यौन उत्पीड़न मामले में साहित्य अकादेमी की कार्रवाई अवैध, दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को बहाल किया

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने साहित्य अकादेमी द्वारा की गई उस कार्रवाई को अवैध और प्रतिशोधात्मक करार दिया है, जिसमें 2018 में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला कर्मचारी की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। अदालत ने कहा कि यह कदम शिकायत दबाने और सचिव को जांच से बचाने के लिए उठाया गया था।

अदालत ने स्पष्ट किया कि सचिव संस्था के प्रधान कार्यकारी अधिकारी हैं और पॉश अधिनियम 2013 की धारा 2(g) के अनुसार ‘नियोक्ता’ की श्रेणी में आते हैं, इसलिए लोकल कंप्लेंट्स कमेटी (एलसीसी) को ही इस मामले की जांच का अधिकार है, न कि इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी (आईसीसी) को।

हाईकोर्ट ने 14 फरवरी 2020 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें महिला की सेवाएं समाप्त की गई थीं, और उसे वेतन सहित बहाल करने का निर्देश दिया। साथ ही अकादेमी को लंबित वेतन चार सप्ताह के भीतर चुकाने को कहा।

पीड़िता का कहना था कि सचिव ने लगातार यौन उत्पीड़न किया और आईसीसी पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया गया। मामले के दौरान अकादेमी ने महिला को नौकरी से निकालने के साथ अदालत के अंतरिम आदेशों की भी अनदेखी की।

गौरतलब है कि सचिव को इस दौरान कई सरकारी सम्मान और दायित्व मिलते रहे। अदालत ने टिप्पणी की कि एक प्रमुख सांस्कृतिक संस्था को पारदर्शिता और जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी, न कि शिकायत दबाने की कोशिश करनी चाहिए थी।

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