हमसे देश है-हममें देश है-हम देश हैं: देश सिर्फ जमीन या नक्शे को नहीं कहते, देश का हर जीवित प्राणी मुजस्सम देश है। हर व्यक्ति सजीव हो कर इतिहास की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से अपना दायित्व निभाए। यानी देश का हर व्यक्ति देश है – यानी हर व्यक्ति से देश है और हर व्यक्ति में देश है। ‘हम भारत के लोग’ के इस आदर्श का आईना है।
‘भारतीय संविधान’ के निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का अंतिम भाषण। यह भाषण उन्होंने दिया था – 25 नवंबर, 1949 को संविधान परिषद् की अंतिम बैठक में। यहाँ प्रस्तुत है उस भाषणके अंश।
26 जनवरी 1950 को, भारत एक स्वतंत्र देश होगा। उसकी स्वतंत्रता का क्या होगा? क्या वह अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखेगा या फिर वह इससे खो जाएगी?…ऐसा नहीं है कि भारत कभी एक स्वतंत्र देश नहीं था। मुद्दा यह है कि वह एक बार अपनी स्वतंत्रता खो चुका है। क्यावह इसे दूसरी बार भी खो देगा?
26 जनवरी 1950 को, भारत इस अर्थ में एक लोकतांत्रिक देश होगा कि उस दिन सेभारत में जनता की सरकार, जनता के द्वारा और जनता के लिए होगी। ..उसके लोकतांत्रिक संविधान का क्या होगा? क्या वह इसेबनाए रखने में सक्षम होगा या फिर वह इससे खो जाएगा? यह दूसरा विचार है जोमेरे दिमाग में आता है और मुझे पहले की तरह चिंतित करता है।
लोकतंत्र में नायक-पूजा : तानाशाही का निश्चित मार्ग
ऐसानहीं है कि भारत को नहीं पता था कि लोकतंत्र क्या है। एक समय ऐसा भी था जबभारत गणराज्यों से भरा था, और यहाँ तक कि जहाँ भी राजतंत्र थे, वे या तोनिर्वाचित थे या सीमित थे। वे कभी पूर्ण नहीं थे।…भारत नेउस लोकतांत्रिक प्रणाली को खो दिया। क्या वह इसे दूसरी बार भी खो देगा? …भारत जैसे देश में यह काफी संभव है। जहाँ लंबे समय सेइस्तेमाल की जाने वाली लोकतांत्रिक प्रणाली को नया माना जाए, वहाँलोकतंत्र को तानाशाही में बदल जाने का खतरा होता है।
यदि हम लोकतंत्र को केवल एक रूप में बनाए रखने के बजाय उसे एक तथ्यात्मक रूप देना चाहते हैं तो हमें क्या करना चाहिए?सबसे पहले हमें सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करनेके संवैधानिक तरीकों को मजबूती से पकड़कर इन्हें पूरा करना चाहिए। इसकामतलब है कि हमें क्रांति के खूनी तरीकों को छोड़ देना चाहिए। …जब आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के संवैधानिकतरीकों के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ा गया था, तो असंवैधानिक तरीकों के लिएपर्याप्त औचित्य था। लेकिन जहाँ संवैधानिक तरीके खुले हैं, असंवैधानिकतरीकों के लिए कोई औचित्य नहीं हो सकता।
दूसरीचीज़ हमें ‘जॉन स्टुअर्ट मिल’ के उस कथन को अवश्य याद रखना चाहिए कि “किसी भी महान व्यक्ति के पैरों पर अपनी आज़ादी नरखें, और न ही उस पर इतना विश्वास करें जो उसे आपके संस्थानों को नष्ट करनेमें सक्षम बनाता है।” उन महान पुरुषों के लिए आभारी होने में कुछ भी गलतनहीं है, जिन्होंने देश के लिए अपने अपने पूरे जीवनकाल भर सेवाएँ दी हैं।लेकिन कृतज्ञता की भी सीमाएं हैं। …कोई भीराष्ट्र अपनी स्वतंत्रता के मूल्य पर कृतज्ञ नहीं हो सकता।यह सावधानीकिसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के मामले में कहीं अधिकआवश्यक है। भारत में भक्ति, भक्ति मार्ग या नायक-पूजा राजनीति में अप्रत्याशित एवं अद्वितीय भूमिका निभातीहै। धर्म में भक्ति आत्मा के उद्धार का मार्ग हो सकता है, लेकिन राजनीतिमें भक्ति या नायक-पूजा गिरावट और तानाशाही के लिए एक निश्चित मार्ग है।
