global-warming

बदलने लगा है स्वाद भी ग्लोबल वार्मिंग से

पुरखे जमाने से यह कहावत कही जाती रही है कि समय के साथ भोजन की तासीर भी बदलती रहती है. अपने अनुभव से आप भी इस बात को परख सकते हैं. लेकिन जब चाहत के विपरीत यह बात होने लगे तो चैकने के साथ ही सावधान होने की जरूरत आ पड़ती है. और आज यही सबकुछ होते जा रहा है. समान्य घरों में ही नहीं बड़े कहे जाने वाले घरों में भी यह बात देखने को एक समान मिल रही है. हर घर से एक ही शिकायत है कि भोजन में कोई स्वाद नहीं है. इस पर ठहर कर सोचने की जरूरत है, कुछ लोगों ने तो इस पर काम भी शुरू कर दिया है.

सबसे पहले जिन लोगों ने ऐसा अनुभव किया और इसके निदान की ओर कदम बढाया वे हैं अनपढ़ कहे जाने वाले किसान. मौजूदा समय की मार के बीच भी वे इस गंभीर समस्या का निदान निकालने में लगे हैं. अपनी ओर से प्रयास के तहत वे अब दो तरह की खेती करने की ओर कदम बढा चुके हंै. स्वाद व सेहत को बरकरार रखने के लिए अब किसान दो तरह के फसल लगाने लगे हैं. अपने खाने के लिए देशी बीज, देशी खाद व देशी तकनीक का सहारा लेकर खाद्य पदार्थ के साथ ही दाल व मसाले पैदा कर रहे हैं, दूसरी ओर अर्थ के उपार्जन के लिए आधुनिक तकनीक, रसायनिक खाद व हाईब्रीड का प्रयोग कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह देखने को मिल रही है कि अब किसी को बताने की जरूरत नहीं रही कि आखिर भोजन, साग-सब्जी, फल के साथ ही दूध तक पहले के स्वाद से क्यांें रूठ गये हैं. इसका जवाब शहर से लेकर गांव तक में मिलने लगा है, मौजूदा समय की मार, जिसमें मौसम, ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही शंकर बीज, रसायनिक बीज, कीटनाशक के साथ ही आधुनिक तकनीक भी शामिल है. आगे और भी इसमें बदलाव की संभावना है.

वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि ग्लोबल वार्मिंग हमारे जीवन की जिन चीजों को बदलते जा रहा है या बदलने जा रहा है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण हमारा खान-पान है. इस रिपोर्ट में ब्रिटेन के चिकन का उदाहण दिया गया है. यह उदाहरण अकारण ही नहीं है बल्कि यह इसलिए क्योंकि यह रिपोर्ट लंदन से छपी है. यह जानना जरूरी है कि ब्रिटेन में चिकन टिक्का मसाला बहुत ही मशहूर है. यह ब्रिटेन का लोकप्रिय डिश है. रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि अब इसका स्वाद पहले जैसा नहीं रहेगा. इसका कारण भी बताया गया है, ताकि लोग इसे ठीक से समझ पायें. इसका कारण है कि अभी तक पोल्ट्री फार्म में मुरगों का जो दाना-चुग्गा खिलाया जाता है, वह आने वाले समय में पैदा होगा ही नहीं. यह सब होगा ग्लोबल वार्मिंग के कारण. इसके कारण मुरगों को कीड़े या काई इत्यादि खिलाने पड़ेंगे. जाहिर है इसका स्वाद पर असर होगा. इसके साथ ही मसाले, अनाज व दूसरी चीजें भी मिलना संभव नहीं होगा. जिस तरह यह जीव-जंतुओं को प्रभावित कर रहा है, वह हमारे स्वाद को भी प्रभावित करेगा. यह अनुभव तो हमसब आसपास की चीजें देख कर भी कर सकते हैं.

अपने यहाँ के खद्यान्नों की तुलना आज से की जाए तो साफ दिखता है कि पहले के अनाज, मसाले, सब्जियां उसी रूप में नहीं हैं. उनके स्वाद तो बदल रहे हैं साथ ही खाद्य पदार्थ भी मौलिक स्वरूप व स्वाद में हम से दूर जा रहे हैं. इसका परिणाम भी सामने है, जिसकी चर्चा हम सब आये दिन करते रहते हैं. –अरविन्द अविनाश

Scroll to Top