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अयोध्‍या राममंदिर विवाद : सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड ने कहा, साजिश करके मंदिर के भीतर मूर्तियां रखी गईं

नई दिल्ली: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के 18वें दिन मंगलवार को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जगह पर अपनी दावेदारी जताई। वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा, “कोर्ट को देखना होगा कि जगह किसके पास थी और किस तरह से उसे वहां से हटा दिया गया। यह कहा जा रहा है कि 1934 के बाद से मुसलमानों ने वहां नमाज नहीं पढ़ी। जबकि सच यह है कि उसके बाद से हमें वहां जाने ही नहीं दिया गया।”

धवन ने आगे कहा, “22 और 23 दिसंबर 1949 की रात को मस्जिद के भीतर एक साजिश के तहत मूर्तियों को रख दिया गया। मुसलमान तो वहां जा नहीं पा रहे थे, लेकिन हिंदू पूजा करते रहे। आगे चलकर जगह पर पूरा कब्ज़ा लेने के लिए रथयात्रा निकालने लगे। इसी का नतीजा था कि 1992 में इमारत गिरा दी गई। यह कहा गया कि उसे हिंदुओं ने नहीं गिराया, उपद्रवियों ने गिराया। वो उपद्रवी कौन थे? क्या उन्होंने गले पर क्रॉस पहना हुआ था? इंसाफ का तकाजा है कि पूरी जगह मुसलमानों को लौटा दी जाए।”

वरिष्ठ वकील ने रामलला विराजमान की याचिका का विरोध करते हुए कहा, “विराजमान का मतलब होता है किसी जगह का निवासी होना। कहा गया कि भगवान वहां हमेशा से थे। 1949 में खुद प्रकट हो गए। जबकि सच यही है कि दिसंबर 1949 को वहां मूर्तियों को रख दिया गया था। अगर कोर्ट भगवान के प्रकट होने के अंधविश्वास को मानता है तो हमारा दावा ऐसे ही खत्म हो जाता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो इंसाफ होना चाहिए।”

धवन ने दावा किया कि विवादित इमारत मस्जिद थी। उन्होंने कहा, “कई लोगों ने गवाही दी है कि 1934 से पहले इमारत के भीतरी हिस्से में नमाज पढ़ी जाती थी। उसके मुख्य मेहराब पर और अंदर दो जगह अल्लाह लिखा हुआ था। कोई कैसे कह सकता है कि वह मस्जिद नहीं थी? कुछ हिंदू प्रतीक चिन्ह मिलने से वहां पर हिंदुओं का दावा नहीं हो जाता। बाहरी हिस्से में निर्मोही अखाड़े के लोग पूजा कर रहे थे। उन्होंने अंदर भी कब्जा देने की कोशिश की। यह पूरा विवाद इसी का नतीजा है।”

सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने निर्मोही अखाड़े के दावे का भी विरोध किया। उन्होंने कहा, “अखाड़ा के वकील कह रहे हैं कि रामलला विराजमान की याचिका खारिज कर दी जाए। फिर भी जगह पर उन्हें कब्जा दिया जाए क्योंकि वो सदियों से मंदिर की देखभाल और देवता की सेवा का काम कर रहे थे। यानी रामलला की याचिका खारिज भी हो जाए, तब भी जगह मुसलमानों को नहीं मिल सकेगी। यह मांग ही गलत है।”

वक्फ बोर्ड के अलावा एक और मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दीक के तरफ से पेश हो रहे धवन ने कहा, “मुसलमानों को उस जगह से बाहर करना एक लंबी साजिश का हिस्सा है। 1949 में फैजाबाद के डीएम ने यूपी के मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखी थी कि मस्ज़िद के नीचे विशालकाय मंदिर का ढांचा है। इसलिए, मूर्तियों को नहीं हटाया जाना चाहिए। यह वही समय था जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू दिल्ली में विभाजन के दौरान तोड़ी गई मस्जिदों को किसी भी हाल में बनवाने की बात कह रहे थे आप देख सकते हैं सरकार की नीति क्या थी और डीएम का रवैया क्या था। बाद में नायर की तस्वीर इमारत में लगाई गई। यह साबित करता है कि उन्होंने हिंदुओं के पक्ष में भेदभाव किया था।”

धवन ने ये भी कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को कई बार प्रस्ताव मिला है कि उसे कोई वैकल्पिक जगह दी जाएगी। इस तरह का प्रस्ताव दिया जाना अपने आप में साबित करता है कि असल में वक्फ बोर्ड का दावा मजबूत है।

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