प्रेस की स्‍वतंत्रता मामले में भारत 11 पायदान नीचे गिरकर 161 नंबर पर

Approved by admin on Tue, 05/09/2023 - 09:46

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

प्रेस की स्‍वतंत्रता की दशा भारत में लगातार गिरती ही जा रही है। विश्‍व की जानी मानी सर्वेक्षण संस्‍था RSF अर्थात 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' का मानना है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक पक्षपात, मीडिया के स्वामित्व पर बढ़ती धनाढ़य घरानों की मोनोपॉली प्रदर्शित करती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है। 2014 से, कथित हिंदू राष्ट्रवाद समर्थक भारतीय जनता पार्टी के अवतार बने प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के शासनकाल में स्थिति लगातार बदहाल होती जा रही है। महज एक वर्ष के अंतराल पर तुलना करें, तो दुनिया भर के 180 देशों में भारत जहां 2022 में 150 वें स्‍थान पर था, अब 2023 में उसकी स्थिति 161 वें पायदान पर पहुंच गई है। यानी एक वर्ष में 11 स्‍थान नीचे।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने दुनिया भर के देशों में प्रेस की स्‍वतंत्रता Index जांचने के लिए पांच इंडिकेटर्स की समीक्षा की है। जिसमें Political indicator, Economic indicator, Legislative indicator, Social indicator औरSecurity indicator. भारत की स्थिति सबसे खराब पायी गई सिक्‍युरिटी इंडिकेटर अर्थात सुरक्षा संकेतक मामलों में, जहां भारत का रैंक 172 है। इसका मतलब है कि इस पैरामीटर पर 180 में से केवल आठ देशों की रैंक भारत से खराब है। भारत से खराब हालत वाले देश हैं, चीन, मैक्सिको, ईरान, पाकिस्तान, सीरिया, यमन, यूक्रेन और म्यांमार।
सिक्‍युरिटी इंडिकेटर, तय पत्रकारीय प्रक्रिया और नैतिकता के अनुसार समाचारों और सूचनाओं की पहचान करके, एकत्र करने और प्रसारित करने की क्षमता का मूल्यांकन करता है। जिसमें, बिना शारीरिक नुकसान, बिना मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक पहलु जैसे जोखिम के बिना अपना काम करना शामिल है। यानी,  जहां पेशागत नुकसान के अनावश्यक जोखिम के बिना कार्य कर पाना सुनिश्चित हो। उदाहरण के लिए, जैसे, नौकरी छूटना, पेशेवर उपकरणों की जब्ती या मीडिया प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ आदि न हो।
दूसरे नंबर पर आता है, मीडिया हाउस की मोनोपॉली का मामला। इस मामले में अधिकांश मीडिया हाउस, जैसे अखबार, वेब पोर्टर्ल्‍स, टीवी चैनल्‍स, आदि पर अधिकांशत: बड़े धनाढ़्य घरानों का कब्‍जा है, अथवा सरकार द्वारा अतिरिक्‍त तरीकों से पोषित संस्‍थान शामिल हैं। देश की प्रमुख भाषा हिन्‍दी के तीन चौथाई से अधिक, प्रमुख दैनिक अखबारों पर इन संस्‍थानों का कब्‍जा है। कमोबेश यही हाल शेष संस्‍थानों का भी है। ऐसे मीडिया संचालक संस्‍थानों में अम्‍बानी, अडानी जैसे धनाढ़य ग्रूप आते हैं, अथवा सरकारी स्‍वामित्‍व है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार, कानूनी रूप से भी, सत्ता में बैठे लोगों द्वारा पत्रकारों को कई तरह से परेशान किया जाता है - जिसमें देशद्रोह और आपराधिक मानहानि के मामले दर्ज होना शामिल हैं। 
रिपोर्ट में कहा गया है, "भारतीय कानून सैद्धांतिक रूप से सुरक्षात्मक है, लेकिन मानहानि, देशद्रोह, अदालत की अवमानना और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के आरोप सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ बढ़ रहे हैं, जिन्हें राष्ट्र-विरोधी कहा जा रहा है।"
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार, भारतीय न्यूज़रूम में विविधता की कमी है। अधिकांशत: उच्च जातियों के हिंदू पुरुष पत्रकारिता में वरिष्ठ पदों पर हैं अथवा मीडिया अधिकारी हैं।
और अंतत:, पत्रकारों की सुरक्षा का आंकड़ा भी जान लीजिए। 
हर साल औसतन तीन या चार पत्रकार अपने काम के सिलसिले में मारे जाते हैं। भारत मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। इसके अलावा, महिला पत्रकारों का उत्‍पीड़न, पुलिसिया हस्‍तक्षेप, शामिल है।
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ताजा सर्वेक्षण आंकड़े के आधार पर
वीडियो यहां देखें: 
https://youtu.be/A19nmCOoN9o

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