पॉलीएथिलीन अथवा पॉलिथीन एक तरह का प्लास्टिक है जो हमारे दिनचर्या में इस कदर समा गया है कि इससे शीघ्र छुटकारा संभव प्रतीत नहीं होता। पॉलिथीन की थैलियां सुविधाजनक तो हैं ही इनकी कीमत भी अपेक्षाकृत बहुत कम है। अनेक तरह की प्लास्टिक जैसे पॉलीएथिलीन, पॉलिप्रोपिलीन, पॉलीकार्बोनेट, पाली एथिलीन टेरेप्थालेट इत्यादि से पॉलिथीन की थैलियां और प्लास्टिक बोतलें आदि घरेलू उपयोग की चीजें बनाई जाती है। अब तक उपलब्ध पॉलिथीन की थैलियों का कोई भी विकल्प कीमत के दृष्टिकोण से पॉलिथीन की थैलियों की बराबरी नहीं करता। सस्ता और इस्तेमाल में सुविधाजनक होने के कारण प्लास्टिक थैलियों का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ता गया और अब जब इसकी खपत बहुत अधिक बढ़ गई तो प्लास्टिक की अत्याधिक बढ़ी हुई मात्रा के कारण अनेक प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं खड़ी हो रही है।
सस्ते दर पर मिलने वाली, प्लास्टिक की थैलियों की चादरें मोटाई में 20 माइक्रोन या उससे कम की होती है। व्यवहार करके फेंक दी जाने वाली इन थैलियों से जल निकास की प्रणालियां बंद हो जाती हैं।
इस कारण जल निकास की क्षमता प्रभावित होती है। नालियों में जलजमाव के कारण गंदा पानी चारों ओर फैल जाता है और वर्षा ऋतु में बाढ़ की समस्या भी होती है।
पॉलिथीन का कोई विकल्प जो पर्यावरण के अनुकूल हो, तथा पॉलिथीन की कीमत पर उपलब्ध हो, अब तक सामने नहीं आ पाया है। जूट की थैलियां, कॉटन की थैलियां, कागज की थैलियां आदि पॉलिथीन थैलियों के विकल्प के रूप में सामने रखी गई हैं। किंतु इनमें से कोई भी पॉलिथीन से सस्ती नहीं है और पॉलीथिन के समान सुविधाजनक भी नहीं है।
पॉलिथीन का अधिकतम इस्तेमाल थैलियों के रूप में होता है। पॉलिथीन की पतली शीट से बनी थैलियां पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।
पॉलिथीन रेसिंन जिससे पॉलिथीन थैलियां बनती हैं का वैश्विक उत्पादन करीब 100 मिलियन टन प्रतिवर्ष है। विश्व में बहुत तरह की प्लास्टिक बनाइ जाती हैं उनमें पॉलिथीन का उत्पादन करीब 34 प्रतिशत है।
पॉलीथिन का रासायनिक संगठन (C2H4)n है।
यह 115–135 °C पर पिघलती है।
पॉलिथीन का घनत्व 0.88–0.96 g/cm3 होता है।
सभी तरह की प्लास्टिक पर्यावरण के लिए हानिकारक है। प्लास्टिक का जैव-अपघटन ( biodegradation ) नहीं होता। इस कारण प्लास्टिक बहुत लंबे समय तक पर्यावरण में पड़ी रहती है।
मिट्टी और पानी में पड़े प्लास्टिक का धीरे धीरे क्षरण होता रहता है। प्लास्टिक के क्षरण से हानिकारक जहरीली रसायन पर्यावरण में घुलती रहती है । इससे भूमि पर और जल में रहने वाले जीव जंतुओं का नुकसान होता है। अंततः प्लास्टिक महीन टुकड़ों में टूट जाती है, जिसे जीव जंतुओं द्वारा खा लिया जाता है। इस प्रकार जीव जंतुओं के शरीर में प्लास्टिक रूपी अजैविक पदार्थ इकट्ठा होने से उनकी मृत्यु भी हो जाती है।
प्लास्टिक के जलने से विषाक्त धूआं उत्पन्न होता है जो हवा को प्रदूषित कर देता है।
क्लोरिनेटेड प्लास्टिक से जहरीले रसायन निकलते हैं जो पर्यावरण प्रदूषित करते हैं।
प्लास्टिक जमा होने से जीव जंतुओं का पर्यावास प्रदूषित हो जाता है।
प्लास्टिक का उपयोग जैविक पदार्थों की तुलना में काफी सस्ता पड़ता है। इसे बनाना आसान है। इसका घनत्व कम होने से बहुत थोड़े वजन के प्लास्टिक में ज्यादा सामान पैक किया जा सकता है। यह वर्षा पानी और हवा के प्रभाव में जल्दी नष्ट नहीं होता। इसमें रखी गई सामग्री हवा पानी एवं कीटों से सुरक्षित रहती है। हल्का वजन होने से इसका परिवहन भी कम खर्चीला एवं आसान है।
