ताजा खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल के हंगामे पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया। जबकि सीबीआई यह आरोप लगाते हुए अदालत गयी थी कि उसके काम में बाधा डाल कर, उसके अधिकारियों को हिरासत में लेकर पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की है, क्योंकि वह (सीबीआई) सर्वोच्च अदालत के आदेश/निर्देश पर ही काम कर रही थी। फिर भी सुप्रीम कोर्ट का तत्काल सुनवाई से इनकार करना क्या बताता है? यही तो कि उसे सीबीआई के आरोप, कि सम्बद्ध अधिकारी सबूतों को नष्ट कर रहे हैं, पर पूरा भरोसा नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा है कि आप इस बात के सबूत दीजिये; यदि वे पुख्ता हुए तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे।
वैसे ममता बनर्जी ने नया क्या किया? जो उनको और उनकी राजनीति जानते हैं, उनको तीन फरवरी की आधी रात को कोलकाता में हुए नाटक, जो इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी है, से शायद ही अचरज हुआ हो।
बेशक ममता बनर्जी का मुख्यमंत्री रहते हुए धरने पर बैठ जाना एक असहज स्थिति है। वह भी जब विधानसभा का सत्र चल रहा है; और आज (चार फरवरी को) बजट भी पेश होना है। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल यही काम कर चुके हैं। लेकिन थोडा और पीछे जाकर देखें, तो विपक्ष में रहते हुए सुश्री बनर्जी लगभग ऐसी ही हरकत करती रही हैं। एक बार राज्य सरकार के मुख्यालय ‘रायटर्स बिल्डिंग’ तक में धरने पर बैठ गयीं थीं। उस दौरान सड़क और चौराहों पर धरना तो आम बात थी। सिंगुर काण्ड पर आमरण अनशन कर चुकी हैं। और आप यह भी याद कर सकते हैं कि वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ ममता के उस लगभग अराजक अभियान में भाजपा को कुछ भी गलत नहीं लगता था, बल्कि तब वह उनके साथ थी। बाद में केंद्र की एनडीए (वाजपेयी) सरकार में मंत्री भी रहीं!
कोई यह भी याद कर सकता है कि कल तक तृणमूल कांग्रेस में रहे और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे अनेक नेता (एक प्रमुख नाम मुकुल रॉय) अब भाजपा में हैं; लेकिन उनके खिलाफ न तो सीबीआई ने कुछ किया, न ही भाजपा को उन पर लगे आरोपों से कोई कष्ट है।
यदि आप मोदी मुरीद हैं, तो कहेंगे कि ममता बनर्जी लोकतंत्र विरोधी हैं। कि संविधान की धज्जी उड़ा रही हैं। कि राजनीतिक लाभ के लिए नाटक कर रही हैं। कि जो मोदी/भाजपा विरोधी हैं, उनको इसमें केंद्र की भूमिका गलत नजर आयेगी। लगेगा कि केंद्र सीबीआई का दुरूपयोग कर रहा है। कि वह विपक्ष के नेताओं को राजनीतिक मकसद से परेशान कर रहा है। कि आप बंगाल में केन्द्रीय शासन लगाने के समर्थन भी करेंगे।
लेकिन बहुतेरे लोग इस घटनाक्रम को भिन्न तरीके से भी देख सकते हैं। वे यह सवाल तो पूछ ही सकते हैं कि आखिर सिर्फ पूछताछ के लिए राज्य के एक आला पुलिस अधिकारी के घर सीबीआई के 40 अधिकारियों की भारी भरकम टीम को जाने की क्या क्या जरूरत थी? कि मकसद कुछ और तो नहीं था? कि किसी राज्य में एक संदिग्ध व्यक्ति, जो एक बड़ा पुलिस अफसर भी है, के सरकारी आवास पर पूछताछ या उसे गिरफ्तार करने के मकसद (40 अधिकारियों की फ़ौज जाने का मकसद तो यही लगता है) से जाने के पहले क्या सीबीआई ने राज्य सरकार को सूचित किया था?
आम तौर पर तरीका तो यही है। कल्पना कीजिये कि सीबीआई की टीम किसी को गिरफ्तार करने या किसी से पूछताछ करने जाती है; और वहां वह व्यक्ति सीबीआई की टीम से उलझ जाता है, उसकी पहचान को चुनौती देता है, उस पर हमला ही कर देता है तो? इसी कारण ऐसी किसी मुहिम् पर जाने से पहले सीबीआई सथानीय पुलिस को बता देती है, जरूरी समझने पर सहायता मांगती है। मगर इस मामले में सीबीआई पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के ही आवास पर पहुँच गयी, बिना पुलिस को बताये। ऐसी हडबडी क्या थी, यह समझ से परे है।
यह तो तय है कि केंद्र को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि ममता बनर्जी अचानक इतना बड़ा कदम उठा सकती हैं।
उधर सुप्रीम कोर्ट ने सुश्री बनर्जी को अपने ड्रामा जारी रखने के लिए 24 घंटे का अतिरिक्त समय दे दिया है। वैसे उनके साथ पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का भी धरने पर बैठ जाना निहायत आपत्तिजनक और शर्मनाक है। इस तरह ममता जी ने भाजपा को यह आरोप लगाने का मौका दे दिया है कि बंगाल में प्रशासन तंत्र का राजनीतिकरण हो चूका है।
जो भी हो, यह स्थिति देश के लोकतंत्र, इसके फेडरल स्वरुप की सेहत के लिए अच्छे नहीं है। उभय पक्ष को इसे प्रतिष्ठा का सवाल न बना कर बीच का रास्ता निकालना चाहिए।