उत्तर भारत के किसी प्रदेश में प्रस्तावित फिल्म सिटी को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परेशान हैं. क्योंकि इससे मुम्बई में रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे. यह बेतुकी बात है. मुम्बई के अलावा कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलूर आदि जगहों पर तो फिल्में बन ही रही हैं. एक और ऐसा सेंटर बनने से क्या फर्क पड़ जायेगा? शायद श्री ठाकरे को डर है कि उत्तर भारत में कहीं ऐसा केंद्र बनने से हिन्दी फिल्मों पर मुम्बई का एकाधिकार ख़त्म हो जायेगा और राज्य की आय और वहां रोजगार के अवसर भी कम हो जायेंगे. यह आशंका निराधार नहीं है. लेकिन कोई राज्य सरकार किसी अन्य राज्य में ऐसे सेंटर/फिल्म निर्माण केंद्र बनाने से रोक कैसे सकता है?
यह और बात है कि उक्त नये सेंटर में जो और जैसी फ़िल्में बनेंगी, उससे मुम्बई को शायद ही बहुत फर्क पड़ेगा. इसलिए कि इस नये सेंटर में धार्मिक, संस्कारी, राष्ट्रीयता और देशभक्ति से ओतप्रोत, भारत की महान प्राचीन संस्कृति का गुणगान करनेवाली फ़िल्में ही बनेंगी, यह तो तय है. यानी मुम्बई वालों का धंधा भी चलता रहेगा, क्योंकि दर्शकों को तो और भी बहुत कुछ चाहिए होगा.
जो भी हो, इस कल्पना और काबिलेतारीफ पहल के लिए संबद्ध सरकार को साधुवाद देते हुए प्रस्तावित फिल्म सिटी में फिल्म बनाने के इच्छुक निर्माता-निर्देशकों को कुछ सलाह देना चाहता हूं--
- विवाह से पहले, यानी अविवाहित नायक-नायिका के प्रेम वाली कहानी न चुनें.
- विवाहित नायक-नायिका के प्रणय दृश्य भी उनके घर और बेडरूम में से बाहर फिल्माने से परहेज करें.
- अंतर्धार्मिक प्रेम और विवाह से जुड़ी कहानियों पर फिल्म बनाने की बात तो सोचें भी नहीं. सोचें भी तो नायिका हिंदू न हो, यह खयाल रखें.
- अंतरजातीय प्रेम और विवाह की कहानी चुनने में भी सावधानी बरतें. कथित ऊंची जाति की नायिका को कथित निम्न जाति के नायक से दोस्ती और प्रेम करते दिखाने से भी भरसक बचें.
-विवाहेतर सम्बन्ध, विधवा (हिन्दू) के प्रेम और विवाह पर आधारित कहानी से परहेज करें.
- कहानी/फिल्म का खलनायक किसी जाति विशेष का न हो, सवर्ण तो नहीं ही हो; और क्षत्रिय तो एकदम न हो.
- कहानी में बेमतलब का ज्ञान बघारने, यानी ईश्वर-खुदा-गॉड आदि के अस्तित्व को चुनौती देने वाले तर्क परोसना हो, विवेक और तर्क की बात करनी हो, तो मुंबई में ही प्रयास करें.
- किसी ‘बाबा’ को ढोंगी- व्यभिचारी आदि दिखाने की चेष्टा न करें.
- फिल्म में किसी पुलिसकर्मी या सरकारी कर्मचारी- अधिकारी, या मंत्री को भ्रष्ट दिखाना हो, तो ध्यान रखें कि वह उस प्रदेश, जहाँ फिल्म सिटी बनने जा रहा है, का न हो. कोशिश करें कि वहां सत्तारूढ़ दल द्वारा शासित किसी अन्य राज्य का भी न हो.
यह सूची और बड़ी हो सकती है. फिलहाल इतना ही..
इसके साथ ही उस प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी, अग्रिम क्षमा याचना के साथ, कुछ सलाह देने की जुर्रत का रहा हूं-
प्रस्तावित फिल्म सिटी के परिसर में कृपया करणी सेना, क्षत्रिय महासभा, विद्यार्थी परिषद्, बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी आदि संगठनों के कार्यालय के लिए भी जगह सुनिश्चित कर दें. आखिर सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद भी फिल्म निर्माताओं को इन संगठनों से भी अनुमति लेनी ही पड़ती है. तो क्यों नहीं इनसे पहले अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही फिल्मों को सेंसर बोर्ड के पास भेजा जाये?