प्रधान मंत्री मोदी की मणिपुर यात्रा पर वहां के लोगों की प्रतिक्रिया : पॉलिटिकल माइलेज लेने आये हैं मोदी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में दो साल से जारी जातीय हिंसा के बाद पहली बार राज्य का दौरा किया, जिस वजह से कई स्थानीय नागरिकों के मन में मिश्रित भावनाएँ हैं—कुछ लोगों में उम्मीद तो कईयों में निराशा और गुस्सा भी दिखा।
मोदी के दौरे पर जनता की प्रतिक्रिया
इंफाल से कांगला फोर्ट तक की सड़कों को सजाया गया और सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई।बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के होर्डिंग्स से शहर की सूरत बदली गई, पर स्थानीय नागरिकों—खासकर हिंसा से प्रभावित और विस्थापित लोगों—का दर्द अभी भी बाकी है।
कई लोग कहते हैं: “इतना लंबा इंतजार क्यों?” हिंसा के शुरुआती दिनों में प्रधानमंत्री का आना जरूरी था, लेकिन अब दो साल बाद यह यात्रा आ रही है।
विस्थापितों की मांग व पीड़ा
हजारों लोग आज भी राहत कैंपों में रह रहे हैं, जिनमें बच्चे, महिलाएँ और बुजुर्ग शामिल हैं।
अधिकतर संगठनों ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के जल्द पुनर्वास की मांग लंबे समय से की है, जिसे अब प्रधानमंत्री की योजनाओं में शामिल किया गया है।
राहत कैंप में रहने वाले यात्रियों ने कहा कि उनका सबसे बड़ा सपना है अपने घर लौटना और सामान्य जिंदगी पाना।

पीएम मोदी का संदेश
प्रधानमंत्री ने हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, राहत शिविरों में लोगों से मुलाकात की और 8,500 करोड़ रुपये के विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया।
मोदी ने आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार मणिपुर की शांति और विकास के लिए हर संभव कदम उठाएगी।
उन्होंने कहा कि मणिपुर में शांति जरूरी है और राज्य की महिलाएँ आर्थिक प्रगति की अगुवा हैं।

विरोध और उम्मीद
भाजपा समर्थकों ने प्रधानमंत्री का स्वागत किया, लेकिन कांग्रेस और अन्य संगठनों ने इस दौरे को ‘राजनीतिक रणनीति’ बताया और विरोध प्रदर्शन किया।
कई लोग आशा व्यक्त करते हैं कि मोदी की यात्रा से राहत का रास्ता खुलेगा, जबकि कईयों ने कहा—”अगर वह बिना कार्रवाई किए लौट गए तो हमारी उम्मीदें टूट जाएँगी”।कुकी-जो समुदाय ने प्रधानमंत्री के स्वागत का ऐलान किया, वहीं मैतेई समुदाय के संगठन ने दौरे को राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कहा।
मणिपुर के लोग अब प्रधानमंत्री से शांति और पुनर्वास के लिए ठोस कार्रवाई की उम्मीद लगाए बैठे हैं।मणिपुर में प्रधानमंत्री मोदी के आगमन पर, कुकी-जो समुदाय के कई संगठनों ने उनके स्वागत के लिए आयोजित डांस कार्यक्रम का विरोध किया। इम्फाल हमार डिसप्लेस्ड कमेटी का कहना है कि प्रधानमंत्री को भव्य स्वागत समारोह के स्थान पर राहत कैंपों में रह रहे हिंसा पीड़ितों से बातचीत करनी चाहिए। चूराचांदपुर स्थित गंगटे स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ने भी कहा—”हम अपनी आंखों में आंसू लिए नाच नहीं सकते। हमारा शोक अभी खत्म नहीं हुआ है, हमारे घाव भरे नहीं हैं, हम खुश होकर नृत्य नहीं कर सकते।”

इम्फाल हमार डिसप्लेस्ड कमेटी ने साफ किया कि ज़रूरत है प्रधानमंत्री द्वारा विस्थापित लोगों से सीधे संवाद की, न कि समारोहों की। लगातार मांग की जा रही है कि प्रशासनिक समाधान—जैसे कुकी क्षेत्रों के लिए अलग व्यवस्था—प्रधानमंत्री की यात्रा में शामिल हो।

चूराचांदपुर के छात्र संगठन ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री की मौजूदगी से ज़रूर पीड़ित समुदाय को अपनी पीड़ा और शिकायतें साझा करने का मौका मिलेगा। वहीं, कुकी समुदाय की सर्वोच्च संस्था, कुकी इंपी मणिपुर ने कहा कि दौरा स्वागत योग्य है, लेकिन इसे समुदाय की सामूहिक आकांक्षाओं को पहचान और न्याय देने का माध्यम भी होना चाहिए। संगठन ने प्रशासनिक समाधान की स्पष्ट मांग दोहराई: “समयिक राहत उपायों से स्थायी समाधान नहीं होगा।”

इसी बीच, इम्फाल घाटी में भी कई लोग चाहते हैं कि प्रधानमंत्री उनकी समस्याओं को सुनें और सड़क सुरक्षा तथा आवाजाही की गारंटी दें। 2023 से चली आ रही हिंसा में 260 से ज़्यादा लोगों की मौत और हजारों लोग बेघर हुए हैं; राष्ट्रपति शासन लागू है और राज्य विधानसभा निलंबित है.

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