गुजरात के बर्खास्त आईपीएस संजीव भट्ट की पत्नी ने आरोप लगाया है कि उनके पति को रिहाई के लिए दायर होने वाले आवश्यक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं करने दिया जा रहा है।
नई दिल्ली: पद से हटाए गए आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को जमकर फटकारा है । श्वेता का आरोप है कि उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उनके पति को ऐसा करने से रोका जा रहा है। श्वेता का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर मामले पर जवाब मांगा है।
भट्ट को 1998 में एक आपराधिक मामले में झूठे तरीके से एक वकील को फंसाने से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए 5 सितंबर को हिरासत में लिया गया था। श्वेता ने आरोप लगाया कि जेल में बंद उनके पति को वकालतनामे और अन्य दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने की इजाजत नहीं दी जा रही है, जो कि अदालत जाने के लिए बहुत जरूरी है। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने इसे ‘बेहद गंभीर’ बताते हुए गुजरात सरकार से जवाब देने को कहा है।
‘मजबूरी में एक पत्नी को कोर्ट का दरवाजा खटखटना बेहद गंभीर’
जस्टिस गोगोई ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर है कि एक व्यक्ति को अदालत आने की इजाजत नहीं दी जा रही है। उनकी पत्नी को आने (अदालत) के लिए मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई शुरू करने से पहले हम गुजरात सरकार का जवाब चाहते हैं। अदालत ने गुजरात का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से शुक्रवार तक जवाब देने को कहा और मामले की अगली सुनवाई चार अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर दी।
सोशल मीडिया पर भी उठाई आवाज
बता दें कि श्वेता भट्ट लगातार सोशल मीडिया पर लगातार राज्य सरकार और अपने पति को लेकर लिख रही हैं। वे संजीव भट्ट के ट्विटर हैंडल पर 20 सितंबर को लिखा था कि हिरासत के 16 दिन हो गए हैं इसके बाद भी उनकी मुलाकात संजीव से नहीं हुई है।
5 सितंबर को हिरासत में लिए गए थे बर्खास्त आईपीएस संजीव भट्ट
संजीव भट्ट को गुजरात पुलिस की सीआईडी अपराध शाखा द्वारा पांच सितम्बर को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 1996 में मादक पदार्थ बेचने के एक मामले में राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को कथित रूप से फंसाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। भट्ट उस समय बनासकांठा जिले के पुलिस अधीक्षक थे। भट्ट को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से 2015 में बर्खास्त कर दिया गया। संजीव भट्ट ने 2011 में मोदी पर 2002 के दंगों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया था।