भोपाल: नवाब हमीदुल्ला खान की वक्फ संपत्तियां शत्रु संपत्ति के दायरे में आ सकती हैं। इनकी कीमत करीब 1500 करोड़ रु. है। मर्जर एग्रीमेंट के दौरान नवाब ने अपनी कई निजी संपत्तियों को औकाफ-ए-शाही घोषित किया था। इनमें भोपाल की जामा मस्जिद, लंगर खाना, मक्का मदीना की रुबात, 17 मस्जिदें और सैकड़ों एकड़ जमीन शामिल हैं। अब यह शत्रु संपत्ति घोषित हो सकती हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की शत्रु संपत्ति कार्यालय की टीम, खुफिया विभाग के साथ भोपाल पहुंचकर इन संपत्तियों का मूल्यांकन कर रही है। 1960 की स्थिति के आधार पर नवाब की वक्फ संपत्तियां भी शत्रु संपत्ति घोषित हो सकती हैं। इनमें मकबरे भी हैं।
इनका प्रशासन व उपयोग नवाब के परिवार द्वारा होता रहा है। घर बचाओ संघर्ष समिति के उप संयोजक और प्रभावित पक्षकारों के वकील जगदीश छावानी ने बताया कि दो दिन पहले केंद्रीय टीम के अधिकारियों ने शत्रु संपत्ति मुरों पर बैठक की।
अधिकारियों ने अब तक की प्रतिक्रियाओं और समिति के पास मौजूद दस्तावेजों की जानकारी ली। उन्हें संदेह है कि ओकाफ-ए-शाही संपत्तियों के प्रबंधन में अनियमितता हो सकती है। वे यह जांच रहे हैं कि नवाब द्वारा बनाई गई निजी संपत्तियां वक्फ औकाफ-ए-शाही के तहत कैसे प्रबंधित की गई। साथ ही, किराएदारों और वर्तमान कब्जों की स्थिति का भी आकलन किया जा रहा है।
क्या है 20 अप्रैल 2015 के पत्र में : नवाब हमीदुल्ला खान की मृत्यु के अगले दिन से उनकी सारी संपत्तियां शत्रु संपत्ति के दायरे में आ गईं। इसका कारण यह था कि 1960 में उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान पाकिस्तान की नागरिक बन चुकी थीं। भोपाल गद्दी उत्तराधिकार अधिनियम 1947 के तहत यदि नवाब के पास कोई पुत्र नहीं था, तो उनकी सबसे बड़ी पुत्री उत्तराधिकारी बनती थी। नवाब के निधन के बाद, आबिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी माना गया था, लेकिन उनकी पाकिस्तान की नागरिकता समस्या बन गई।
इसके बाद, भारत सरकार ने 10 जनवरी 1962 को बेगम साजिदा सुल्तान को भोपाल नवाब का उत्तराधिकारी मानते हुए अधिसूचना जारी की। यह अधिसूचना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(22) के तहत थी। 7 मई 1962 को गृह मंत्रालय ने यह बताया कि नवाब की संपत्तियां तीन श्रेणियों में बांटी जाती हैं: यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्तान, और भारत में। भारतीय प्रथा के अनुसार, शासक की संपत्ति उसके उत्तराधिकारी को मिलती थी। इसलिए, भारत सरकार ने यह उचित नहीं समझा कि भोपाल के नए शासक को अदालत में चुनौती दी जाए।
वक्फ संपत्तियों में किराएदारों और वर्तमान कब्जों की स्थिति का भी किया जा रहा आकलन
भोपाल शहर में कई महत्वपूर्ण वक्फ संपत्तियां शामिल हैं। इनमें जामा मस्जिद, लंगर खाना, मक्का-मदीना में रुबात, बड़ा बाग, बाग उमराव दूल्हा, आरिफ नगर (बैरसिया रोड), शहीद नगर, साजिदा नगर (कोहेफिजा) की जमीनें शामिल हैं।
मक्का में स्थित रुबात (ठहरने की जगह) का प्रशासन अभी भी औकाफ-ए-शाही के पास है। जबकि मदीना को रुबात को सऊदी अरब सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। • भारत में स्थित वक्फ संपत्तियों में से करीब 90% भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। भू-माफियाओं ने फर्जी हिबा नामों (दानपत्र) के आधार पर इन की अवैध खरीद-फरोख्त की है।
घर बचाओ संघर्ष समिति ने शत्रु संपत्ति कार्यालय, मुंबई को पत्र भेजकर यह स्पष्ट करने की मांग की है कि अगर नवाब की वक्फ संपत्तियां शत्रु संपत्ति के तहत आती हैं, तो दुकानदारों से किराया वसूली को रोका जाए।
पत्र में अनुरोध किया गया कि दुकानदारों को किराया किसके खाते में जमा करना चाहिए। यदि हस्तांतरण संभव है, तो दुकानदार लीज या बिक्री पर तैयार हैं।
15 हजार करोड़ की संपत्ति इस वक्फ संपत्ति से अलग है। इसमें उस संपत्ति को शामिल किया गया था। जो नवाब ने अपने वारिसों के लिए छोड़ी थी। स्टे हटने के बाद इसे शत्रु संपत्ति माना गया है।