अनेक विशेषताओं से भरा है वहुआयामी लोक आस्था का महापर्व छ्ठ 

:: कमलनयन ::

गिरिडीह वाल्मीकि रामायण के आदित्यहद्धय स्त्रोतं में वर्णित है कि प्रकृति के प्रत्येक्ष देव भगवान भुवन की अराघना करने वालों को दुःख - संताप  नही भोगना पड़ता हैा  सूर्य मंडल में भगवान भाष्कर की स्तुति  नारायण रूप में होती हैा  देश के विभिन्न प्रदेशों में सूर्य पूजा करने के अपने अपने तरीके है।  लेकिन झारखंड , बिहार सहित उत्तर भारत में  आदिदेव सूर्य की उपासना चैत्र मास एवं कार्तिक मास में सूर्य षष्ठी अर्थात छ्ठपर्व के रुप में की जाती हैा  मान्यता है कि चार दिवसीय छ्ठपर्व के दौरान भगवान भुवन की अराधना करने वालों की समस्त मनोकामनाए पूर्ण होती हैा  छ्ठमईया अपने भक्तों को कायिक ,मानंसिक ,और भौतिक सुख समृधि का आर्शीवाद प्रदान करती हैा  यही कारण है कि छठपर्व पूरी आस्था और विश्वास के साथ महापर्व के रूप में मनाया जाता हैा  प्राकृतिक शक्तियों की पूजा का यह महापर्व अनेक विषेशताओं से भरा है ।

छठ पर्व गिरिडीह में शुरू

सभी तबके के लोग एक घाट पर  एकत्र होकर भारतीय संस्कृति में विधमान सामाजिक समरसता को   मजबूत करने की परम्परा को आगे बढ़ाते  हैा  चार दिवसीय लोक आस्था के इस महापर्व के दरम्यान शराबी नशापान नही करते ,जुआड़ी जूआ नही  खेलते ,पाकेटमार जेब नही काटते ,उच्चके छिनतई नही करते ,दुकानदार कम वजन नही तोलते  ,दूध वाले दूध में पानी का मिश्रण नही करते  है । क्यों कि इसके पिछे द्यारणा यह है कि छठ के दिनों में गलत करने वालों को छठमईया तत्काल कूकर्म का फल देती हैा अपराधि  भी क्राईम करने में परहेज करते है ।जिसके कारण प्रशासन के समक्ष भी विधि व्यवस्था  की कोई समस्या नही होती हैा स्वच्छता अभियान की बात करे तो हर वर्ग के लोग अपने घरों के आसपास इनदिनों विशेष साफ सफाई करते है ।मगध क्षेत्र से सटे होने के कारण एकीकृत बिहार के समय से ही गिरिडीह इलाके में छठपर्व विशेष तोर पर मनाये जाने की परम्परा सदियों से चली आरही हैा गिरिडीह जिला मुख्यालय से 40 किलो मीटर चकाई - चतरो मुख्यमार्ग में  भगवान सूर्यदेव का सरोवर के बीच में लोटस मंदिर है जो वास्तुकला एवं भव्यता के कारण काफी विख्यात है ।कार्तिक व चैत्रमास  में  बड़ी संख्या में श्रद्धालू भगवान सूर्य की वंदना करने लोटस् मंदिर आते हैा हाल के वर्षों में गिरिडीह जिले के राजधनवार की छ्ठ सुर्खियों में छायी रहती हैा कहाजाता है कि चितौड़गढ़ के शाशक ने अपना साम्रराज्य कायम करने के पश्चात धनवार के घाट पर आकर भगवान सूर्य की अराधना कर  अर्ध्य दिया था ।तब से यह परम्परा चली आरही है। लोग इस घाट को राजाघाट के नाम से जानते है। राजाघाट के समीप ही  एक चन्द्रकूप है  जिसके बारे में धारणा है कि इस कूप के जल से स्नान कर भगवान सूर्य को अर्ध्य देने वालों को भगवान भुवन मंनोवांछित फल प्रदान करते है ।

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