ये ‘धर्म संसद’ क्या बला है?

ये ‘धर्म संसद’ क्या बला है?
राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की धमकी के मायने!
खबरों के मुताबिक बीते नौ फरवरी को प्रयागराज महाकुम्भ में हुई ‘धर्म संसद’ में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी के ‘मनुस्मृति’ से सम्बद्ध एक कथन को लेकर नाराजगी व्यक्त की गयी. बाद में बाकायदा प्रस्ताव पारित कर उनसे स्पष्टीकरण देने; अन्यथा हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की चेतावनी/धमकी दी गयी.
इंस्टाग्राम पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के आधिकारिक हैंडल से जारी एक वीडियो पोस्ट में लिखा गया- ‘‘राहुल ‘गांधी एक महीने के भीतर अपना पक्ष, ‘परम धर्मसंसद’ के समक्ष रखें. ऐसा न करने पर, उन्हें हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की घोषणा की जायेगी.” उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने लोकसभा में हाथरस गैंगरेप की घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि जिन लोगों ने गैंगरेप किया, वे बाहर घूम रहे हैं और लड़की का परिवार अपने घर में बंद है. लड़की का परिवार बाहर नहीं जा सकता है, क्योंकि अपराधी उन्हें डराते- धमकाते हैं. उन्होंने कहा- ‘संविधान में ये कहां लिखा है कि जो बलात्कार करते हैं वो बाहर घूमें और जिसका रेप हुआ वो घर में रहे….ये आपकी किताब मनुस्मृति में लिखा होगा, संविधान में नहीं लिखा.’

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने लिखा है ‘‘सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे एक वीडियो क्लिप में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को इस आशय का वक्तव्य कहते दिखाया जा रहा है कि मनुस्मृति बलात्कारियों के संरक्षण देती है. इससे ‘मनुस्मति’ को पवित्र ग्रंथ मानने वाले करोड़ों आस्थावान लोगों को बड़ी पीड़ा हुई है.”

मगर राहुल गांधी ने ऐसा तो नहीं कहा कि ‘मनुस्मृति में लिखा है’; इतना कहा कि ‘आपकी किताब मनुस्मृति में लिखा होगा.. संविधान में नहीं लिखा.’ इतनी सी बात पर राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने पर आमादा ‘धर्म संसद’ में शामिल ‘धर्माचार्यों’ को बताना चाहिए कि क्या राहुल गांधी का यह कथन गलत है कि हाथरस कांड के दुष्कर्म के आरोपी बाहर घूम रहे हैं और लड़की का परिवार अपने घर में बंद है? यदि उनको मालूम नहीं, तो क्या उन लोगों ने सच का पता लगाने की कोशिश की? यदि वह बात सच है, तो इस बात से पीड़ा क्यों नहीं हुई कि ऐसा एक ‘हिंदू’ लड़की और उसके परिवार के साथ हिंदू हितैषी होने का दावा करने वाली पार्टी के शासन में हो रहा है?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर दिन बलात्कार की औसतन अस्सी घटनाएं होती हैं. इनमें वे मामले शामिल नहीं हैं, जो दर्ज ही नहीं होते, पीड़िताएं चुप लगा जाती हैं. जाहिर है कि इनमें से अधिकतर हिंदू लड़कियां ही होंगी; और यह भी अनुमान किया जा सकता है कि दुष्कर्मी भी अधिकतर हिंदू ही होंगे. यदि समाज की इस दशा से ‘धर्माचार्यों’ को पीड़ा नहीं होती, तो उनके ‘धर्माचार्य’ होने पर भी संदेह होता है. उनसे कुछ सवाल- आपकी समझ से ‘संत’ आसाराम बापू और राम-रहीम (दोनों दुष्कर्म और हत्या के दोष-सिद्ध अपराधी हैं और जेल की सजा काट रहे हैं; राम-रहीम को बार बार पैरोल पर छोड़ा जाता है; और ‘संयोग’ से अधिकतर किसी चुनाव के समय) जैसे ‘बाबाओं’ के कुकर्मों से हिंदू समाज और धर्म की प्रतिष्ठा धूमिल होती है या नहीं? या कि ‘धर्म संसद’ की नजर में ये दोनों सचमुच महान संत हैं, जो हिंदू विरोधियों की साजिश के शिकार हो गये हैं? इसी कुम्भ में कुछ ‘धर्माचार्य’ अमित शाह को स्नान कराते दिखे! इसमें ‘धर्म संसद’ को कुछ अटपटा नहीं लगा? यदि अमित शाह भी कोई ‘संत’ होते तो कोई बात होती. मगर वे गृह मंत्री हैं. क्या इसी कारण धर्माचार्य उनकी आवभगत कर रहे थे? कुम्भ में ऐसी परंपरा रही है?


