दिल्ली: शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिय नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) मामले की पुनर्विचार याचिका को कर दिया। इससे पहले कोर्ट ने 2015 में भी एनजेएसी को खारिज किया था,जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के मामले में फिर से कोलेजियम व्यवस्था लागू हो गई थी। अदालत ने केंद्र सरकार के निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता बाधित होगी।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया। संवैधानिक पीठ ने 2015 में 99वें संविधान संशोधन एक्ट की ओर से लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) एक्ट को खारिज कर दिया था। अगर यह कानून लागू होता तो जजों की नियुक्ति के लिए सामाजिक संगठनों और नेताओं के हस्तक्षेप अनिवार्य हो जाता।
मुख्य न्यायाधीश गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक खंडपीठ ने कहा कि याचिका को देरी के आधार पर खारिज किया गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि याचिका में कुछ खास नहीं है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर करने में 470 दिनों की देरी हुई है। इस पर कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं दिया गया है। पुनर्विचार याचिका केवल देरी के आधार पर खारिज की जा सकती है।
एनजेएसी अधिनियम, 2014 अगर पास हो जाता तो न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के स्तर पर सरकार की एक प्रमुख भूमिका होती। पांच जजों की खंडपीठ ने इसे न्यायपालिका की आजादी में हस्तक्षेप करने का प्रयास माना था। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच ने 16 अक्टूबर 2015 को इसे असंवैधानिक कहकर खारिज कर दिया था। केंद्र सरकार 22 साल पुराने कॉलेजियम सिस्टम को हटाकर इस एक्ट को लागू करने की योजना थी।