canned_air

बंद डिब्बों में बिकने लगी है शुद्ध हवा

बोलियां लग रही हैं और खरीददार दौड़े आ रहे हैं. नहीं आ पा रहे हैं तो मौजूदा संचार क्रांति उनके लिए वरदान सिद्ध हो रहा है. आॅनलाइन अब शु़द्ध हवा बंद डिब्बों मंे बिकने लगी है. पानी के बोतल के जैसे विभिन्न ब्राॅन्ड हैं, उसी तरह हवा के भी बॅं्रान्ड बनते जा रहे हैं. अपने एक सहकर्मी श्री अशोक कुमार शुक्ला जी को यह बात बताई तो हँसने लगे. पानी बिकने की बात सुनकर आज से बीस साल पहले हमारे ही गांव के राजनाथ काका भी ऐसे ही हँसे थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि पानी भी बेचे जाने की चीज है. आखिर वे विश्वास भी कैसे करते, गांव-शहर में पानी कभी बिकता तो था नहीं पहले. गांव में तो कुंआ, तालाब, आहर जैसे जलस्त्रोतों से पानी देने की पुरानी परम्परा रही है. और बात यदि पीने की हो तो सिर्फ पानी कभी नहीं, साथ में और कुछ नहीं तो गुड़ का एक ढेला ही. लेकिन सच है कि पानी की तरह हवा भी बिक रही है, अपनी गुणवत्ता के अनुरूप दामों में. 

उत्तराखंड के पहाड़ों की शुद्ध हवा ‘हिमालयन फ्रेश एयर से भरे डिब्बे’के नाम से बिक रहे हैं. दस लीटर हवा के एक डिब्बे की कीमत है, करीब 800 रुपये. छूट के इस जमाने में यह 550 रुपये में उपलब्ध है. यह भी जानिए कि इस डिब्बे से 160 बार सांस ली जा सकती है. दिल्ली जैसे एनसीआर में शुद्ध हवा की मांग ज्यादा है. इसके साथ ही उत्तरप्रदेश के प्रदूषण से जूझ रहे जिले से भी डिब्बे बंद हवा की मांग हो रही है. धीरे-धीरे दूसरे जगह के लोग भी इसकी मांग करने लगेंगे. विदेशों में शुद्ध हवा बेचने का कारोबार खूब चल रहा है. चीन से लेकर पश्चिम के कई देशों में डिब्बे बंद हवा की मांग है. इसके पक्ष में कारोबारी तर्क दे रहे हैं कि शुद्ध हवा और अॅाक्सीजन में काफी अंतर है. शुद्ध हवा में आॅक्सीजन, नाइट्रोजन के साथ दूसरे प्राकृतिक तत्व विद्यमान रहते हैं. इससे शरीर को ज्यादा ताकत व स्फूर्ति मिलती है. इसलिए ऐसी शुद्ध हवा को किसी भी समय सांस के जरिए लिया जा सकता है. जबकि आॅक्सीजन का प्रयोग प्रायः मेडिकल इस्तेमाल में होता है. 

बाजार तो बाजार है, लाभ के लिए कुछ भी बिक सकता है. सवाल है कि ऐसी स्थिति आ ही क्यों रही है. भयावहता जितनी बड़ी होगी, बाजार में कारोबारी भी उतने ही उतरेंगे. ऐसा नहीं कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और धरती के प्रदूषण के भयावह परिणाम/ प्रभाव के बारे में हमें जानकारी नहीं है. लेकिन इस पर किये जाने वाले सारे प्रयास या तो दिखावे साबित हुए हैं या नाकाफी. परिणाम यह है कि दुनिया भर में हर साल करीब 90 लाख लोग सलाना मौत के मंँुह में असमय ही चले जाते हैं. हमारे देश में भी यह संख्या कम नहीं थी. 2015 में ही यह संख्या 25 लाख थी, भविष्य के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है. बहुत पहले ही अंतर्राष्ट्रीय जर्मनी की मेडिकल संगठन ‘ द लांसेट कमीशन आॅन पाॅल्यूशन ऐंड हेल्थ’ की रिपोर्ट ने चेताया था कि जल्द ही प्रदूषण पर लगाम नहीं लगाया गया तो न सिर्फ जीना दूभर होगा बल्कि विकास व और समृद्धि की सारी महत्वकांक्षाएं यों ही पड़ी रह जायेंगी. 

