्ज़ 3.19 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है। सवाल यह है कि इतने पैसे का इस्तेमाल हुआ कहाँ? न स्कूल सुधरे, न अस्पताल।
5. शिक्षा और स्वास्थ्य की दुर्दशा
20,000 से अधिक स्कूलों में बिजली नहीं है, 76,000 में कंप्यूटर नहीं, और सिर्फ 2% में डिजिटल लाइब्रेरी है। स्कूल छोड़ने की दर देश में सबसे अधिक है।
स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की भारी कमी है—ग्रामीण क्षेत्रों में 90% पद खाली हैं। 80% परिवार सरकारी अस्पतालों से इलाज नहीं करवाना चाहते क्योंकि वहाँ सुविधा नहीं है। नतीजा: दो में से एक महिला एनीमिक है, 40% बच्चे कुपोषित हैं।
6. बेरोजगारी और पलायन की मार
बिहार में पढ़े-लिखे युवाओं के लिए नौकरी मिलना सबसे मुश्किल है। हर पाँच में से एक ग्रेजुएट बेरोज़गार है। औद्योगिक क्षेत्र में केवल 1.3 लाख लोग काम करते हैं, जिनमें से 36,000 ही स्थायी कर्मचारी हैं।
7. कृषि और उद्योग की विफलता
कृषि प्रधान राज्य होने के बावजूद, बिहार में सिर्फ 13 नए कोल्ड स्टोरेज बने जबकि गुजरात में 459 और यूपी में 299।
बिहार में सिर्फ 899 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ हैं, जबकि पंजाब में 3,300। इसका मतलब है—मखाना, फल, और सब्ज़ी किसान घाटे में हैं और कर्ज़ में डूबे हुए हैं।
8. कानून-व्यवस्था में गिरावट
व्यवसायियों पर हमले आम हो चुके हैं। केवल 2025 के पहले छह महीनों में आठ प्रमुख व्यापारियों पर हिंसक हमले हुए। 2021 से 2023 के बीच अपराध 25% बढ़े। हत्या, दहेज, अपहरण और बलात्कार के मामलों में बिहार देश में दूसरे स्थान पर है।
9. 20 साल का “डबल इंजन”—नतीजा शून्य
दो दशकों से सत्ता में रही जेडीयू-भाजपा गठबंधन सरकार ने बिहार को “विकास” के बजाय “विफलता” का प्रतीक बना दिया है। न शिक्षा, न स्वास्थ्य, न उद्योग—हर मोर्चे पर बिहार पिछड़ा।
निष्कर्ष:
बिहार का पिछड़ापन किसी प्राकृतिक नियति का नहीं, बल्कि सरकार की नीतिगत असफलता का परिणाम है। “सुशासन” का नारा अब सिर्फ एक खोखला जुमला बन चुका है—क्योंकि हकीकत यही है कि बिहार को उसकी सरकारों ने ही विफल किया है।
नाेेेट: : ये आंकड़े और जानकारियां कांग्रेस के प्रवक्ताओं से प्राप्त हुई है।




