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‘नोटबंदी ने विकास, नौकरियों, बैंक कर्ज को नुकसान पहुंचाया’

नई दिल्ली: साल 2016 के नवंबर में की गई नोटबंदी के तुरंत बाद देश में आर्थिक गतिविधियों को नुकसान पहुंचा, जिससे उस वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) आंकड़ों पर भी असर हुआ, जबकि अगले साल की गर्मियों तक इसका असर खत्म हो गया। अमेरिकी थिंक टैंक नेशनल ब्यूरो ऑफ इकॉनमिक रिसर्च (एनबीईआर) द्वारा प्रकाशित अध्ययन से यह जानकारी मिली है। एनबीआईआर के ‘नकदी और अर्थव्यवस्था : देश की नोटबंदी के सबूत’ रिपोर्ट को हावर्ड के प्रोफेसरों गैबरियल चोटोरो रिच और गीता गोपीनाथ के साथ गोल्डमैन सैक्स की मुंबई में प्रबंध निदेशक प्राची मिश्रा, भारतीय रिजर्व बैंक के अभिनव नारायम, जानेमाने अर्थशास्त्री गोपीनाथ (जो अगले महीने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुख्य अर्थशास्त्री का पदभार संभालने वाले हैं) ने मिलकर तैयार किया है। 

रिपोर्ट में कहा गया, “नोटबंदी ने उस तिमाही में आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार को कम से कम 2 फीसदी का नुकसान पहुंचाया।”

वित्त वर्ष 2016-17 में देश की जीडीपी की दर 7.1 फीसदी रही थी, जो अनुमान से कम रही। 

इसमें अनुमान लगाया गया है कि साल 2016 के नवंबर और दिसंबर में देश की आर्थिक गतिविधियों में 3 फीसदी की गिरावट आई थी।

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