महज शादी के लिए धर्मांतरण, कोई शोर नहीं!

दो ‘हिंदुओं’ ने महज शादी के लिए इस्लाम ग्रहण कर लिया, मगर गुपचुप. समाज की नजरों में ‘हिंदू बने रहे. धर्मांतरण के विरोधियों और इसलाम से चिढ़ने वालों को कोई कष्ट नहीं हुआ! मामला धर्मेंद्र और हेमा मालिनी से जुड़ा है. ये किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. भारतीय हिंदी फिल्म जगत के बीते दिनों के दो लोकप्रिय सितारे. एक वर्तमान, दूसरे पूर्व सांसद. दोनों सबसे पवित्र और ‘राष्ट्रवादी’ पार्टी में. हिंदू से ‘कागजी मुसलमान’ बने दोनों भाजपा के टिकट पर सांसद बने. पता नहीं, नामांकन के पर्चे में अपना नाम और धर्म क्या लिखा. मगर दुनिया तो इन्हें मूल नाम से ही जानती है. कल्पना करें कि यही काम किसी और दल से जुड़े लोगों ने किया होता‌ तो इस जमात का रुख क्या होता? सांसदी तो छिन ही जाती. उस दल की भी फजीहत होती. मगर इस पर कोई चर्चा तक नहीं हुई, इसलिए कि दोनों खास और ‘अपने’ थे और हैं! कुछ दिन पहले अपने एक आत्मीय (छद्म या अर्द्ध मोदी मुरीद) के सामने मैंने यह बात कह दी, तो उसने हैरानी जताते हुए पूछा- आज इसका क्या रेलेवेंस है?
मैं भी हैरान हुआ- सचमुच कोई रेलेवेंस नहीं है?

अभी यह मुद्दा नये सिरे से चर्चा में इसलिए आ गया कि धर्मेंद्र और हेमा मालिनी पुरी के जगन्नाथ मंदिर चले गये. साथ में‌ उनके बच्चे भी. किसी स्थानीय हिंदू की आस्था आहत हो गयी, पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी कि ये दोनों हिंदू नहीं, मुसलिम हैं और इनके मंदिर प्रवेश से हिंदुओं की आस्था को चोट पहुंची है.
उल्लेखनीय है कि उसी मंदिर में 1984 में इंदिरा गांधी को प्रवेश की अनुमति नहीं मिली थी, इसलिए कि उनका विवाह एक पारसी से हुआ था, सो वे हिंदू नहीं हैं. तब वह प्रधानमंत्री थीं. प्रसंगवश श्रीमती सोनिया गांधी को भी 1988 में काठमांडू के ‘पशुपतिनाथ मंदिर’ के अंदर नहीं जाने दिया गया था! तब राजीब गांधी प्रधानमंत्री थे, नेपाल के दौरे पर गये थे और उस मंदिर में पूजा करना चाहते थे. नाराज राजीव गांधी बीच दौरे से वापस लौट गये थे! मगर इस जोड़ी का रुतबा ऐसा था कि पुरी में किसी ने नहीं टोका! बहरहाल, मेरे लिए मंदिर प्रवेश कोई मुद्दा नहीं है. वैसे मानता हूं कि आराधना स्थलों पर ऐसी रोक नहीं होनी चाहिए. लेकिन यह निर्णय तो सम्बद्ध धर्मों और आराधना स्थलों के प्रबंधकों को ही करना है. हालांकि शायद ही किसी अन्य धर्म के धार्मिक केंद्रों पर ऐसी रोक है! बहरहाल, मैं सिर्फ उस पाखंड की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं, जो शादी के लिए धर्मांतरण करने वालों की हैसियत या अपने-पराये के आधार पर ऐसे मामलों पर शोर किया जाता है; या चुप्पी साध ली जाती है! कथित ‘गैर-हिंदुओं’ के मंदिर प्रवेश को लेकर भी यही रवैया है.