गुजरात के दुष्कर्म और हत्या के 11 दोषसिद्ध अपराधियों को माफी देकर रिहा कर दिया गया, आपको सही लगा? जेल से बाहर निकलने पर उनका फूल-मालाओं से स्वागत किया गया, यह भी बुरा नहीं लगा? लगा होता तो आपने निंदा की होती. लेकिन मुझे ध्यान नहीं है कि की थी! यानी आप लोगों को उसमें कुछ गलत नहीं लगा! दो वर्ष पहले दिल्ली में किसी ‘धर्म संसद’ में मुसलमानों के संहार का सामूहिक संकल्प लिया गया! यदि यह ‘धर्म संसद’ उससे भिन्न है, तो जानना क्या यह ‘धर्म संसद’ उसका समर्थन करती है?
आज राहुल गांधी के ‘मनुस्मृति’ के बारे में कथित रूप से कुछ अपमानजनक बात कह देने से आप उनको हिंदू धर्म से बाहर करने पर आमादा हैं, तो क्या आप मानते हैं कि ‘मनुस्मृति’ में कुछ आपत्तिजनक नहीं है, कि उसमें स्त्री और शूद्र को समान और सम्मानजनक माना गया है? कि भारत को उसी आधार पर चलना चाहिए?
आप जो भी मानते हैं, लेकिन आपको पता है कि बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर ने आज से कोई सौ साल पहले 25 दिसंबर 1927 को ‘मनुस्मृति’ को सार्वजनिक रूप से जलाया था? उस समय ‘छुआछूत का नाश हो’ और ‘ब्राह्मणवाद को दफ़न करो!’ जैसे नारे लग रहे थे. तब से लेकर आज तक किसी ‘धर्म संसद’ ने डॉ आंबेडकर के खिलाफ कोई प्रस्ताव पास किया? उनको हिंदू धर्म से निकाला? वैसे उन्होंने खुद ही लाखों अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. आपको एहसास है कि आंबेडकर को अपना आदर्श मानने वाले, आप जिनको शायद हिंदू ही मानते होंगे, ‘मनुस्मृति’ के बारे में क्या सोचते हैं?

एक अहम सावल- क्या इस ‘धर्म संसद’ के गठन की कोई प्रक्रिया है? हिंदू धर्म शास्त्रों में इसका कोई विधान है? इसके सदस्यों का चुनाव होता है? प्राचीन भारत में कभी ऐसा था कि राजा सर्वोपरि नहीं होता था; और राज्य का शासन किसी ‘धर्म संसद’ के निर्णयों से संचालित होता था? त्रेता या द्वापर युग में भी? इसके सदस्यों की पात्रता का कोई आधार (पैमाना) है? कौन तय करता है और कैसे कि ‘धर्म संसद’ में कितने और कौन सदस्य होंगे?

एक अहम सावल- क्या इस ‘धर्म संसद’ के गठन की कोई प्रक्रिया है? हिंदू धर्म शास्त्रों में इसका कोई विधान है? इसके सदस्यों का चुनाव होता है? प्राचीन भारत में कभी ऐसा था कि राजा सर्वोपरि नहीं होता था; और राज्य का शासन किसी ‘धर्म संसद’ के निर्णयों से संचालित होता था? त्रेता या द्वापर युग में भी? इसके सदस्यों की पात्रता का कोई आधार (पैमाना) है? कौन तय करता है और कैसे कि ‘धर्म संसद’ में कितने और कौन सदस्य होंगे?
इसी कुम्भ के बीच एक खबर यह भी आयी थी कि ‘धर्म संसद’ ने भारतीय संसद में ‘धर्माचार्यों’ के लिए पचास सीट आरक्षित करने की मांग की है! यानी आप भी उस संसद को, जिसमें देश के चुने हुए (जिनमें बहुतेरे ‘दागी’ होते हैं) प्रतिनिधि बैठते हैं, अपनी इस ‘धर्म संसद’ से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं? वह महत्वपूर्ण है भी, मगर आप वहाँ, बिना चुनाव जीते जाना क्यों चाहते हैं, यह समझ से परे है! उस संसद की कृपा की आकांक्षा क्यों?