सुविधाजनक होने के कारण प्लास्टिक हमारे दिनचर्या में अपना स्थान बनाता चला गया। किंतु प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग मानव स्वास्थ्य के लिए समस्या खड़ी कर रहा है। प्लास्टिक का उपयोग हमारे लिए सही नहीं है। खासकर खाद्य सामग्री को प्लास्टिक में रखने से यथासंभव बचना चाहिए। प्लास्टिक से क्षरित हुए महीन कण तथा प्लास्टिक में मौजूद रसायन खाद्य सामग्री में अल्प मात्रा में घुल मिल जाते हैं। और भोजन के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। शरीर के अंदर गए प्लास्टिक और प्लास्टिक के रसायन से अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं उठ खड़ी होती हैं। मुख्य है अंतः स्रावी ग्रंथियों की गड़बड़ी। पाचन से संबंधित समस्या। असामान्य हारमोंस श्राव की समस्या। मोटापा की समस्या आदि। इसके अलावे प्लास्टिक को कैंसर का भी एक कारण माना गया है।
प्लास्टिक से उत्पन्न सभी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कई गुना वृद्धि हो जाती है जब हम प्लास्टिक में गर्म खाना रखते हैं, प्लास्टिक कप में गर्म चाय पीते हैं अथवा प्लास्टिक के प्लेट पर गर्म खाना खाते हैं।
प्लास्टिक के जलने से वायु प्रदूषित होती है। प्लास्टिक के जलने से कई हानिकारक गैसें निकलती हैं जैसे डायोक्सिंस (dioxins), फ्यूरेंस (furans), पारे की गैस (mercury) और पॉलीक्लोरिनेटेड बायफिनायल्स (polychlorinated biphenyls, BCPs) आदि आदि।
इस कारण प्लास्टिक जलाना बहुत हानिकारक है। एक अध्ययन के अनुसार विश्व में नगरपालिका के ठोस कचरे का लगभग 40% जल जाया करता है और इसका लगभग 12% प्लास्टिक कचरा होता है। स्पष्ट है कि प्लास्टिक के जलने से वायुमंडल में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है।
प्लास्टिक कचरे को खुले में जलाने से बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण होता है।
प्लास्टिक अनेक तरह के होते हैं। अलग-अलग प्लास्टिक के गुणधर्म भी अलग-अलग होते हैं। प्लास्टिक की बनावट के आधार पर पॉलिप्रोपिलीन ( polypropylene ), पालीएथिलीन ( polyethylene), पाली एथिलीन टेरेप्थालेट
(polyethylene terephthalate,), पॉलीकार्बोनेट ( polycarbonate ) आदि आदि अनेक प्रकार के प्लास्टिक होते हैं और इनमें कई तरह के रसायन मिले हुए होते हैं जैसे प्लास्टिसाइजर (plasticizers), एंटीऑक्सीडेंट्स (antioxidants), अनेक तरह के रंगों के रसायन आदि।
डायोक्सीन को परसिस्टेंट ऑर्गेनिक पोल्यूटेंट्स (persistent organic pollutants - pop)कहा जाता है। प्लास्टिक के जलने से हवा में धूए के साथ यह जहरीला रसायन दूर-दूर तक फैल जाता है और अंततः वनस्पतियों पर तथा जल स्रोतों में जमा होता जाता है। वनस्पतियों और जल के साथ यह रसायन हमारे भोजन में आ जाता है और भोजन से हमारे शरीर में प्रवेश करता है।
डैक्सीन हमारे स्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, अंतःस्रावी ग्रंथियों जैसे थायराइड आदि पर बुरा प्रभाव डालता है और इस रसायन को कैंसर का एक कारण बताया गया है।
प्लास्टिक जलने से उत्पन्न धूएं के कारण स्वसन तंत्र के रोग जैसे अस्थमा , निमोनिया आदि होने का खतरा रहता है। इससे जलन , वमन और सिरदर्द होने की संभावना होती है तथा तंत्रिका तंतुओं को क्षति पहुंचती है।
प्लास्टिक के जलने से पैदा होने वाले फ्यूरन्स ट्यूमर पैदा करते हैं।
स्पष्ट है कि प्लास्टिक से प्रमुख दो नुकसान हैं।
१. प्लास्टिक को गर्म करने तथा जलाने से हानिकारक रसायन निकलते हैं।
२. यत्र तत्र फेंक देने से प्लास्टिक जल मार्गों को अवरुद्ध कर जीवो के पर्यावास में बाधा डालती है।
प्लास्टिक की थैलियां बनाने के लिए मुख्य रूप से निम्नांकित किस्म के प्लास्टिक व्यवहार में लाए जाते हैं।
H.D.P.E . - High density polyethylene.
