10 अप्रैल 2019 को, गुमला के डुमरी प्रखंड के जुरमु गाँव के रहने वाले 50 वर्षीय आदिवासी प्रकाश लकड़ा को पड़ोसी जैरागि गाँव के लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया. जुर्मू के तीन अन्य पीड़ित - पीटर केरकेट्टा, बेलारियस मिंज और जेनेरियस मिंज - भीड़ द्वारा पिटाई के कारण गंभीर रूप से घायल हो गए.
इस हिंसा एवं पुलिस की भूमिका के विरुद्ध केंद्रीय जन संघर्ष समिति द्वारा 31 मई 2019 को डुमरी में विरोध सभा का आयोजन किया गया. सभा में गुमला, लातेहार व रांची से हज़ारों लोगों ने भाग लिया. इसमें राज्य के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हुए.
सभा को संबोधित कर रही जन संघर्ष समिति की सरोज हेम्ब्रम ने कहा कि उनके एवं अन्य कई मानवाधिकार संगठनों द्वारा इस घटना की जांच की गयी. जांच में यह स्पष्ट हुआ था कि जुर्मु के एक मरे हुए बैल के मालिक द्वारा पीड़ितों और अन्य ग्रामीणों को बैल का मांस काटने और खाल निकालने के लिए बोला था. जब वो ऐसा कर रहे थे, तब उनपर जैरागी गाँव के लगभग 35 - 40 लोगों की भीड़ ने हमला किया. लगभग तीन घंटो तक पीटने के बाद आधी रात को पीड़ितों को अपराधियों ने डुमरी पुलिस थाने के सामने छोड़ दिया. पीड़ितों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के बजाए, पुलिस ने लगभग चार घंटों तक उन्हें ठंड में बाहर इंतजार करवाया. जब तक उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, तब तक प्रकाश ने दम तोड़ दिया था. सरोज हेम्ब्रम ने लोगों को याद दिलाया कि झारखंड में पिछले चार वर्षों में 11 व्यक्तियों को पीट पीटकर मारा गया है, जिसमें 9 लोग मुसलमान थे और बाकी दो आदीवासी.
केंद्रीय जन संघठन समिति के जेरोम कुजूर ने प्रतिरोध में आए लोगों को प्रकाश लकड़ा की मृत्यु में पुलिस की भूमिका के बारे में बताया. जांच में गए मानवाधिकार कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने कहा कि उन्हें इस बात का भी बहुत दुःख है कि अखबार में यह खबर छपी कि जुर्मू के लोग आपस में मांस बाँटते बाँटते लड़ने लगे, जिसके कारण प्रकाश लकडा की मृत्यु हो गयी. ज्यां द्रेज़ ने, जो इस मामले में SP से बात करने गए, कहा कि जुर्मू में जो हुआ, वह सीधा सीधा ह्त्या थी, जो पुलिस व राज्य सरकार के आशीर्वाद से हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी घटना झारखंड में ही नहीं, पर पूरे देश में बार बार हो रही है, जिसके पीछे देश में बढ़ता हिंदुत्व है. अशोक वर्मा ने कहा कि भारत में एक सांझा संस्कृति रही है जिसमें लोग एक दूसरे के विचारों व धर्मों को सम्मान करता है. पर देश में एक संगठन है जो इस देश को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने की चाह में देश में साम्प्रदायिकता फैला रहा है.
इस हिंसा के अपराधियों पर तुरंत कार्यवाई करने के बजाए पुलिस ने आदिवासी पीड़ितों पर ही गौ हत्या का फ़र्ज़ी प्राथमिकी दर्ज की दी. अभी तक सब अपराधियों को पकड़ा भी नहीं गया है.
इस जघन्य घटना को कुछ असामाजिक तत्व द्वारा अंजाम दिया गया है. जिसका केंद्रीय जन संघर्ष समिति निंदा करती है. समिति पूरे इलाके में अमन चाहती है. परन्तु इस घटना ने पूरे इलाके में दहशत का माहौल खड़ा कर दिया है. घटना के इतने दिनों बाद भी दोषियों की गिरफ्तारी में देरी पुलिस के असंवेदनशीलता का परिचय दे रही है. विरोध सभा के अंत में प्रतिनिधियों ने प्रखंड कार्यालय में राज्यपाल के नाम ज्ञापन देकर निम्न मांगे की.
1. जुर्मू के आदिवासियों के खिलाफ दर्ज गौ हत्या के फर्जी प्राथमिकी को निरस्त किया जाए.
2. भीड़ द्वारा की गई हिंसा में शामिल सभी अपराधियों को गिरफ्तार करें एवं उनपर अनुसूचित जाती एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया जाए.
3. स्थानीय पुलिस के खिलाफ पीड़ितों के लिए चिकित्सा उपचार में देरी एवं गौ हत्या का झूठा मुक़दमा दायर करने के लिए कारवाई करें.
4. मृतक प्रकाश लकडा के परिवार को 15 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए.
5. घायलों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए.
6. लिंचिंग पर सर्वोच्च न्यायालय के हाल के फैसले का पूर्ण अनुपालन करें.