हवा से लेकर पानी तक सबकुछ प्रदूषित है. पर्यावरणीय प्रदूषण से होने वाली मौतें युद्ध, हिंसा, धूम्रपान, भूख या प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौतों से ज्यादा होती हैं. अब तो यह भी साबित हो चुका है कि एड्स, टीबी, मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों से भी अधिक मौतें प्रदूषण से हो रही हैं. जहाँ तक हवा के प्रदूषित होने की है. इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 90 लाख हुई मौतों में से अकेले 65 लाख मौत प्रदूषित हवा के कारण हुई है. इस प्रदूषण का कारण परिवहन, उद्योग से लेकर घरेलू आग तक था. 18 लाख लोग प्रदूषित जल से मरे थे. अपने देश की बात करें तो 25.1 लाख मौतें 2015 में हुई हैं प्रदूषण से.  पूरी दुनिया में हुई मौतों का अकेले 28 प्रतिशत है हमारे देश में . कुल हुई मौतों में सबसे ज्यादा मौतें हवा के प्रदूषित होने से हुई है. अकेले हवा के प्रदूषण से 18.1 लाख, जल प्रदूषण से 6.4 लाख मौतों के साथ हमारा देश शीर्ष पर था. इस साल नवम्बर में, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आकड़े के अनुसार देश के 65 शहरों की आबोहवा का परीक्षण से पता चला कि इसमें से 60 शहर की हालत खराब है. दिल्ली और इसके आसपास का इलाका तो बेहद प्रदूषण की चपेट में है. यह आकड़ा तो उन शहरों का है, जहाँ प्रदूषण मापने की व्यवस्था है, शेष शहरों के हलात की जानकारी ही नहीं है. यदि देश भर के शहरों के छानबीन की सरकारी व्यवस्था हो तो परिणाम चैकाने वाले होंगे.

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड के अलावे भी समय-समय पर डब्ल्यूएचओ की संबंधित विषय पर आई रिपोर्ट हमें डराती हैं. प्रदूषण बच्चों को न सिर्फ बीमार बना रहा है बल्कि मौत का कारण भी बन रहा है. डब्ल्यूएचओ के निदेशक ने कहा था कि प्रदूषित वातावरण छोटे बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है. इसका प्रभाव माँ के गर्भ से ही शुरू हो जाता है. प्रदूषित हवा व जल विकसित होते अंगों व रोग प्रतिरोधक क्षमता को गहरे रूप से प्रभावित करती हैं. पाँच साल से कम में हुई 4 मृत्यु में से 1 का कारण अस्वस्थ पर्यावरण है. दुनिया का कोई ऐसा शहर नहीं बचा है जो वायू प्रदूषण की चपेट में आने से बचा हो. लेकिन कुछ सालों में यह स्थिति काफी बिगड़ी है. पिछले कुछ सालों में सांस लेने योग्य हवा की गुणवत्ता काफी प्रभावित हुई है. शहर के साथ ही हमारे घर-द्वार भी अब प्रदूषण से मुक्त नहीं हैं. बाहर के वायु प्रदूषण की जानकारी हमें आसानी से मिल जाती है या अनुभव हो जाता है लेकिन घर के अंदर का प्रदूषण पता नहीं चलता. जबकि वैज्ञानिक कहते हैं कि यह बाहरी प्रदूषण से 10 गुणा ज्यादा हो सकता है. ‘डेक्कन क्राॅनिकल डाॅट काॅम’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में सांस संबंधी गंभीर बीमारी के कारण होने वाली मौतों में से एक चैथाई मौतें भारत में ही होती हैं. इसका कारण भी धूम्रपान व वायुप्रदूषण ही है. 

प्रदूषण के लिए जिम्मेवारी तय की जाए तो तीन ही मुख्य स्त्रोत हैं. परिवहन, निर्माण व इंधन. ये तीनों दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे हैं. परिवहन का हाल सामने है. हमारे देश में सर्वोच्च न्यायालय तक को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा. इस साल ही दिवाली में पटाखे पर आंशिक रोक लगी पर परिणाम शुन्य ही रहा. शहर में लोग मास्क लगा कर चलते देखे जा रहे हैं. दिल्ली में गाड़ियों के आवागमन पर रोक लगाने के हरसंभव प्रयास हुए लेकिन सफलता नहीं मिली. आॅटोमोबाइल लाॅबी इतनी हावी है कि सरकार तक को प्रभावित कर लेती है. गांव से लेकर शहर तक चैड़ी सड़के बन रही हैं, हर घर में दो से तीन गाड़ियां आम हैं. जाहिर है सड़क पर जितनी गाड़ियां दौड़ेंगी, उतना ही प्रदूषण बढ़ेगा. इस पर किसी को ध्यान नहीं है. हर कोई ज्यादा से ज्यादा सुविधा चाहने लगा है. घर में गाड़ी होते हुए भी और सुविधा की चाहत बरकरार है. डिब्बे में हवा बिकने की बात सुन कर हँसने वाले विज्ञान से स्नातकोत्तर श्री अशोक शुक्ला जी स्कूटी से कार पर चलने को ब्याकुल नजर आते हैं. बगल से गुजरने वाली हर गाड़ी को देखकर आह भरते हैं कि यदि हमें महीने में 25 हजार भी आमदनी की गारंटी हो जाए, तो हम कार तुरंत ले लें. गौर करने की बात है कि जब पच्चीस हजार कमाई की चाहत वाले समान्य आमदी भी कार सपना देखता है तो भविष्य में क्या होने वाला है? दूसरी ओर प्रदूषण, जो पेड़-पौधों के कार्बन डाइआॅक्साइड को सोखने की क्षमता को कम करते हैं. इससे  आॅक्सीजन का निकलना प्रभावित होगा ही. गाड़ी के धुंए ही हानिकारक नहीं हैं बल्कि उनके पहियों से निकलने वाले धुल कण कम खतरनाक नहीं हैं. ये महीन धुलकण सांस के लिए बेहद खतरनाक होते हैं. वाहनों से निकला प्रदूषण ज्यादा जानलेवा होता है. किसी ने पटाखों की ब्रिकी पर रोक सुना होगा लेकिन क्या कभी गाड़ियों की ब्रिकी पर रोक सरकार से या न्यायालय से लगी है? कभी नहीं? संभावना भी कम है. बल्कि अब तो पांच हजार में कोई भी गाड़ी घर ले जाने की सुविधा है. इतना ही नहीं इसके लिए कर्ज देने वाली कम्पनियां मोबाइल से कर्ज लेने के लिए हर एक को नाको दम किये रह रही हैं. 

