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‘कीर्तिगान’ :  हत्यारी भीड़ में बदलते जा रहे  देश और समाज की त्रासद कथा (पुस्तक समीक्षा)

आखिरकार ‘कीर्तिगान’ को किसी तरह पढ़ गया. ‘किसी तरह’ इसलिए नहीं कि  ऊबाऊ है. इसलिए कि कई बार रुक गया, आगे पढ़ने  की हिम्मत नहीं हुई.  अंत के करीब पहुंच कर दो दिन छोड़ दिया. और पूरा पढने पढ़ने के … Read the rest