Ajam Emba : Restoring Tribal Cuisine

आदिवासियों के बारे में पुरानी धारणा रही है.. वे जंगल में रहते हैं, कंद मूल खाकर गुजर बसर करते हैं। लेकिन इस वीडियो को देखने के बाद आपकी यह धारणा बदल जाएगी।

जी हां, बदल रहा है आदिवासी समाज!.. फैक्ट फोल्ड के इस अंक में हम आपकी भेंट करवाने जा रहे हैं एक आदिवासी महिला उद्यमी से जिन्होंने झारखंडी ट्राइबल कुजीन यानी झारखंडी खान पान को देश दुनिया में स्थापित करने की कमर कस रखी है।

वेस्टर्न वर्ल्ड का प्रभाव ही कहें कि आदिवासी परंपरा, संस्कृति और मौलिक रहन सहन अब म्युजियम में देखने को मिलते हैं। इस मौलिकता को भूलते जाने का मलाल है कई लोगों में लेकिन कितने हैं जो इन्हें म्युजियम के शोकेस से बाहर निकाल पुनर्स्थापित करने का माद्दा रखते हैं? शोध के क्रम में हमें रांची के कांके रोड स्थित एक अनोखे रेस्तरां का पता मिला। चलिये देखते हैं क्या कुछ अनोखा है वहां..?

बिसरा दिये गये आदिवासी व्यंजनों को पुनर्स्थापित करने को लेकर यहां जबरदस्त प्रयोग चल रहा है। ग्लोबल डिशेज के साथ आदिवासी रेसिपीज के फ्युजन तक..।

उनकी सफलता की एक बानगी सुनवाते हैं.. 

बेहद सीमित साधनों से उगने वाले पौष्टिक अनाज मरूआ को आधुनिक रहन सहन ने बुरी तरह भुला दिया है। यहां उसी मरूआ से मोमो बनाकर परोसा जाता है और युवा इनके मुरीद हुए जा रहे हैं!.. (होटल में पहुंचे युवक युवतियों की प्रतिक्रियाएं)। तो चलिए मिलते हैं उस युवा महिला उद्यमी करूणा तिर्की से। करूणा तिर्की से बातचीत कर रहे हैं झारखंड के जाने माने आदिवासी साहित्यकार महादेव टोप्पो। सुनिये इस वीडियो में..

Scroll to Top