झारखंड के 17 लाख वृद्ध, विधवा और विकलांग व्यक्ति, जो सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लिए योग्य हैं, अपने पेंशन के अधिकार से वंचित हैं। इसका एक मुख्य कारण है पेंशन योजनाओं का सार्वभौमिक न होना। जिन पेंशनधारियों को पेंशन मिलता भी है, उन्हें ससमय और नियमित रूप से नहीं मिलता है। लोगों को पेंशन के आवेदन की प्रक्रियाओं और राशि निकासी में प्रशासनिक त्रुटियों से जूझना पड़ता है, ख़ास कर के आधार की अनिवार्यता के कारण। 2016-17 में, 3 लाख पेंशनधारियों को “फर्जी” बता कर पेंशन सूचि से हटा दिया गया था। लेकिन इस क्रम में ऐसे अनेक पेंशनधारियों को भी हटा दिया गया , जिनका पेंशन खाता आधार से नहीं जुड़ा था।
इसीलिए आज झारखंड के विभिन्न ज़िलों से सैंकड़ों वृद्ध, विधवा, एकल महिलाएं और विकलांग भोजन का अधिकार अभियान झारखण्ड और पेंशन परिषद द्वारा आयोजित जन सुनवाई के लिए एकत्रित हुए। उन्होंने अपनी समस्याओं को साक्ष्य के साथ ज्युरी पैनल के समक्ष प्रस्तुत किया। उनकी मुख्य मांग थी पेंशन के अधिकार का सार्वभौमिकरण। यह गौर करने की बात है कि यह मांग उन्होंने 1 अक्टूबर, जो वृद्ध व्यक्तियों के लिए अन्तराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है, के ठीक पहले रखी।
जन सुनवाई के पैनल में बलराम (भोजन का अधिकार अभियान), शादाब (HRLN) और बिन्नी आज़ाद (एकल नारी सशक्ति संगठन) शामिल थे।
पेंशनधारियों की मौखिक और लिखित गवाही से झारखंड में पेंशन की दयनीय स्थिति स्पष्ट हो गयी। उन्होंने बताया कि अगर व्यक्ति का नाम BPL सूचि में न हो, तो वे केंद्र सरकार की पेंशन की योजनाओं के लिए हकदार नहीं होते हैं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्र में जो 875 रु प्रति माह की तुच्छ राशि से अधिक कमाते हैं, वे राज्य पेंशन योजनाओं के लिए हकदार नहीं होते हैं। साथ ही, पेंशन योजनाओं में आधार की अनिवार्यता ने तबाही मचाई है। इस अनिवार्यता के कारण पिछले एक साल में झारखंड में कम-से-कम 5 लोगों की भूख से मौत हो गयी है। किसी का पेंशन आधार से जुड़े गलत खाते में चला गया तो किसी का राशि निकासी के दौरान आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण में अंगूठा काम नहीं किया। अन्य समस्याओं – जैसे आवेदन की जटिल प्रक्रियाएं, भुगतान में अनियमितता और विलम्ब, 600 रु प्रति माह की तुच्छ पेंशन राशि एवं राशि निकासी में समस्याएं – ने भी जीवनरेखा को कमज़ोर कर दिया है।
यह चिंता का विषय है कि पेंशनधारियों की समस्याएं न सत्ता पक्ष की राजनैतिक प्राथमिकताओं में दिखती है और न ही अधिकांश विपक्षी दलों की। लोगों ने “APL-BPL ख़तम करो, सबको राशन-पेंशन दो” के नारे के साथ निम्न मांगे रखी – पेंशन के अधिकार का सार्वभौमिकरण, पेंशन योजनाओं से आधार की अनिवार्यता को हटाया जाए, ससमय भुगतान सुनिश्चित हो, पेंशन राशि को बढ़ाकर कम-से-कम 2000 रु प्रति माह किया जाए और मुद्रास्फीति से जोड़ा जाए एवं योग्यता की उम्र को 55 वर्ष (महिलाओं के लिए 50 वर्ष) किया जाए। उनकी यह अपेक्षा भी है कि उनकी समस्याएं और मांग सभी राजनैतिक दलों की प्राथमिकता बनें।
यह नहीं भूलना चाहिए कि आज से एक साल पहले सिमडेगा की 11-वर्षीय संतोषी कुमारी अपनी माँ को भात-भात कहते-कहते भुखमरी की शिकार हो गयी थी। आधार से लिंक न होने के कारण उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था। यह चिंता की घड़ी है जब एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने आधार अधिनियम के धारा 7 को रद्द नहीं किया। इसके कारण’अब भी हाश्ये पर रहने वाले करोड़ों लोगों को जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार पर निर्भर रहना पड़ेगा। भोजन का अधिकार अभियान आज के दिन को भूख से हुए मौतों के विरुद्ध एक राष्ट्रीय विरोध दिवस के रूप में मनायेगा। विभिन्न राज्यों में विरोध कार्यक्रमों एवं #BhookhKiBaat पर ट्विटर कैंपेन का आयोजन किया जाएगा।