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सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल बोले- सर्जिकल स्‍ट्राइक को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की जरूरत नहीं थी

चंडीगढ़: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भी पाकिस्तान की तरफ से हमलों में कोई कमी नहीं आई है। इस दौरान कश्‍मीर के उड़ी में 2 साल पहले सैन्‍य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्‍ट्राइक किया था और पाकिस्‍तान के कब्जे वाले कश्‍मीर में आतंकियों के कई लॉन्‍च पैड्स ध्वस्‍त कर दिए थे। सर्जिकल स्‍ट्राइक को देशभर में खूब प्रचारित प्रसारित किया गया। 

इतना ही नहीं केंद्र सरकार पर सेना की इस सफलता का श्रेय लेने की कोशिश का आरोप भी लगा। इन सबके बीच अब सेना के एक पूर्व अधिकारी ने भी सर्जिकल स्‍ट्राइक के प्रचार-प्रसार पर सवाल उठाए हैं। 

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने हालांकि पाकिस्‍तान के कड़ा संदेश देने के लिए 2016 के सर्जिकल स्‍ट्राइक को जरूरी बताया, पर उन्‍होंने इसके ‘राजनीतिकरण’ को लेकर भी आगाह किया। उन्‍होंने कहा कि उड़ी हमले के बाद पाकिस्‍तान को कड़ा संदेश देना जरूरी था। सेना की सफलता पर खुशी भी स्वाभाविक है। लेकिन इसका लगातार प्रचार-प्रसार ठीक नहीं है।

मोदी सरकार गाहे बगाहे सर्जिकल स्ट्राइक को इस तरह प्रचारित करती रही है जैसे कि भारत की सेना ने पहली बार इस तरह की कार्रवाई की हो। राहुल गांधी दावा करते रहे हैं कि यूपीए के शासन काल में भी सर्जिकल स्ट्राइक सेना द्वारा की गई थी लेकिन तत्कालीन सरकार ने मोदी सरकार की तरह दिखावा नहीं किया। 

सर्जिकल स्ट्राइक के प्रचार पर सवाल उठाने वाले जनरल हुड्डा उस वक्त नॉर्द्रन सेना के कमान प्रमुख थे जब भारतीय सेना ने 2016 में सर्जिकल स्‍ट्राइक किया था। उन्‍होंने यह भी कहा कि नियंत्रण रेखा पर पाकिस्‍तान की ओर से होने वाली उकसावे की कार्रवाई और निरंतर संघर्ष विराम उल्‍लंघन को देखते हुए सेना का सतर्क व सक्रिय रहना जरूरी है। 

जनरल हुड्डा यहां सैन्य साहित्य महोत्सव 2018 के पहले दिन शुक्रवार को ‘सीमा पार अभियानों और सर्जिकल स्ट्राइक की भूमिका’ विषय पर चर्चा में बोल रहे थे। इसमें सेना के पूर्व जनरलों और कमांडरों ने भी हिस्‍सा लिया। कार्यक्रम में शामिल हुए दिग्‍गज अधिकारियों ने सैन्य अभियानों के ‘राजनीतिकरण’ के खिलाफ आगाह किया।

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