बिहार में शराबबंदी के बाद भी बंद नहीं हुआ शराब का 'धंधा'!

सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई है कि बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद गरीब और कमजोर तबकों के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कहीं अधिक बदतर हुई है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि राज्य में शराब तस्करी बेधड़क चल रही है और घूसखोरी एवं भ्रष्टाचार के मामलों में भी तेजी आई है। सर्वेक्षण में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि शराबबंदी के बाद कई लोगों को अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ी है। 

पटना: बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू होने के बाद शराब का धंधा मंदा तो जरूर पड़ा है परंतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सख्ती के बाद भी यह धंधा पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। सरकार के लाख दावों के बाद भी समय-समय पर शराब की जब्ती व शराब के साथ गिरफ्तारियां इसके प्रमाण हैं। 

हाल के दिनों में राज्य के एक स्कूल भवन से शराब की 100 से अधिक पेटियों की बरामदगी इस बात की तसदीक भी करने के लिए काफी है कि सरकारी तंत्र भी इस धंधे में अप्रत्यक्ष ही सही जुड़ा हुआ है। इधर, पिछले दिनों एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से इस बात का भी खुलासा हुआ है कि शराबबंदी के कारण लोग सरकार से नाखुश हैं। 

वैसे पुलिस के आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि अवैध शराब पकड़ने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में अप्रैल 2016 से लागू पूर्ण शराबबंदी के बाद इस साल 20 नवंबर तक राज्य में शराब का सेवन करते 1.34 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है जबकि 39.62 लाख लीटर से ज्यादा शराब की बरामदगी की गई है। 

शराबबंदी के बाद इस मामले में अंतर्लिप्त पाए जाने पर 33 पुलिसकर्मियों की सेवा भी बर्खास्त कर दी गई है। 

इधर, गैर सरकारी संस्था 'जन की बात' ने भी हाल में कराए एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में दावा किया है कि सरकार और कानून प्रवर्तन प्राधिकारी शराबबंदी कानून को लागू कराने में पूरी तरह विफल रहे है। 

संस्था के दावा है कि सर्वेक्षण में 65 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का मानना है कि राज्य सरकार शराबबंदी कानून को को लागू करने में विफल रही है जबकि 12.44 प्रतिशत लोग शराबबंदी को ही गलत मानते हैं। 

'जन की बात' के संस्थापक एवं सीईओ प्रदीप भंडारी ने बताया कि बिहार के सात जिलों समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, मधुबनी, बेगूसराय, पटना और दरभंगा के 3,500 लोगों को इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण का उद्देश्य मौजूदा कानून पर आम लोगों की राय जानना और लोगों के जीवन पर इसके प्रभाव का आकलन करना है।

भंडारी ने बताया कि सर्वेक्षण में शामिल एक तिहाई लोगों का मानना है कि यह कानून अगले चुनाव में नीतीश कुमार सरकार पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। भंडारी ने सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा, "सर्वेक्षण में शामिल 58.72 प्रतिशत लोग इस कानून के कारण नीतीश कुमार सरकार से नाखुश हैं।"

सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई है कि बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद गरीब और कमजोर तबकों के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कहीं अधिक बदतर हुई है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि राज्य में शराब तस्करी बेधड़क चल रही है और घूसखोरी एवं भ्रष्टाचार के मामलों में भी तेजी आई है। सर्वेक्षण में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि शराबबंदी के बाद कई लोगों को अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ी है। 

भंडारी ने इस सर्वेक्षण के नतीजों पर कहा, "बिहार में शराबबंदी की नीति ने शराब को काफी महंगा कर दिया और इससे शराब की एक काली अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिला है।"

इधर, बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक भाई वीरेंद्र भी मानते हैं कि शराबबंदी के बाद भी शराब का धंधा बिहार में फलफूल रहा है। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत सिर्फ गरीबों को परेशान किया जा रहा है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि बिहार में शहरों से लेकर गांवों तक में खुलेआम शराब की बिक्री हो रही है। 

हालांकि सत्ताधारी पार्टी इससे इत्तेफाक नहीं रखती। जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार का दावा है कि शराबबंदी के बाद न केवल गरीबों के जीवनस्तर में परिवर्तन आया है बल्कि जो लोग शराब में अपनी गाढ़ी कमाई गंवा देते थे वह राशि भविष्य के लिए सुरक्षित रखने लगे हैं या दूसरी चीजों में खर्च कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि गांव के लोग खासकर महिलाएं सरकार के इस फैसले से खुश हैं, इसे गांवों में जाकर देखा जा सकता है। -मनोज पाठक 

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