L.D.P.E. - low density polyethylene.
L.L.D.P.E. - linear low density polyethylene.
M.D.P.E.- medium density polyethylene.
P.P. - polypropylene.
गर्भवती महिलाओं को प्लास्टिक के व्यवहार से यथासंभव बचना चाहिए। क्योंकि प्लास्टिक के रसायन गर्भनाल ( प्लासेंटा ) से होते हुए गर्भ तक पहुंच जाते हैं और गर्भस्थ शिशु के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
प्लास्टिक के रसायन एक आध बार शरीर के अंदर जाने पर कोई स्पष्ट प्रतिकूल प्रभाव नहीं छोड़ते परंतु बार-बार सेवन करने पर इनका प्रतिकूल प्रभाव स्पष्ट हो जाता है।
प्लास्टिक में पाए जाने वाले दो रसायन थैलेट्स (phthalates) और बिस्फेनॉल (bisphenol) जीव जंतुओं पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं। इन रसायनों के लंबे अर्से तक सेवन से अंतः स्रावी ग्रंथियां बुरी तरह प्रभावित होती है। और नतीजन हार्मोन असंतुलन हो जाता है।
थैलेट्स
थैलट्स प्लास्टिसाइजर रसायन हैं जो मुख्यत: जनन तंत्र के विकार पैदा करने वाले रसायन माने जाते हैं। थैलेट्स रसायन का व्यवहार विनाइल प्लास्टिक को नरम और लचीला बनाने के लिए किया जाता है।
थैंलेट्स का व्यवहार मुख्य रूप से खिलौने एवं खाद्य तथा चिकित्सा उपकरण बनाने में होता है। सौंदर्य प्रसाधनों में भी इनका इस्तेमाल बहुतायत से होता है।विनाइल प्लास्टिक से बने सामग्री में इनका व्यवहार प्रमुखता से किया जाता है।
बी.पी.ए. या बिस्फेनॉल ए (Bisphenol A)
बिस्फेनाल प्रजनन तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
इसका व्यवहार मुख्यत: पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक में होता है। यह प्लास्टिक में कठोरता पैदा करता है।
बीपीए के अलावे प्लास्टिक में मिलाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स तथा रंगों के सिंथेटिक रसायन भी जीवो पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
प्लास्टिक से बने बर्तनों में रखे खाने को गरम करना बहुत नुकसान दायक हो सकता है क्योंकि प्लास्टिक रसायन गर्म खाने में आसानी से घुल जाते हैं।
प्लास्टिक का उपयोग इतने बड़े स्तर पर और इतने विविध कार्यों के लिए किया जा रहा है की एकाएक प्लास्टिक का उत्पादन ठप कर देना संभव नहीं दिखता। अतः जब तक कोई योग्य विकल्प सामने नहीं आता तब तक प्लास्टिक का उत्पादन बंद करना समीचीन नहीं है। चिकित्सीय उपकरण, वाहन, जहाज, उपभोक्ता वस्तुएं, प्रसाधन आदि के उपकरण, पैकिंग मैटेरियल आदि आदि के विकल्प खोजे बिना प्लास्टिक पर बैन नहीं लगाया जा सकता। हां इसके उपयोग को नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है और नियंत्रित किया जाना भी चाहिए।
हमारे देश में करीब 6200000 टन कचरे प्रतिवर्ष उत्पन्न होता है इसका 20% ही रिसाइकल होता है यानी कि करीब 1200000 टन । शेष 5000000 टन कचरा भूमि और जल और हवा को प्रदूषित करता है और जीव जंतुओं का जीना दूभर कर देता है। प्लास्टिक कचरे का 50% सिर्फ प्लास्टिक पैकिंग से आता है । यदि पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल न किया जाए तो आधी समस्या का निदान हो जाएगा।
प्लास्टिक कचरे के निपटारे के उदाहरण के लिए पटना शहर का आंकड़ा देखिए। वर्ष 2016 में पटना शहर में प्लास्टिक की खपत के आंकड़े इस प्रकार हैं। 15,000 टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन प्रतिवर्ष हो रहा था। , इसमें से 900 टन प्लास्टिक कचरे का रिसाइकल किया जा रहा था। किंतु बचा हुआ 600 टन कचरा जल स्रोतों और भूमि को प्रदूषित कर रहा था।