वैसे इस विवाद से यह तो पता चलता है कि ‘धर्म संसद’ राहुल गांधी को ‘हिंदू’ मानती है. हालांकि सोशल मीडिया पर तो बहुत दिनों से ऐसी ‘प्रामाणिक’ जानकारी उपलब्ध है कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी के परदादा, यानी जवाहर लाल नेहरू के दादा मुसलमान थे, जो बाद में हिंदू बन गये थे! इस तरह तो इंदिरा गांधी भी हिंदू नहीं थीं. फिर उनका विवाह एक पारसी- फ़ीरोज गांधी से हुआ, तो कायदे से पारसी हो गयीं. राहुल के पिता राजीव गांधी ने एक ईसाई महिला- सोनिया गांधी- से शादी कर ली. यदि नेहरू मुसलमान नहीं भी थे, तब भी राहुल गांधी में ‘हिंदू’ का कितना अंश बचा? और वह ‘हिंदू’ होने का क्या और कैसा नाजायज लाभ उठा रहे हैं कि उनको ‘गैर-हिंदू’ घोषित करना जरूरी हो गया! ऐसा तो नहीं है कि सभी हिंदुओं ने संघ और भाजपा को अपना एकमात्र प्रतिनिधि संगठन और मोदी जी को अपना नेता मान लिया है? ऐसा होता तो बीते संसदीय चुनाव में ‘पाँच सौ पार’ नहीं हो गया होता? ऐसा होता तो बंगाल, कर्नाटक, तेलांगना, झारखंड, केरल, तमिलनाडु में भी ‘डबल इंजन’ सरकार नहीं होती?
भाजपा तो राहुल को ‘पप्पू’ साबित करने का अभियान चलाती ही रही है. वह विफल हो गया तो संसद से निकलने का प्रयास हुआ. वह भी सफल नहीं हुआ. फिर भी उनके खिलाफ अभियान जारी है. क्या अब ‘धर्माचार्य’ भी उस अभियान में शामिल हो गये! क्या यह ‘धर्म संसद’ भी आरएसएस का कोई अनुषंगी संगठन है? आपने नहीं सोचा कि कम से कम राहुल समर्थक हिंदू आपके बारे में क्या सोचेंगे? या कि राहुल गांधी के समर्थक हिंदुओं को भी हिंदू धर्म से निकाल बाहर करेंगे? कितनों को निकालेंगे?
आपलोगों ने तो ऐसा विधान बना रखा है, उस पर गर्व भी करते हैं, कि हिंदू ‘जन्मना’ होता है, कि किसी गैर हिंदू को हिंदू नहीं बनाया जा सकता! अच्छी बात है कि इस कारण आप दूसरों का धर्मांतरण नहीं कराते. लेकिन इसके उलट हिंदुओं को अलग अलग कारणों से, छोटी छोटी बात पर धर्म से बाहर करते रहे हैं.
एक जिज्ञासा यह भी है कि क्या ऐसा कोई विधान है कि कोई संस्था संगठन या कोई धर्मगुरु कह दे कि अब यह हिंदू नहीं रहा और वह आदमी (या औरत) अहिंदू हो जाता (जाती) है? ऐसी कोई प्रक्रिया है? हिंदू तो जन्मना होता है. फिर कोई किसी हिंदू को अहिंदू कैसे घोषित कर सकता है? वैसे अतीत में तो ‘पंडित’ इस तरह से बहुत सारे हिंदुओं को ईसाई या इस्लाम धर्म में जाने के लिए लगभग बाध्य करते रहे हैं. मुसलिम शासन काल में जबरन धर्मांतरण भी हुआ होगा, लेकिन बड़े पैमाने पर सामूहिक धर्मांतरण हुआ है, ऐसा ठोस कोई प्रमाण नहीं है. माना तो यह जाता है कि हिंदू इतने कट्टर धार्मिक थे कि मुसलमान धर्म गुरुओं के तमाम प्रयासों के और लालच व धमकियों के बावजूद लोग अपना धर्म छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. या तो ऐसा प्रयास ही नहीं हुआ या फिर वह प्रयास विफल हो गया- धर्म के प्रति हिंदुओं की गहरी आस्था या जुड़ाव के कारण. अन्यथा क्या कारण हो सकता है कि भारत के अलावा इस्लाम जहां भी गया, लगभग पूरे देश और समाज ने इस्लाम स्वीकार कर लिया.
बावजूद इसके कि हिंदू समाज ऊंच-नीच बंटा हुआ था, तब भी हर किसी को अपने धर्म से लगाव होता है, बिना धर्म के रहना आसान भी नहीं होता. इसलिए हर तरह का अपमान झेलते हुए भी, मंदिर में घुसने की इजाजत न होने के बावजूद वे हिंदू बने रहे. लेकिन सच यह भी है कि समाज के शीर्ष पर विराजमान लोगों के व्यवहार के कारण भी बड़ी संख्या में हिंदुओं ने धर्मांतरण किया. ऐसे अनेक किस्से हैं कि बात बेबात लोगों को धर्म भ्रष्ट घोषित कर दिया जाता था. किसी ने मुसलमान के साथ खाना खा लिया, किसी ने मुसलमान के साथ शादी कर ली; और भ्रष्ट घोषित हो गया. ऐसा भ्रष्ट होने वाला आदमी कहां जाता, जबकि मुसलमान और ईसाई समुदाय उनको अपनाने के लिए तैयार बैठा है.