तीसरीचीज़ हमें केवल राजनीतिक लोकतंत्र के साथ संतुष्ट नहीं होना है। हमें अपनेराजनीतिक लोकतंत्र को भी एक सामाजिक लोकतंत्र बनाना चाहिए। राजनीतिकलोकतंत्र तब तक सही ढंग से सक्रिय और सक्षम नहीं हो सकता जब तक कि इसमेंसामाजिक लोकतंत्र का आधार न हो।
सामाजिक लोकतंत्र
सामाजिकलोकतंत्र जीवन का एक साधन है जो जीवन के सिद्धांतोंके रूप में स्वतंत्रता, समानता और आपसी बंधुत्व को पहचानता है। स्वतंत्रता, समानता और आपसी बंधुत्व के इन सिद्धांतों को अलग-अलग चीज़ों के रूप मेंनहीं माना जा सकता। वे एक संघ के रूप में कार्य करते हैं कि एक को दूसरे सेअलग कर देना अर्थात् लोकतंत्र के उद्देश्य को हराना है।
स्वतंत्रताको समानता से अलग नहीं किया जा सकता है, समानता को स्वतंत्रता से अलग नहींकिया जा सकता है और न ही इन दोनों को आपसी बंधुत्व से अलग किया जा सकताहै। समानता के बिना स्वतंत्रता, कई लोगों पर कुछ लोगों की सर्वोच्चता कोजन्म देगी। स्वतंत्रता के बिना समानता व्यक्ति की पहल को मार देगी। आपसीबंधुत्व के बिना भी स्वतंत्रता कई लोगों पर कुछ की सर्वोच्चता को जन्मदेगी। आपसी बंधुत्व के बिना, स्वतंत्रता और समानता प्राकृतिक चीज़ें नहींबन पाएँगी और तब उन्हें लागू करने के लिए किसी ताकत की आवश्यकता पड़ेगी।
भारतीय समाज में दोचीज़ों का पूर्ण अभाव है। एक है – समानता। भारत की सामाजिकपृष्ठभूमि में वर्गीकृत असमानता के सिद्धांत के आधार पर एक समाज है जिसमेंएक तरफ कुछ ऐसे लोग हैं जिनके पास बहुत अधिक धन है और दूसरी तरफ काफी ऐसेलोग भी हैं जो बहुत गरीबी में जी रहे हैं।
विरोधाभास खत्म करें
26 जनवरी 1950 को, हम विरोधाभासों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं।राजनीतिक जीवन में हमारे पास समानता होगी और सामाजिक व आर्थिक जीवन मेंहमारे पास असमानता होगी। राजनीति में हम एक व्यक्ति-एक मत के सिद्धांत औरएक मत-एक मूल्य के सिद्धांत को मान्यता देंगे, जबकि हमारे सामाजिक और आर्थिकजीवन में, हम, हमारे सामाजिक और आर्थिक ढाँचे के कारण, एक व्यक्ति-एकमूल्य के सिद्धांत से इनकार करते रहेंगे। कब तक हम विरोधाभासों के इस जीवनको जीना जारी रखेंगे? कब तक हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता सेइन्कार करते रहेंगे? यदि हम इसे लंबे समय तक अस्वीकार करते हैं, तो हम अपनेराजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डालकर ऐसा करेंगे। हमें इस विरोधाभास कोजल्द से जल्द दूर करना चाहिए अन्यथा असमानता से पीड़ित लोग उसराजनीतिक लोकतंत्र की संरचना को ही ख़त्म कर देंगे जो संसद को श्रमसाध्यरूप से निर्मित करना है।
दूसरीबात, आपसी बंधुत्व के सिद्धांत की मान्यता।बंधुत्व का अर्थ है सभी भारतीयों के भीतर भाईचारेकी भावना। यह वह सिद्धांत है जो सामाजिक जीवन को एकता और मज़बूती प्रदानकरता है।
हम भारत के लोग
