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अगड़ी जाति आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती

नई दिल्ली: अगड़ी जातियों (सामान्य वर्ग में आने वाले लोगों) को आर्थिक आधार पर नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। याचिका में संविधान (103वें) संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की मांग की गई। दिल्ली के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) यूथ फॉर इक्विलिटी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि संशोधन से संविधान की मूल संरचना का अतिक्रमण होता है। याचिकाकर्ता ने 1992 के इंदिरा साहनी मामले का हवाला दिया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आर्थिक मानदंड संविधान के तहत आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। 

याचिका के अनुसार, संविधान संशोधन (103वां) पूर्ण रूप से संवैधानिक मानक का उल्लंघन करता है। इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों द्वारा कहा गया था कि आर्थिक मानदंड आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। ऐसा संशोधन दोषपूर्ण है और इसे अवैध ठहराया जाना चाहिए क्योंकि इसमें फैसले का खंडन किया गया है। 

याचिकाककर्ता ने कहा कि संशोधन से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण के लिए तय की गई 50 फीसदी की ऊपरी सीमा का अतिक्रमण किया गया है। 

मौजूदा संशोधन के अनुसार, सामान्य श्रेणी के सिर्फ गरीबों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा। 

याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि जल्दबाजी में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित संविधान संशोधन लोकलुभावन कदम है, इसलिए इस पर तत्काल रोक लगा दी जाए क्योंकि इससे संविधान की मूल प्रकृति भंग होती है।

वर्तमान में 49.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है जिसमें 15 फीसदी अनुसूचित जातियों के लिए, 7.5 फीसदी अनुसूचित जनजातियों के लिए और 27 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। 

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