5 फरवरी को हजारीबाग के बड़कागांव के चंदौल गांव में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक जन सुनवाई को ग्रामीणों के विरोध के बाद रद्द कर दिया गया । यह जन सुनवाई अदानी एंटरप्राइजेज के गोंदलपुरा कोयला खनन परियोजना से विस्थापित किए जाने वाले 781 विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए जमीन अधिग्रहित करने के लिए आयोजित की गई थी।
क्या है गोंदलपुरा कोयला खनन परियोजना?
हजारीबाग के बड़कागांव में गोंदलपुरा कोयला खनन परियोजना के तहत अदानी एंटरप्राइजेज के लिए कुल 1268.08 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जानी है जिसमें लगभग 550 एकड़ जमीन उत्तम श्रेणी की बहुफसलीय कृषि योग्य है । जबकि लगभग 540 एकड़ में जंगल है। खनन से पांच गांवों के कुल 781 परिवार विस्थापित हो रहे हैं। जिसमें पिछड़ा,दलित,आदिवासी सभी समुदाय के लोग हैं। ( इस संबंध में एक पुरानी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट संलग्न है)
ग्रामीण लगातार इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। और पिछले 660 दिनों से कोयला खनन परियोजना के खिलाफ धरना पर बैठे हैं। ग्रामीण ग्राम सभा कर के संयुक्त रूप से अदानी को जमीन नहीं देने का निर्णय ले चुके हैं और ग्रामीणों के विरोध के कारण कई बार जन सुनवाई रद्द की जा चुकी है। बड़कागांव की पूर्व विधायक ने झारखंड विधान सभा में गोंदलपूरा में फर्जी ग्राम सभा कराने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी। गोंदलपुरा के ग्रामीणों के धरना में शामिल होकर भाकपा माले के बिहार के सांसद सुदामा प्रसाद भी अपना समर्थन जता चुके हैं।
2010 में पर्यावरण मंत्रालय ने गोंदलपुरा कोल ब्लॉक को खनन गतिविधियों के लिए ‘नो-गो’ जोन (प्रतिबंधित क्षेत्र) में रखा था
अदानी को जमीन देने के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिघोषणा
ग्रामीणों एवं जनप्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद झारखंड सरकार खनन परियोजना के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित करने की तैयारी पूरी कर ली है। 11 सितंबर 2024 को उपायुक्त कार्यालय हजारीबाग द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 19 के तहत अदानी एंटरप्राइजेज के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिघोषणा जारी की गई । भूमि अधिग्रहण की अधिघोषणा कंपनी द्वारा सरकार को भूमि अधिग्रहण की राशि जमा करने के बाद जारी की जाती है। भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अधिघोषणा जारी होने के 12 महीना के अंदर भूमि अधिग्रहित हो जानी चाहिए। यानि कि अदानी एंटरप्राइजेज ने झारखंड सरकार को जमीन की राशि दे दी है और झारखंड सरकार को सितंबर 2025 तक इस जमीन को खाली करा देना है।
क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण लिए झारखंड सरकार ने अदानी को सौंपी 8 जिला की जमीन
गोंदलपुरा खनन परियोजना के लिए झारखंड सरकार ने अदानी एंटरप्राइजेज को 543 एकड़ वन भूमि भी दे दी है। क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण( Compensatory Afforestation) लिए अदानी एंटरप्राइजेज को झारखंड के 8 जिला में कुल 543 एकड़ गैर वनभूमि आवंटित की गई है।
अदानी एंटरप्राइजेज को खूंटी में 162 एकड़ जमीन, पूर्वी सिंहभूम में 109 एकड़ जमीन, लातेहार में 31 एकड़ जमीन, पश्चिमी सिंहभूम में 100 एकड़ जमीन, लोहरदगा में 24 एकड़ जमीन, सिमडेगा में 52 एकड़ जमीन, पलामू में 59 एकड़ जमीन,गुमला में 6 एकड़ जमीन दी गई है।( सूचि संलग्न है)