निर्माण का क्षेत्र भी ऐसा ही है. निर्माण कार्य को विकास का द्योतक माना जाता रहा है. यह भी प्रदूषण को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाता है. तीसरा स्त्रोत जो ऊर्जा का है, यह तो और भी खतरनाक है. कोलया, तेल के साथ ही दूसरे उपयोग में आने वाले स्त्रोत प्रदूषण को काफी बढ़ाते हैं. प्रदूषण का हाल यह है कि अब दूसरे देशों से आनेवाले पक्षियों ने भी डरना शुरू कर दिया है. पूरे देश में, हमारे झारखंड में भी साइबेरिया सहित कई सुदूर देशों से आने वाले पंक्षी अब आना कम कर रहे हैं.  उनके लिए यहां की धरती व आबोहवा अनुकूल नहीं रही. देश के साथ ही वन व पर्यावरण विभाग के संबंधित आकड़े ही बताते हैं कि प्रवासी परिंदों की संख्या लगातार कम हो रही है. अब तो इंसान भी पलायन को मजबूर हो रहे हैं, और सुरक्षित स्थान की खोज में हैं. लेकिन वह सुरक्षित स्थान मिले तब तो, मुश्किल है. दुनिया भर के सत्ताधीश पर्यावरण के सवाल पर संजीदे ढंग से बात करते दिखते हैं लेकिन इसके उपायों के लिए कारगर कदम नहीं उठाते. जब तक अर्थव्यवस्था की सारी जिम्मेवारी उद्योगों पर रहेगी और उद्योग प्राकृतिक दोहन पर निर्भर रहेंगे, स्थिति में सुधार असंभव है. विकास  का माॅडल बदले बिना सुधार की गुजांइश नहीं है. हम जंगल, पहाड़ खनिज, जमीन, अपनी धरती सब को बर्बाद कर विकास के पथ पर दौड़ना चाहते हैं, इसका परिणाम तो भयावह होगा ही. सबसे अधिक सहनशक्ति रखने वाली धरती भी अब जवाब दे रही है. 

धरती की महता हर काल व समय में रही है, यही कारण है कि धरती को माँ का दर्जा प्राप्त है. यह यों ही नहीं है बल्कि यह धरती ही है, जिस पर हमारी इतनी पुरानी सभ्यता हजारों वर्षों से सारे प्राकृतिक तत्वों के साथ सह-अस्तित्व रख कर जीवन को  टिकाऊ बनाने में सफल होती रही है. धरती जो हमें अन्न देती है, जल स्त्रोत व शुद्ध हवा देती है. पेड़-पौधे और अन्य वनस्पतियां भी तो इसी धरती की देन हैं. यह धरती ही है, जिस पर हर सांस लेने वाला प्राणी निवास करता है. धरती के बिना जिंदगी की कल्पना भी असंभव है. हवा की ताजगी हो या कि जल की चमक, घने जंगलों के बीच का अंधेरा हो या कि पेड़ के पत्तों पर गिरकर टिका ओस सबकी महता एक से बढ़ कर एक है. यही कारण है कि धरती की वंदना की जाती है, विशेष कर आदिवासी समुदाय तो धरती को ही सबकुछ मानता रहा है. खुले आकाश में भी, प्रकृति  के      सानिध्य में यदि कोई धरती पर नाच-गा सकता है तो वह आदिवासी समुदाय ही है. प्रकृति के साथ आदिवासियों के रिश्ते से सबक लेने के जरूरत है, जब तक ऐसा नहीं होगा खतरा का गहराते जाना तय है. प्रकृति हमें बार-बार चेता रही है. समय से चेतने की जरूरत है, नहीं तो नष्ट हो जाना तय है. -अरविन्द अविनाश

Scroll to Top