झारखंड में एनपीआर को खारिज करने की मांग को लेकर रांची में हजारों लोग जुटे 

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

झारखंड भर से हजारों लोग आज राजभवन (रांची) में इकट्ठा हुए, इस मांग के साथ कि हेमंत सोरेन सरकार एनपीआर को खारिज करे और एनपीआर से संबंधित सभी गतिविधियों पर रोक लगाए । झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा आहूत इस धरने में कई संगठनों (आंशिक सूची संलग्न) ने भाग लिया। झारखंड के सभी मुख्य समुदाय - हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, दलित, आदिवासी और अन्य -  शामिल हुए।

प्रतिभागियों में कद्रू बाग, रांची के "शाहीन बाग"- जहां सैकड़ों महिलाएं सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ कई हफ्तों से लगातार बैठी हैं - की महिलाएं भी शामिल थीं । उनके साहसी विरोध ने कई अन्य लोगों को प्रेरित किया है - झारखंड के अन्य हिस्सों (सभी मुख्य शहरों और कई छोटे शहरों सहित) ने भी कई सप्ताह से विरोध प्रदर्शन देखा है।

धरना ने एनपीआर-एनआरसी प्रक्रिया के बारे में झारखंड में सभी समुदायों के बीच तेजी से बढ़ती चिंता को आवाज़ दिया | एनपीआर-एनआरसी प्रक्रिया, 1 अप्रैल 2021 की जनगणना की घरेलू सूची के तैयारी के साथ शुरू होने वाली है। झारखंड में ज्यादातर लोगों के पास ऐसे दस्तावेज नहीं होते हैं, जो उनकी नागरिकता साबित करने के लिए कहे जाने पर अपेक्षित हैं।

जेम्स हेरेंज ने इस आयोजन का परिचय देते हुए कहा, “कई राज्य सरकारें एनआरसी का विरोध कर रही हैं और कुछ ने केंद्र सरकार से सीएए को निरस्त करने की अपील की है। केरल और पश्चिम बंगाल ने स्पष्ट रूप से सभी एनपीआर गतिविधियों को रोकने के लिए एक आदेश जारी किया है। झारखंड सर्कार को ऐसा करने से क्या रोक रहा है? ” सभी धरना प्रतिभागियों (संलग्न प्रति) की ओर से राज्य सरकार को आज भेजी गई याचिका में भी यही बात कही गई है।

धरना प्रतिभागियों में कुमार चंद मार्डी, प्रफुल्ल लिंडा, सरसराज, विनोद सिंह (एमएलए), जीन द्रेज, धरमदास वाल्मीकि, दयामनी बारला, इब्रार अहमद, अलका कुजूर, वासवी किरो, पीसी मुर्मू, नरेन कुमार भुइयां, प्रेमसाई मुंडा, शामिल थे। उनके उत्साही भाषण के साथ जीवंत गीत, नारे और कविताएं भी प्रस्तुत की गयीं । धरने में साफ़ प्रदर्शित हुआ वही रचनात्मकता, एकजुटता और शांति पूर्ण प्रदर्शन जो पूरे देश में हो रहे एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों में भी दिखा है।

विभिन्न वक्ताओं के बयानों ने विशेष रूप से सीएए-एनपीआर-एनआरसी प्रक्रिया के सांप्रदायिक, गरीब-विरोधी और बहिष्कृत प्रकृति को सामने रखा। उनके कुछ चिंताशील बिंदु निम्न हैं:

सिफवा – “आज मुसलमान औरतों ने हिंदुस्तान की फासीवादी सरकार से बचाने का जिम्मा ले रखा है। शाहीन बाग की माओ ने हमें रास्ता दिखाया है। रोहित वेमुला के भी हत्यारे बीजेपी के लोग थे। पहलू अखलाक सभी के लिए इंसाफ की लड़ाई है“

इब्रार अहमद – “एक नया मुस्लिम लीडरशिप महिलाओं का, युवाओं का आया है। जो धर्म आधारित राजनीति नहीं, बल्कि ज़रूरी मुद्दों की बात करता है। उन्होंने सवाल किया कि जिन भारतीयों को आवैध घोषित किया जाएगा उन्हें कहां भेजा जाएगा?”

धरम वाल्मीकि – “सफाई कर्मचारी आंदोलन कठोर रूप से caa एनपीआर एनआरसी का विरोध करते है। लड़ेंगे, जीतेंगे”

दयामनी बरला – “आरएसएस यहां के लोगों से ज़मीन छीन ना चाहती है। यहां के लोगों को बेदखल करना चाहती है। ये साजिश पूरी नहीं होने दी जाएगी। जब हम अपने हक की बात करते है तो वो हमें रोकती हैं। Nrc से झारखंड के गांव गानव में आंदोलन करना होगा। ये जाति और धरम की लड़ाई नहीं है, ये देश और संविधान बचाने की, अपने अधिकारों को बचाने की लड़ाई है”

शहबाज़ – “आपसी सौहार्द को तोड़ने का प्रयास है। ये एक्ट कम्युनल है। इसके खिलाफ लड़ते चलना है। अगला कदम एक यूनिवर्सल सिविल कोड होगा। 

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