मुझेयाद है कि भारतीय राजनैतिक बुद्धिजीवियों ने “भारत के लोगों” कीअभिव्यक्ति का विरोध किया। उन्होंने “भारतीय राष्ट्र” की अभिव्यक्तिपसंद की थी। मेरा पक्ष है कि ऐसा मानने में कि हम एक राष्ट्र हैं, हम एकमहान भ्रम को संजो रहे हैं। हज़ारों जातियों में विभाजित लोग एक राष्ट्रकैसे हो सकते हैं? इस बात को जितनी जल्दी हम समझें कि हम दुनिया केसामाजिक और मनोवैज्ञानिक मायनों में अभी तक एक राष्ट्र नहीं हैं, हमारे लिएबेहतर है। और केवल तभी हम एक राष्ट्र बनने की आवश्यकता का महत्व समझेंगेऔर लक्ष्य को साकार करने के तरीकों के बारे में गंभीरता से सोचेंगे। …भारत में जातियाँ हैं और ‘जातियां’ राष्ट्र विरोधी होती हैं। क्योंकि वे सामाजिक जीवन में विभाजन लाती हैं। वे राष्ट्रविरोधीइसीलिए भी हैं क्योंकि वे जाति और जाति के बीच ईर्ष्या और प्रतिपक्ष पैदाकरती हैं। लेकिन अगर हम वास्तव में एक राष्ट्र बनना चाहते हैं तो हमें इनसभी कठिनाइयों को दूर करना होगा। आपसी बंधुत्व तभी कायम हो सकता है, जब कोईराष्ट्र हो। समानता और स्वतंत्रता,बंधुत्व के बिना, रंगों की परतों सेअधिक गहरी नहीं होगी।
ये उनकार्यों के बारे में मेरे प्रतिबिंब हैं जो हमारे सामने हैं। ये कुछ लोगोंके लिए बहुत सुखद नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन यह कहने में कोई इन्कार नहींकर सकता है कि इस देश में राजनीतिक शक्तियाँ काफ़ी समय के लिए एकाधिकृत रहीहैं और कई लोग केवल बोझ ढोने के जानवर हैं, लेकिन साथ ही शिकार के जानवरभी हैं। इस एकाधिकार ने उन्हें केवल भलाई की सम्भावनाओं से वंचित नहीं कियाहै, बल्कि इसने उन्हें जीवन के महत्व से भी दूर किया है। ये निचले औरशोषित वर्ग शासित होते-होते थक गए हैं। वे स्वयं को स्व-शासित करने के लिए अधीरहैं। इन निचले व शोषित वर्गों में आत्म अनुभूति के लिए इस उत्तेजना कोकिसी वर्गसंघर्ष अथवा जाति-युद्ध में परिवर्तित नहीं होने देना चाहिए। यहसदन के एक विभाजन का नेतृत्व करेगा और तब यह वास्तव में आपदा का दिन होगा।जैसा कि ‘अब्राहम लिंकन’ ने कहा है कि “अपने आप में विभाजित एक सदन बहुतलंबे समय तक खड़ा नहीं रह सकता।” इसलिए जितनी जल्दी उनकी आत्म अनुभूति कीआकांक्षाओं को जगह दी जाएगी उतना ही उनके लिए बेहतर है, देश के लिए बेहतरहै, आज़ादी के रख-रखाव के लिए बेहतर है और इस लोकतांत्रिक ढांचे कीनिरंतरता के लिए बेहतर है। यह केवल जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता औरआपसी बंधुत्व की स्थापना के द्वारा ही किया जा सकता है।
जिम्मेदारी
निःसंदेह स्वतंत्रता एक अत्यंत खुशीकी बात है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस स्वतंत्रता ने हमारे ऊपरबड़ी जिम्मेदारियाँ भी डाली हैं। आजादी से पहले तक, हमने कुछ भी गलत होनेका कारण ब्रिटिश शासन को बताया है यदि इसके बाद चीज़ें गलत होती हैं, तोहमें स्वयं को छोड़कर कोई भी दोषी नहीं होगा। और चीज़ों के गलत होने काखतरा बहुत अधिक है। समय तेजी से बदल रहा है। हम सहित अन्य लोग नईविचारधाराओं से जुड़ रहे हैं। वे लोगों द्वारा शासित सरकार से थक रहे हैंऔर वे लोगों के लिए सरकार बनाने को तैयार हैं और उदासीन भी हैं कि क्या यहलोगों की लोगों के द्वारा सरकार है? यदि हम संविधान को संरक्षित करना चाहतेहैं, जिसमें हमने लोगों की, लोगों के लिए, और लोगों के द्वारा सरकार केसिद्धांत को स्थापित करने की माँग की है, तो हमें अपने रास्ते में आने वालीउन बुराइयों की पहचान करने में सुस्ती न दिखाने का संकल्प लेना होगा जोलोगों की, लोगों के लिए और लोगों के द्वारा सरकार के सिद्धांत को प्रेरितहोने से रोकती हैं और उन बुराइयों को खत्म करने के लिए हमें कमज़ोर न पड़नेका संकल्प भी लेना होगा। यह देश सेवा करने का एकमात्र तरीका है।