हिंदू समाज में सुधार के प्रयास भी होते रहे हैं, पर अफसोस कि अब तक बहुत सफल नहीं हो सका है. डॉ लोहिया ने अपने ‘हिंदू बनाम हिंदू’ शीर्षक लेख में लिखा था- ‘भारतीय इतिहास की सबसे लंबी लड़ाई, हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई, पिछले पांच हजार वर्ष से भी अधिक समय से चल रही है और उसका अंत अभी भी दिखायी नहीं पड़ता. इस बात की कोई कोशिश नहीं की गयी, जो होनी चाहिए थी, कि इस लड़ाई को नजर में रख कर हिंदुस्तान को देखा जाये. लेकिन देश में जो कुछ होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी के कारण होता है…

साप्ताहिक ‘दिनमान’ में 80 के दशक में छपे अशोक सेकसरिया जी के लेख का एक टुकड़ा मुझे हमेशा याद रहता है. उन्होंने लिखा था- (शब्दों में कुछ हेरफेर हो सकता है) ‘मुझे उस हिंदू समाज का हिस्सा होने पर गर्व है, जहां कोई ‘पोप’ सर्वेसर्वा नहीं होता; जहाँ किसी ‘खलीफा’ का फरमान आख़िरी नहीं होता और जिसे अपने ढंग से चलाने वाले ‘निहंग’ नहीं होते…’
कुछ वर्ष पहले तक मैं उनकी बात से लगभग सहमत था, अब संदेह होने लगा है. इसलिए कि अब हिंदू समाज को भी कट्टर और असहिष्णु बनाने का अभियान चल रहा है. पूरे सामाज को एक केंद्र, एक देवता, एक संगठन के दायरे में लाने और अपने ढंग से हांकने का प्रयास किया जा रहा है. इस तरह की ‘धर्म संसद’ और उसके इस तरह के फैसलों से भी डॉ आंबेडकर की यह बात सही लगाने लगी है कि हिंदू समाज नहीं बदल सकता. फिर भी बदलाव को अवश्यंभावी मानने के कारण उम्मीद करता हूँ कि डॉ लोहिया के मुताबिक उदारता और कट्टरता के बीच सदियों से जारी संघर्ष में एक दिन उदार शक्तियों की जीत होगी; और हिंदू समाज भी सही मायनों में समानता पर आधारित आदर्श समाज बनेगा. आज हिंदू समाज की अनुदार शक्तियों के प्रतिनिधि कौन हैं, यह समझना कठिन नहीं है.

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