ममता की दीदीगिरी

राजेंद्र कुमार

कोलकाता में सीबीआई के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का धरना तीसरे दिन खत्म हो गया। इन तीन दिनों में विपक्ष के नेता उनसे मिलने के लिए पहुंचे। राहुल गांधी, शरद पवार सरीखे जो नेता उनसे मिलने नहीं आ सके, उन्होंने सीबीआई और केंद्र सरकार के खिलाफ छेड़े ममता के संघर्ष में साथ देने का वायदा किया। दूसरी ओर से बीजेपी भी लगातार इस दौरान ममता पर हमले करते रही। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ममता बनर्जी पर सारदा चिटफंड घोटाले के भ्रष्टाचारियों को बचाने का आरोप लगाया। बीजेपी के ऐसे हमलों का ममता बनर्जी पर कोई असर नहीं हुआ। और उन्होंने धरने पर बैठकर लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल में चुनावी एजेंडे को अपने इर्द-गिर्द केंद्रित कर दिया। अब बंगाल में ममता बनर्जी बनाम मोदी-शाह की सीधी लड़ाई है। ममता के धरने और उनकी राजनीतिक दीदीगिरी का ये सबसे बड़ा संदेश है। 

वास्तव में इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए वेस्ट बंगाल का खास महत्व है। संसदीय सीटों की संख्या के लिहाज से देश के तीसरे सबसे बड़े इस राज्य में बीजेपी अपने पांव जमाना चाहती है। नब्बे के दशक में वामदलों ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर पश्चिम बंगाल में जो अपना परचम फहराया था, वह अनवरत 34 साल तक लहराता रहा। लेकिन 2011 के चुनाव में यहां सियासत की नई इबारत लिखी गई। कांग्रेस और वाम दलों दोनों को नकारते हुए यहां के लोगों ने ममता बनर्जी को राज्य की बागडोर सौंप दी। ममता की दीदीगिरी की यह सबसे बड़ी जीत थी। जिसे राज्य में नए युग की शुरुआत माना गया। 

ममता की राजनीतिक दीदीगिरी का ही यह कमाल था कि कांग्रेस और वामदल बंगाल की राजनीति में हासिए पर पहुंच गए। तो बीजेपी नेताओं ने यह उम्मीद हुई है कि आगामी चुनावों में हिंदी राज्यों से संभावित सीटों के नुकसान को वेस्ट बंगाल से वह पूरा कर कसती है। इस मंशा की पूर्ति के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य की 42 सीटों में से 22 पर जीत का लक्ष्य तय कर यहां अपनी चुनावी रणनीति तैयार की है। कहा जा रहा है कि अमित शाह के इसी रोडमैप के तहत ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने सीबीआई की टीम वहां पहुंची थी। परन्तु बीजेपी के इस खेल को भांपते हुए ममता बनर्जी धरने पर बैठ गई। और मोदी सरकार पर यह आरोप भी लगा दिया कि केंद्र सरकार सीबीआई के जरिए विपक्षी दलों पर दबाव बना रही है। 

ममता के इस आरोप से यह सवाल उठा कि क्या सीबीआई की कार्रवाई भ्रष्टाचार या घपलों से लड़ने की किसी सरकारी चिंता का नतीजा है, या वह एक विपक्षी नेता का बाजू मरोड़ने की कोशिश है...? अगर वाकई बीजेपी सरकार को सारदा  घोटाले की फ़िक्र होती, तो वह कम से कम मुकुल रॉय को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करती, जो इस घोटाले के मुख्य आरोपियों में एक हैं। विपक्षी दलों के ऐसे सवालों का कोई जवाब बीजेपी नेताओं को नहीं सूझा। क्योंकि जिस तरह से सीबीआई के जरिए ममता सरकार को घेरने का प्रयास हुआ। ठीक उसी तर्ज पर यूपी में अखिलेश यादव और मायावती को भी घेरने के लिए सीबीआई ने सूबे में कई स्थानों पर छापे मारने की कार्रवाई की। पान्तु ममता बनर्जी ने सीबीआई की कार्रवाई को एक राजनीतिक मुददा बना दिया। और यह संदेश भी दे दिया कि ममता बीजेपी से मोर्चा लेने में डरती नहीं है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी ममता से ऐसा ही संदेश दिया था, तब उन्होंने कहा था कि वह नरेंद्र मोदी के हाथ बांधकर जेल भेज देंगी केवल वह ही बीजेपी का सामना करने का माद्दा रखती हैं। 

अब फिर ममता ने अपनी राजनीतिक दीदीगिरी के तीखे तेवर दिखाये हैं तो इसकी वजह भी है। दरअसल वर्ष 2014 के बाद से बंगाल में बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही थी। अमित शाह सहित तमाम बीजेपी के नेता ममता के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बनाने की कोशिश में जुटे थे। उसे देखते हुए बंगाल के सीएम को साफ लग गया था कि बीजेपी को पीछे धकेलने और खुद को बड़ा नेता साबित करने के लिए उन्हें मैदान में उतरना होगा। और यह मौका उन्हें सीबीआई के जरिए मिल गया। गत रविवार की शाम सीबीआई की टीम जैसे ही पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के आवास पर पहुंची। ममता बनर्जी भी वहां पहुंच गईं और राजीव कुमार को एक तरह से उन्होंने संरक्षण देने का काम किया। यह करते हुए उन्होंने मोदी तथा अमित शाह के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया। हालांकि पीएम मोदी के सामने खुद को खड़ा करने के लिए ममता बनर्जी ने लगातार कदम बढ़ा रही थी। सबसे पहले उन्होंने बंगाल में टोल प्लाजा में सेना तैनात करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार का जमकर विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार विपक्ष के नेताओं के खिलाफ एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। इसके बाद आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर भी वह राज्य के सीएम चंद्रबाबू नायडू के साथ खड़ी दिखाई दीं। बंगाल में लोकसभा चुनाव से पहले एजेंडे को एक तरह से उन्होंने खुद पर केंद्रित कर दिया है। यही रणनीति पीएम मोदी भी अपनाते रहे हैं। अब बंगाल में ममता से बीजेपी को टकराना होगा। यह जताते हुए ममता बनर्जी ने यह संकेत भी बीते तीन दिनों में दिया है कि यदि केंद्र की सत्ता में रहते हुए बीजेपी उन्हें आंखे दिखाएगी तो बंगाल सरकार भी मैदान में बीजेपी की रैलियां नहीं होने देंगी। यानि ममता की राजनीतिक दीदीगिरी जारी रहेगी। 

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