अगस्त 2018 में हेमंत सोरेन ने तत्कालीन रघुवर दास सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि ” BJP सरकार ने क्षतिपूर्ति वन रोपण के कार्य में अनेकों उद्योगपतियों को छूट दी है। ये लोग पर्यावरण सुरक्षा की पढ़ाई अम्बानी-अडानी के आगे क्यों भूल जाते हैं”
अब सत्ता में आने के बाद हेमंत सोरेन स्वयं पर्यावरण सुरक्षा की पढ़ाई भूल गए हैं एवं झारखंड की पर्यावरण सुरक्षा अदानी के हवाले कर दिया है।
अदानी का हिसाब किताब
अदानी एंटरप्राइजेज ने जंगल का Cost Benefit Analysis भी किया है। कंपनी के के हिसाब से माइनिंग से 35 करोड़ रुपए का नुक्सान होगा लेकिन झारखंड सरकार को लगभग 12000 करोड़ का लाभ होगा।
अबुआ सरकार के विकास का मॉडल
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के विकास का मॉडल सरकार बनने के बाद ही स्पष्ट हो गया था जब झारखंड के वित्त मंत्री ने कहा कि झारखंड सरकार का माइनिंग से राजस्व का लक्ष्य बढ़ाएगी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में झारखंड सरकार का माइनिंग से राजस्व का लक्ष्य लगभग 15 हजार करोड़ है।वित्त मंत्री ने कहा था कि उड़ीसा सरकार माइनिंग से 40 हजार करोड़ का राजस्व संग्रह कर रही है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा था कि माइनिंग का कहीं विरोध नहीं हो रहा है सबको बिजली चाहिए।ऐसे में झारखंड की हेमंत सरकार पर भी सवाल उठाता है कहीं सरकार का इरादा झाड़खंड को कोयला खंड बनाने का तो नहीं ?
हेमंत सोरेन की कथनी और करनी में अंतर
2019 के पहले हेमंत सोरेन अदानी को लेकर लगातार आक्रामक नजर आए, 2019 के बाद भी सत्ता में आने के बाद चुनावी मंचों से अदानी पर हमला किया।
झारखंड विधान सभा चुनाव से पहले सितंबर 2024 में हेमंत सोरेन ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार अदानी को खदान देकर आदिवासियों को बेदखल करने की तैयारी कर रही है।हेमंत सोरेन ने यह भी कहा था कि उनकी सरकार ऐसी नीति बनाएगी कि इस राज्य की सारी खनिज संपदा का हिसाब किताब स्थानीय लोग करेंगे, उसके बाद ही खनिज राज्य से बाहर जाएगा।
लेकिन हेमंत सोरेन सोरेन सरकार की नीति को देखकर तो यह लगता है कि हेमंत सोरेन का यह बयान इंडिया अलायंस की अदानी विरोध की रस्म अदायगी का हिस्सा एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को रिझाने का तरीका था। 2019 के विधान सभा चुनाव के पहले हेमंत सोरेन ने रघुवर दास को अदानी का चौकीदार कहा था लेकिन हेमंत सोरेन वर्तमान में स्वयं अदानी की चौकीदारी करते नजर आ रहे हैं
क्या वर्तमान बौद्धिक राजनैतिक विमर्श समाज को गुमराह कर रहा है?
2014 के बाद प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के एक बड़े तबके का सामाजिक राजनीतिक विमर्श सिर्फ भाजपा विरोध पर केंद्रित है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा की राजनीति की बुनियाद नफरत एवं बंटवारा है और भाजपा का विरोध जायज है लेकिन आदिवासी मूलवासियों के संसाधनों की लूट के मामले में सभी सत्ताधारी दल बराबर के भागीदार नजर आते हैं। ऐसे में बुद्धिजीवियों द्वारा सिर्फ भाजपा के लिए “डबल बुजडोजर सरकार” एवं “अदानी अंबानी की सरकार” जैसे जुमलों का इस्तेमाल करना समाज को गुमराह करने वाला प्रतीत होता है।
जमीन एवं संसाधनों के लूट का सवाल गाजा से लेकर गोंदलपुरा तक है। इस लूट में तमाम सत्ताधारी चाहें वो ट्रंप हो या मोदी या हेमंत सोरेन एवं तमाम कम्पनियां अदानी, अंबानी, टाटा, विप्रो एक साथ नजर आते हैं।
Report by Dheeraj by email. यह आलेख लेखक व प्रेषक का निजी विचार और संकलन है। इस आलेख के लिये न्यूजमेल डॉट इन जिम्मवार नहीं है।