मोदी शासन काल को लेकर भारत में भले ही मेनस्ट्रीम मीडिया चुप्पी साधे हो, अन्य विकसित देशों में यहां की बदहाली आये दिन चर्चा में रहती है। एक बार फिर यूरोपीय संसद ने भारत में बढ़ रही धार्मिक, जातीय व अमानवीय भेदभाव को लेकर सख्त टिप्पणी की है। यूरोपीय संसद की विदेश मामलों की समिति द्वारा एक रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों के लिए असुरक्षित कामकाजी माहौल, भारतीय महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों द्वारा सामना की जाने वाली कठिन परिस्थितियों और जाति आधारित भेदभाव के बारे में कई टिप्पणियां की गई हैं। लाइव लॉ न्यूज नेटवर्क के युरोपीय संसद की उस रिपोर्ट में भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर भी चिंता व्यक्त की गई है, जिसे मुसलमानों के खिलाफ प्रकृति में भेदभावपूर्ण और खतरनाक रूप से विभाजनकारी करार दिया गया था। रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यालय बंद होने पर भी चिंता व्यक्त की गई है, जिसके बैंक खातों को विदेशी अंशदान अधिनियम के कथित उल्लंघन के कारण फ्रीज कर दिया गया था। इस रिपोर्ट को 61 वोटों से स्वीकार किया गया जबकि छह वोट इसके खिलाफ पड़े जबकि चार सदस्य गैरहाजिर रहे। विदेश मामलों की समिति की यह रिपोर्ट अब सदस्य यूरोपीय संसद के पूर्ण अधिवेशन में वोटिंग के लिए प्रस्तुत की जाएगी। बतायें कि इससे पहले फरवरी में मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने भारत में विरोधियों और पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मामलों के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी।