जज ने पूछा- प्रशांत भूषण तो माफ़ी मांग ही नहीं रहे, क्या करें? अटार्नी जनरल बोले- चेतावनी देकर छोड़ दें

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

नई दिल्ली: अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मंगलवार (25 अगस्त, 2020) को सुप्रीम कोर्ट से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को माफ करने का आग्रह किया, जो अपने ट्वीटों के लिए बिना शर्त माफी मांगने से इनकार कर रहे हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें जेल भेजने की बजाए ‘फटकार’ या ‘चेतावनी’ देकर ‘स्टेट्समैन जैसा संदेश’ दें। कोर्ट ने भूषण को उनके दो ट्वीट को लेकर आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया है। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा स्टेट्समैन जैसा संदेश दें और अपनी अवमानना की शक्तियों का उपयोग ना करें।

प्रशांत भूषण ने सोमवार को कोर्ट में एक पूरक बयान दायर किया था, इसमें उन्होंने कहा, ‘माफी… मेरी नजर में मेरी अंतरात्मा और उस संस्था की अवमानना होगी जिसमें मैं सर्वोच्च सम्मान रखता हूं।’ मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। भूषण मामले में फैसला अब दो सितंबर को सुनाया जाएगा। इस दिन तीन जजों की बेंच की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस अरुण मिश्रा रियाटर हो रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में सुवनाई के दौरान कोर्ट रूम की बातचीत के कुछ अंश-
जस्टिस मिश्रा- मामला हम पहले ही स्थगित कर चुके हैं और उपयुक्त बेंच को भेज दिया था। बता दें कि जज यहां एक अन्य अवमानना मामले का जिक्र कर रहे थे, जिसकी सुनवाई साल 2009 में हुई थी और इसे अब दूसरी बेंच को भेजा जाएगा।

केके वेणुगोपाल- प्रशांत भूषण के बयान शायद केवल कोर्ट को तथ्यों के बारे में बताने और सुधारों के लिए कहने के लिए थे। इस केस में उन्हें माफ करना सही रहेगा। उन्हें चेतावनी दीजिए और छोड़ दीजिए।

जस्टिस मिश्रा- हमें मीडिया रिपोर्ट्स (पूर्व जजों के बयानों पर) से प्रभावित नहीं होना चाहिए। बल्कि हम सुनना चाहेंगे कि मामले में अटॉर्नी जनरल को क्या कहना है। आपकी राय में उन्हें क्या सजा दी जानी चाहिए?

वेणुगोपाल- उन्हें चेतावनी दें कि कृप्या भविष्य में ऐसा ना दोहराएं।

जस्टिस मिश्रा- अगर आप प्रशांत भूषण के बयान देखें, तो कह सकते हैं कि इसमें एक सकारात्मक हिस्सा भी हैं और वो है उनका कहना कि उन्हें संस्था पर भरोसा है। मगर इसी समय उनका यह भी कहना है कि वो माफी नहीं मांगेंगे क्योंकि उन्होंने कोई गलती नहीं की है। हर कोई गलती करता है उस व्यक्ति को ये समझना चाहिए।

अगर कोई व्यक्ति कहता है कि उसने कोई गलती नहीं की है और बार-बार अवसर मिलने के बाद भी वो माफी नहीं मांगता, तो ये कहने का उद्देश्य क्या होगा कि दोबारा ऐसा मत करना? ये हमारे या उनके बारे में नहीं हैं। ये संस्था के बारे में है।

वेणुगोपाल- इस मामले में लोकतंत्र का पालन करें, जब उन्होंने अपनी बोलने की आजादी का इस्तेमाल किया हो। अगर कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया तो इसकी जबरदस्त प्रशंसा होगी। यहां तक की अगर वो कहते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है तो इसमें कोर्ट को एक दयालु दृष्टिकोण रखना चाहिए। मैं बार के लिए भी यही बोलता हूं। (वेणुगोपाल बार के सबसे वरिष्ठ सदस्यों में से एक हैं।)

जस्टिस मिश्रा- अगर वो (भूषण) मानते हैं कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है तो इस चेतावनी का उद्देश्य क्या है?

जस्टिस गवई- मिस्टर एजी, आपने भी भूषण के खिलाफ एक अवमानना का मामला दर्ज कराया और खेद व्यक्त करने के बाद ही इसे वापस ले लिया, लेकिन यहां ऐसा नहीं है।

जस्टिस मिश्रा- उन्होंने इस संस्था, इस अदालत के न्यायाधीशों के खिलाफ कई अपमानजनक टिप्पणियां की हैं।

वेणुगोपाल- वो दोबारा ऐसा नहीं करेंगे।

जस्टिस मिश्रा- उन्हें ऐसा कहने दें, ये बहुत सरल था। मामला दो ट्वीट्स के मामले में था। मगर बाद में उन्होंने इन ट्वीट्स में और रंग जोड़ दिए। एजी ने सुझाव दिया है कि अदालत भूषण की पुनरावृत्ति को अनदेखा कर सकती है और उन्हें माफ कर सकती है।

जस्टिस गवई– हमने उन्हें (भूषण) तीन दिन दिए। इस बीच जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भूषण ने खेद व्यक्त करने के बजाय, अदालत को अपने बचाव में विचार करने का साहस किया।

वेणुगोपाल- हालांकि इसमें बहुत दे हो चुकी है उस सवाल पर वापस जाने के लिए जो उन्हें कहा था। वो अब भी खेद व्यक्त कर सकते हैं।

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