'खेलो इंडिया' ने स्वाभाविक विकास का नियम अपनाया

:: सिद्धार्थ उपाध्याय ::

मैं पहले एक खिलाड़ी हूं। जिस किसी ने गंभीरता से कोई हॉबी पाली हो या पूरी शिद्दत से खेल खेला हो वो इस भावना को समझ सकता है, मैंने ऐसा 15 साल की उम्र से किया है। खेल 'सोशल इंजीनियरिंग' का बेहतरीन साधन है। यह बदलाव लाता है और समाज में बड़े पैमाने पर भविष्य के विकास में मदद करता है। खेल में लोग अपने हुनर, योग्यता को मैदान पर दर्शाते हैं और सभी खिलाड़ियों का एक ही लक्ष्य होता है अपने विपक्षी को मात देना चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या संस्थान का हो। 

खेलो इंडिया स्कूल गेम्स इस साल खेलो इंडिया यूथ गेम्स (केआईवाईजी) में बदल गए। यह सिर्फ नाम में बदलाव नहीं है, बल्कि इसके आकार और अवसर में भी बदलाव देखने को मिला है। खेल में स्वाभाविक विकास का नियम काम करता है। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, "जैसे गंगा बहती है, बाकी चीजें इसमें मिल जाती हैं.. कई अन्य चीजें इसमें मदद करती है और इसके परिणाम स्वरूप प्रगति भी होती है। गंगा उपनदी की तलाश में अपना रास्ता नहीं छोड़ती है।" महान खेल राष्ट्र वह होता है जहां गांव और शहरों में बड़ी तादाद में लोग खेलें और प्रतिभा का ऐसा खजाना बनें जो पहले कभी नहीं रहा। 

सरकार और गैरसरकारी संस्थानों का मकसद प्रोत्साहन देना, इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना, प्रतिभा को लाना और खेल संस्कृति को बनाना है। स्कूल में अगर अच्छे खेल के स्तर को बनाने पर ध्यान दिया जाता है तो इससे कॉलेज स्तर पर अच्छे खिलाड़ी तैयार होते हैं। अंडर-17 वर्ग के खिलाड़ियों पर ध्यान देना अंडर-21 वर्ग के लिए पौध को तैयार करना है। केवाईआईजी ने यह सुनिश्चित किया है कि खेलों में स्वाभविक विकास का नियम काम करे। 

इस बड़े पहलू को अब एक बड़े पैमाने पर देखते हैं। जैसा मैं देख सकता हूं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने एक रिवर्स इंजीनियरिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया है। सरकार जमीनी स्तर पर जरूरी साधन तैयार कर रही है, ऐसी चीजें जो खेल विकास के लिए लागू करना आसान है। केआईवाईजी ने पूरे देश में खेल कार्यक्रम को अच्छा स्तर प्रदान किया है, क्योंकि इसमें ज्यादा से ज्यादा स्कूल हिस्सा ले रहे हैं। यह कार्यक्रम अब खेलों को जमीनी स्तर पर ले गया है जहां स्कूल और लोगों के पास मौका है। गांव और शहरों में खेल संस्कृति में आए बदलाव से ही यह तय हुआ होगा कि हम ओलम्पिक जैसे वैश्विक मंचों पर किस तरह चमकेंगे। 

जिम कोलिंस ने कहा था, "महान विजन महान लोगों के बिना असंगत है।" इस तरह के कार्यक्रम और विजन को लागू करने के लिए एक समíपत नेतृत्व की जरूरत होती है। शीर्ष अधिकारी और मंत्री इसे लागू करने के प्रयास में लगातार बदलते रहे हैं। पहले खेल मंत्री विजय गोयल और खेल सचिव राजीव यादव ने खेलो इंडिया को शुरुआती गति दी। उस समय के खेल सचिव और भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के निदेशक इनजेती श्रीनिवास ने इसकी शुरुआती रणनीति तैयार की। अंत में ओलम्पियन राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को खेल मंत्री बनाया गया। मुझे राठौड़ को काफी करीब से देखने का मौका मिला है। मैंने उनके अंदर भारत को उसके अंदर मौजूद खेल प्रतिभा को पहचान दिलाने की जिद देखी है।

केआईवाईजी देश को एक जरूरी लय देगी। इसके परिणाम मैदान पर दिखने लगे हैं। इसने न सिर्फ भारत के ओलम्पिक में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीदों के बढ़ाया है बल्कि सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने में भी सफल हुआ है। 

(सिद्धार्थ उपाध्याय साई की गवर्निग बॉडी के सदस्य और खेलों का विकास करने वाली संस्था स्टेयर्स के संस्थापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

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