भारतीय चुनावों में आचार संहिता का अंकुश लानेवाले टीएन शेषन नहीं रहे

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

नई दिल्ली: भारतीय चुनाव प्रणाली के बड़े सुधारक माने जाने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का रविवार को 87 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। चुनाव के समय सरकार और राजनीतिक दलों पर आचार संहिता के नियंत्रण का श्रेय टीएन शेषन को ही जाता है। उन्होंने चुनाव आयोग को उसकी ताकत से वाकिफ कराया और चुनाव सुधार लागू करके वास्तव में लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने का काम किया। 

आज देश में लगभग 99% वोटर्स के पास पहचान पत्र है, तो उसका क्रेडिट भी शेषन को जाता है। उनके कार्य काल में इसकी शुरुआत हुई और 1996 में इसका प्रयोग शुरू हुआ। फर्जी वोटिंग रोकने में ये सबसे बड़ा हथियार साबित हुआ है। 90 के दशक में बिहार, यूपी ही नहीं दिल्ली जैसे शहरों में लोग शिकायत करते पाए जाते थे कि वोट डालने पहुंचे तो पता चला कि उनका वोट पहले ही पड़ चुका है। ये शिकायत दूर हुई।

शेषन के चुनाव आयुक्त बनने से पहले आचार संहिता सिर्फ कागजों में थी, लेकिन शेषन ने इसे कड़ाई से लागू किया। पहले चुनाव प्रचार को लेकर नियमों का पालन नहीं होता था। नतीजा उम्मीदवार बेहिसाब और बेहिचक खर्च करते थे। आचार संहिता लागू होने के बाद आयोग की प्रचार पर नज़र रहने लगी। रात 10 बजे के बाद प्रचार पर रोक लगी। कैंडिडेट के लिए चुनाव खर्च का हिसाब प्रचार के दौरान नियमित देना अनिवार्य हुआ और फिजूलखर्ची रुकी।

दलों और उम्मीदवार की मनमानी पर रोक लगाने के लिए पर्यवेक्षक तैनात करने की प्रक्रिया को शेषन ने ही सख्ती के साथ लागू किया। इसका नतीजा ये हुआ कि नौकरशाही को काम करने की आज़ादी मिली और हिंसा रुकी। 1995 में बिहार के चुनाव को इसी वजह से याद किया जाता है। इससे चुनाव में मतदान बूथ लूटने जैसी घटनाएं बेहद कम हो गईं।

राज्य मशीनरी का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती को प्रभावी बनाया। इससे राज्यों में पुलिस के बूते मनमानी करने की नेताओं की आदत पर रोक लगी।

शेषन ने नेताओं पर सख्ती की तो वोटर्स का ध्यान रखा ताकि वे बिना डरे वोट डाल सकें। इसके लिए उन्होंने गिनती से पहले वोट मिक्स करने के निर्देश दिए। इससे जीतने के बाद नेता बदले की भावना से काम नहीं कर पाता।

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