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आलोक वर्मा को सबक सिखाने के मूड में है केंद्र सरकार

नई दिल्ली : CBI निदेशक के पद से हटाए गए आलोक वर्मा की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। अधिकारियों ने बताया है कि सरकारी आदेश न मानने के लिए उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा सकती है। दरअसल, वर्मा को सीबीआई चीफ के पद से हटाकर फायर सर्विसेज, सिविल डिफेंस ऐंड होम गार्ड्स का चीफ बनाया गया था पर उन्होंने जॉइन करने से मना करते हुए इस्तीफा दे दिया था। बताया जा रहा है कि सरकार ने वर्मा का इस्तीफा अस्वीकार कर दिया है।

अधिकारियों ने बताया कि इस तरह निर्देश का पालन न करना अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के लिए सर्विस रूल्स का उल्लंघन माना जाता है। गौरतलब है कि गृह मंत्रालय (MHA) ने बीते दिनों वर्मा को फायर सर्विसेज, सिविल डिफेंस ऐंड होम गार्ड्स के महानिदेशक का चार्ज संभालने का निर्देश दिया था। सीबीआई चीफ के पद से हटाते हुए एक दिन बाद उन्हें नया कार्यभार संभालने का आदेश जारी हुआ था। 

हालांकि वर्मा ने निर्देश के तहत नया असाइनमेंट स्वीकार नहीं किया। गृह मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो उन्हें विभागीय कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इसके तहत पेंशन से संबंधित लाभ का निलंबन शामिल है। फिलहाल इस पर वर्मा की प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है। बुधवार को वर्मा को भेजे पत्र में MHA ने कहा, ‘आपको DG फायर सर्विसेज, सिविल डिफेंस ऐंड होम गार्ड्स पद पर तुरंत जॉइन करने का निर्देश दिया गया, इसे ठुकराते हुए आपने इसी महीने कार्मिक विभाग के सचिव को पत्र लिखकर कहा कि आपको 31 जुलाई 2017 को ही सेवाओं से रिटायर्ड समझा जाना चाहिए, जिस दिन आप 60 साल के हुए थे।’ 

दरअसल, वर्मा ने तर्क रखा था कि उन्होंने DG फायर सर्विसेज, सिविल डिफेंस ऐंड होम गार्ड्स पद के लिहाज से सेवानिवृत्ति की उम्र पार कर ली है। उन्होंने कहा कि वह तो 31 जनवरी 2019 तक सीबीआई डायरेक्टर के तौर पर सरकार की सेवा कर रहे थे क्योंकि यह निश्चित कार्यकाल था। CBI निदेशक का कार्यकाल 2 साल के लिए निश्चित होता है। 

आपको बता दें कि दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर वर्मा को CVC की सिफारिश पर पिछले साल अक्टूबर में सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया था। हालांकि बाद में 9 जनवरी को उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने उनके पद पर बहाल कर दिया। इसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय पैनल ने 2:1 के बहुमत से वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर के पद से हटाते हुए नया कार्यभार सौंपा। पैनल में चीफ जस्टिस की तरफ से जस्टिस एके सीकरी और कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे। खड़गे ने फैसले का विरोध किया था। 

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