सालभर पहले हॉलीवुड में शुरू हुआ 'मीटू मूवमेंट' अब भारत में अपने शबाब पर है। आजकल महिलाएं रोजाना आगे आकर अपने साथ हुए उत्पीड़न का अनुभव साझा कर रही हैं। तनुश्री दत्ता से शुरू हुआ यह अभियान केंद्रीय मंत्री एम.जे.अकबर से होता हुआ फिल्मिस्तान के साजिद खान तक पहुंच गया है। महिलाओं का आपबीती पर 'मीटू' के बहाने मुखर होना, खुशी की बात है, लेकिन पुरुषों पर लगाए जा रहे हर आरोप को 'मीटू' के सांचे में फिट बैठाना क्या सही है? जरूरत है कि इन आरोपों को सुनते वक्त 'विशाखा गाइलाइंस' को ध्यान में रखा जाए।
मीटू मूवमेंट का जिक्र करने पर नारीवादी कार्यकर्ता और लेखिका कमला भसीना ने कहा, "ये महिलाएं अपनी भड़ास बाहर निकाल रही हैं। तनुश्री दत्ता को छोड़कर किसी ने भी पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई है। ये महिलाओं का गुस्सा है, जो मौका देख निकल रहा है। वे सिर्फ अपने अनुभव साझा कर रही हैं। इन सभी आरोपों का पैटर्न एक ही तरह का है। एक के बाद एक आरोप लग रहे हैं। मैं यह नहीं कह रही कि ये महिलाएं झूठी हैं, लेकिन ये आरोप मीटू के सांचे में कितने फिट बैठते हैं, इसका आकलन करना बहुत जरूरी है।"
लेकिन आकलन का पैमाना क्या होना चाहिए? इस बारे में फेमिनिस्ट व सामाजिक कार्यकर्ता गीता यथार्थ कहती हैं, "हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएं सदियों से शोषित, दबी-कुचली रही हैं और इस एक मूवमेंट ने उन्हें हौसला दिया है। इस मूवमेंट की देश में बहुत जरूरत थी। दशकों से जिस तरह महिलाओं का उत्पीड़न किया जा रहा था, ऐसा होना लाजिमी था, लेकिन मैं फिर भी कहती हूं कि विशाखा गाइडलाइंस को फॉलो किया जाना बहुत जरूरी है।"
उन्होंने आगे कहा, "हर ऑफिस में विशाखा गाइडलाइंस को फॉलो कराने के लिए कमेटी बनाए जाने की जरूरत है। गाइडलाइंस के तहत तीन महीनों के भीतर पुलिस में शिकायत दर्ज करानी होती है, उससे ज्यादा देर होने पर आरोपों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। उत्पीड़न को समझना बहुत जरूरी है, किसी ने आपको आपकी मर्जी के खिलाफ जाकर प्रपोज किया, तो इसे आप मीटू के दायरे में नहीं ला सकते।"
इसी बात को और स्पष्टता से समझाते हुए पेशे से लेखिका व कवयित्री इला कुमार कहती हैं, "इस तरह के मामलों में क्लैरिटी बरतने की जरूरत है। मेरी एक दोस्त की रिश्तेदार है, जिसके कॉलेज के एक प्रोफेसर ने उसे वाट्सएप कर उसके साथ फ्लर्ट करना चाहा, इस पर उसने मीटू को लेकर फेसबुक पर लंबा-चौड़ा लेख लिख दिया। आपको समझना पड़ेगा कि यह मीटू के दायरे में नहीं आता।"
वहीं, कमला भसीन कहती हैं, "किसी ताकतवर इंसान पर आरोप लगाने के क्या नुकसान हो सकते हैं, ये हर महिला अच्छी तरह से जानती है। इसलिए पीड़ित महिलाएं काफी नापतौल कर अपनी बात रखती हैं। शायद इसलिए 10 या 20 साल पुराने मामले अब सामने आ रहे हैं। ऐसे में आप इन महिलाओं पर भी दोष नहीं मढ़ सकते। हमारे समाज का स्ट्रक्चर ही ऐसा है। अब इन्हें मौका मिला है तो इतने सालों का दर्द अब बाहर निकाल रही हैं।"
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा कहती हैं, "इस मूवमेंट को जज करने से बेहतर है कि इन महिलाओं की सुनें, विश्वास करना या न करना आप पर है, लेकिन इनकी पीड़ा सुनने में हर्ज क्या है!" -रीतू तोमर
Sections