गुमला: नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ महाप्रभु मंदिर का है विशेष महत्व, मकर संक्रांति 14 जनवरी को अवसर पर यहां वर्षों लगता है मेला और निकलती है रथ यात्रा।गुमला से 18 किलोमीटर दूर दक्षिणी कोयल नदी नागफेनी के तट पर बांस झुंड के समीप अवस्थित भगवान जगन्नाथ महाप्रभु के ऐतिहासिक मंदिर का विशेष महत्व है। ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण रातुगढ़ के महाराजा स्वर्गीय रघुनाथ साय के द्वारा विक्रम संवत 1731ईस्बी में कराई गई थी। जोकि मंदिर के भवन में भी खुदा हुआ है रघुनाथ साय के द्वारा निर्मित पतित पावन शक्ति भक्ति एवं असीम अनुकंपा के प्रतीक भगवान जगन्नाथ महाप्रभु का यह मंदिर प्रकृति के इस छोटे छोटे शीला खंडों के मध्य बहती हुई दक्षिणी कोयल नदी के तट पर एवं पहाड़ों के बीच बसे आदिवासी बहुल इलाके में सचमुच ही भारत के अति प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। नागफेनी के जगन्नाथ महाप्रभु मंदिर रथयात्रा को लेकर एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार यहां के रथ यात्रा लगभग 300 वर्ष पूर्व पुरानी है। एक बार रातुगढ़ के महाराजा स्वर्गीय रघुनाथ शाय पुरी उड़ीसा गए थे और भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचे दर्शन के बाद राजा ने सोचा ऐसे मंदिर की स्थापना अपने राज्य चित्र में करनी चाहिए। रात को राजा को एक सपना आया जिसमें भगवान जगरनाथ ने सभा में कहा कि मैं तुम्हारे भक्ति भावना से अति प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारे राज्य क्षेत्र में जाऊंगा।लेकिन तुम्हें एक परीक्षा से गुजरना होगा और उसमें सफल होना होगा। इतने में राजा की नींद खुल गई ,राजा उठकर चारों और देखने लगे। इसी बीच आधी रात में राजा के समीप एक कुत्ता आया और खाए हुए भोजन को राजा के सामने उगल दिया राजा ने सोचा कि कहीं यह मेरी परीक्षा तो नहीं है काफी सोचने के बाद राजा ने उक्त भोजन को सात बार धोकर प्रसाद स्वरूप धारण कर लिया। इतने में भगवान साक्षात दर्शन दिए और कहा मैं तुमसे प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारे साथ चलूंगा तब राजा रघुनाथ साय ने सात-सात राजाओं की मदद से वहां की तीन बड़ी बड़ी मूर्तियों को अपने साथ क्षेत्र में लाया मूर्ति लाने के क्रम में एक हाथी की मौत रास्ते में ही हो गई। परिणाम स्वरूप उक्त तीनों मूर्ति जगरनाथ बहन सुभद्रा एवं भाई बलभद्र की मूर्ति को गांव के दक्षिण में स्थित पहाड़ में रख कर पूजा अर्चना शुरू कर दी। बाद में कोयल नदी के किनारे जगरनाथ महाप्रभु के भव्य मंदिर का निर्माण किया गया और भगवान को स्थापित कर दी गई साथ ही उड़ीसा से पुजारी लाकर उनको रहने के लिए महाराजा ने जमीन जायदाद भी दी। आज भी नागफेनी मंदिर में उड़ीसा से ही आए पंडा द्वारा यहां पूजा-अर्चना की जाती है यहां वर्ष में दो बार भगवान जगन्नाथ महाप्रभु की रथयात्रा निकाली जाती है जिसमें झारखंड समेत उड़ीसा छत्तीसगढ़ बिहार उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश आदि अन्य कई इलाकों के लोग भगवान के दर्शन के लिए आते हैं यहां 14 जनवरी को मकर संक्रांति एवं आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया और घूरती रथ यात्रा एकादशी को आयोजित किए जाने की परंपरा है। मंदिर के पुजारी मनोहर पांडे चक्रधर पंडा सुशील पंडाअनिल पंडा आदि ने बताया कि इस वर्ष भी मेले की तैयारी जोरों से चल रही है मंदिर की साफ सफाई एवं सज्जा आदि का कार्य किया जा रहा है रथ यात्रा को लेकर सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है क्षेत्र के लोग इसमें बरसों से हजारों की संख्या में आते हैं और भगवान जगन्नाथ महाप्रभु के रथ यात्रा को ऐतिहासिक एवं सफल बनाते हैं।