नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसले में व्याभिचार को अपराध के दायरे से बाहर करते हुए अंग्रेजों के जमाने के कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीएस) की धारा 497 को असंवैधानिक और मनमाना ठहराया। इसी के तहत व्यभिचार (एडल्ट्री) अपराध था। फैसला सुनाने वाले एक न्यायाधीश ने कहा कि महिलाओं को संपत्ति नहीं समझा जा सकता है।
प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, “व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता। व्यभिचार की वजह से वैवाहिक जीवन खराब नहीं भी हो सकता है। यह भी संभव है कि असंतुष्ट वैवाहिक जीवन ही व्याभिचार की वजह हो। यह असंतुष्ट वैवाहिक जीवन जीने वाले लोगों को सजा देने के समान है।”
न्यायमूर्ति मिश्रा के अनुसार, “यह निजता का मामला है। पति, पत्नी का मालिक नहीं है। महिलाओं के साथ पुरुषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए।”
सितम्बर की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने ब्रिटिश युग के एक और कानून समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का ऐतिहासिक फैसला दिया था।
प्रधान न्यायाधीश ने अपने और जस्टिस ए. एम. खानविलकर की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि कई देशों में व्यभिचार को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है। उन्होंने कहा, “यह अपराध नहीं होना चाहिए। और लोग भी इसमें शामिल होते हैं।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। एक महिला को उस तरह से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिस तरह से समाज चाहता है कि वह उसी तरह से सोचे।
न्यायाधीश रोहिंटन एफ. नरीमन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “महिलाओं को अपनी संपत्ति नहीं समझा जा सकता है।”
न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ ने अपने अलग दिए फैसले में कहा कि समाज में यौन व्यवहार को लेकर दो तरह के नियम हैं, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए।
उन्होंने कहा कि समाज महिलाओं को सदाचार की अभिव्यक्ति के रूप में देखता है, जिससे ऑनर किलिंग जैसी चीजें होती हैं। उन्होंने कहा कि आईपीसी की यह धारा संविधान प्रदत्त सम्मान, स्वतंत्रता और सेक्स की आजादी की गारंटी के खिलाफ है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी शादी में होने के बावजूद महिला का यौन संबंधों के मामले में अपनी इच्छा व अधिकार होता है और विवाह का मतलब यह नहीं है कि अपने अधिकारों को दूसरे के लिए त्याग दिया जाए।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हर शख्स को अपनी पसंद के अनुसार संबंध बनाने की अनुमति होनी चाहिए और ऐसे में महिलाओं को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है।”
उन्होंने कहा कि शादीशुदा जोड़ों को भी एक-दूसरे की इच्छा का सम्मान करना चाहिए।
व्यभिचार कानून को लिंगभेदी बताते हुए फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ की एकमात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा ने कहा कि कानून की किताब में इस कानून के बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।