आगे कुछ कहने से पहले बता दूं कि कलाकार के रूप में इन दोनों को अलग अलग कारण से पसंद करता रहा हूं. हेमा जी के तो खैर सौंदर्य का ही कायल रहा. कुछ फिल्मों में अच्छा अभिनय भी किया. धर्मेंद्र अभिनेता के अलावा इंसान के रूप में भी बेहतर लगते रहे हैं.
बहरहाल, पर्दे पर काम करते हुए इश्क हो गया. धरम जी विवाहित. बुरा हो नेहरू-आंबेडकर का कि एक हिंदू पुरुष पहली पत्नी के रहते, उसे तलाक दिये बिना दूसरी औरत से विवाह नहीं कर सकता, जबकि मुसलिम पुरुष को एक साथ चार चार बीवी रखने का अधिकार है. कट्टर हिंदू इस कारण भी हिंदू कोड बिल का विरोध कर रहे थे. मुसलिम पर्सनल लॉ का भी. लेकिन वही मुसलिम पर्सनल लॉ इस प्रेमी जोड़े के काम आया. आख़िरकार, 1980 में उन लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ कर इस्लाम ग्रहण कर लिया और ‘दिलावर’ और ‘आयशा’ के रूप में शादी के बंधन में बंध गये. जाहिर है, यह नकली धर्मांतरण था, महज विवाह करने के लिए.
मगर यह जिज्ञासा तो होती है कि आज की तारीख में ये हिंदू हैं या मुसलमान? जन्म से दोनों हिंदू हैं. हैं नहीं, थे. इसलिए कि दोनों ने धर्म बदल लिया. हर भारतीय नागरिक की तरह उनको भी ऐसा करने का अधिकार था. मगर ऐसा उन्होंने इसलाम से प्रभावित होकर नहीं किया. कारण हम जानते हैं. फिर ये दोनों भाजपा के टिकट पर सांसद भी बने. ऐसे में यह कहना भी शायद सही नहीं है कि लोकसभा में भाजपा का एक भी मुसलिम सांसद नहीं है. कम से कम एक हेमामालिनी (आयशा) तो हैं. अब धर्मेंद्र सांसद नहीं हैं, लेकिन जब थे, तब कायदे से उनको भी ‘मुसलिम’ सांसद माना जाना चाहिए था.
एक जिज्ञासा यह भी है कि इन दोनों ने बतौर प्रत्याशी नामांकन के पर्चे में अपना धर्म क्या दर्ज किया? प्रकट में तो दोनों अपने मूल नाम से ही जाते जाते रहे. सांसद भी अपने हिंदू नाम से ही बने. आमतौर पर भारत में कोई हिंदू इसलाम ग्रहण करता है, तो उसे एक नया नाम दिया जाता है. उसके बाद सरकारी दस्तावेजों में तो वही नाम होना चाहिए. लेकिन उनके इस्लामी नाम का तो किसी को पता भी नहीं है. तो क्या उनकी ‘घर वापसी’ हो गयी है और वे पुनः हिंदू बन गये हैं? ऐसी कोई खबर तो कभी देखने को नहीं मिली. यदि दोनों फिर से हिंदू बन चुके हैं, तब धर्मेंद्र कानूनी तौर पर हेमा जी के पति कैसे हो सकते हैं. तब तो उन पर एक बीवी के रहते दूसरी शादी का आरोप लग जायेगा. या कि दोनों नाम अधिकृत हैं?
वैसे कोई सिर्फ विवाह करने के लिए अपना धर्म बदल लेता या लेती है, मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है. मगर यदि ऐसा व्यक्ति चुनाव के लिए नामांकन का परचा भरते हुए अपनी वैवाहिक स्थिति, अपने धर्म की गलत जानकारी देता है, तो आपत्ति है. इसलिए भी कि यह चुनाव कानून का उल्लंघन है. सवाल है कि इस हैसियत के नामी लोगों ने पर्चे में जानबूझ कर गलत जानकारी दी, तो संबद्ध चुनाव अधिकारी का इस पर ध्यान क्यों नहीं गया? चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या यह कोई मुद्दा ही नहीं है, इसलिए कि ये ‘बड़े’ लोग हैं और ‘समरथ के नहिं दोष..’ के तहत इनका सारा अपराध क्षम्य है?

जैसा कि पहले बताया, व्यक्ति के रूप में मुझे इनसे कोई शिकायत नहीं है. कलाकार के रूप में भी दोनों को पसंद करता रहा हूं. हालांकि सांसद होने की कोई योग्यता इनमें नहीं दिखी, न ही संसद की चर्चा में कोई खास योगदान किया है. महज सेलेब्रेटी होने के नाते किसी को प्रत्याशी बनाने की परिपाटी को भी गलत मानता हूं. लेकिन यहां जो मुद्दा उठाया है, वह सिर्फ कानूनी और क़ानून के संभावित उल्लंघन का मुद्दा है. आश्चर्य कि किसी ने इस पर आज तक सवाल भी नहीं किया!

यह सवाल वर्षों से मन में कौंधता रहा है. मगर एक तो अपने चहेते कलाकारों का मामला, वह भी उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा. हिचक होती रही. हालांकि यह भी लगता था कि जब कोई सार्वजनिक जीवन में कदम रखता है, तो उससे आचरण में भी नैतिकता की अपेक्षा की जाती है. ये यदि सांसद नहीं बने होते, तो दूसरी बात थी. मेरे लिए भी यह कोई मुद्दा नहीं होता. मगर जब किसी पर नामांकन के पर्चे में गलत जानकारी देने का संदेह हो, तब यह गंभीर बात हो जाती है. अतः किंचित ऊहापोह के बाद अंततः लिख डाला, बल्कि लिखा पड़ा था, जिसे थोड़ा संपादित कर अद्यतन किया.

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