प्लास्टिक आधुनिक जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है। प्लास्टिक से पूरी तरह छुटकारा पाना आसान नहीं है। प्लास्टिक के बहुत सारे उपयोगों के विकल्प नहीं बन पाए हैं। और जो विकल्प मौजूद हैं वे महंगे हैं और सुविधाजनक नहीं हैं। मसलन प्लास्टिक की थैलियों के स्थान पर कपड़े की थैलियों का व्यवहार महंगा है और अपेक्षाकृत कम सुविधाजनक है। यही हाल चिकित्सीय उपकरणों तथा पैकिंग सामग्री के लिए भी है।
इसलिए प्लास्टिक की समस्या का तात्कालिक समाधान संभव नहीं दिखता।
पॉलिथीन को सही तरीके से निपटा दिया जाए तो इसके दुष्प्रभावों से निजात पाई जा सकती है। प्लास्टिक का पुनर्व्यवहार (रीसायकल), करके हम प्लास्टिक के दुष्प्रभाव को बहुत हद तक कम कर सकते हैं। प्लास्टिक रीसायकल के बहुत सारे उद्योग लगे हुए हैं किंतु इन उद्योगों तक व्यवहार में लाए गए प्लास्टिक का लगभग 30 प्रतिशत प्लास्टिक ही पहुंच पाता है शेष प्लास्टिक कूड़े करकट के रूप में भूमि पर और जलाशयों में पड़ा रहता है और पर्यावरण प्रदूषित करता है। जीव जंतुओं के पर्यावास में गंभीर कठिनाइयां खड़ी करता है।
यदि इस्तेमाल के बाद प्लास्टिक को फेंका नहीं जाए, उसे इकट्ठा करके रीसायकल कर लिया जाए तो पर्यावरण की बहुत बड़ी सेवा होगी।
जब तक प्लास्टिक स्टोर में पड़ी है तब तक उससे कोई नुकसान नहीं। जब तक प्लास्टिक घरों में पड़ा है तब भी उससे कोई खास नुकसान नहीं है। प्लास्टिक से नुकसान शुरू होता है उसे फेंक दिए जाने के बाद। प्लास्टिक की थैलियों में जूठन खाना कभी नहीं फेंकना चाहिए। मवेशी जूठन खाने के साथ-साथ प्लास्टिक भी खा जाते हैं और बीमार पड़ जाते हैं।
नगरपालिका के ठोस कचरे में करीब 12% प्लास्टिक होता है। और विश्व में म्युनिसिपल ठोस कचरे का लगभग 40% आग से प्रतिवर्ष जलता है।
प्लास्टिक कचरे के रीसाइकिल होने में मुख्य बाधा लागत खर्च की है। अलग-अलग तरह की प्लास्टिक को छांटना और सफाई करने में काफी मजदूरी खर्च आता है। आर्थिक रूप से ज्यादा लाभकारी नहीं होने के कारण रीसायकल उद्योग पनप नहीं पाया है। इस कारण प्लास्टिक का रिसाइकल पूरी तरह से नहीं हो पाता।
प्लास्टिक से सिर्फ नुकसान हो ऐसी बात नहीं इसके कुछ फायदे भी गिनाए जाते हैं।
सामान ढोने की थैलियों और पैकिंग के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त पदार्थ है। इसके अलावा यह कार्बन पृथक्करण (कार्बन सीक्वेस्टेशन) का एक अच्छा जरिया है। कार्बन जीवतंत्र में एक महत्वपूर्ण तत्व है। किंतु गैस के रूप में वायुमंडल में उपस्थित कार्बन ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है। यदि वायुमंडल में कार्बन की गैसों की मात्रा बढ़ेगी तो उसी अनुपात में ग्लोबल वार्मिंग ज्यादा होगा। जैविक पदार्थों में कार्बन प्रमुखता से होता है। जैविक पदार्थों के अपघटन से कार्बन की गैस वापस हवा में घुलती हैं। प्लास्टिक में भी कार्बन प्रमुखता से होता है किंतु प्लास्टिक का जैविक अपघटन नहीं होता इस कारण यह बहुत लंबे समय तक यूं ही पड़ा रहता है और इसमें वर्तमान कार्बन भी गैस में बदल नहीं पाता। कार्बन को किसी पदार्थ में संग्रहित कर अथवा जमीन के अंदर दबा देना कार्बन पृथक्करण (कार्बन सीक्वेस्टेशन) कहलाता है। इस प्रकार पृथक कर दिए गए कार्बन से ग्लोबल वार्मिंग में कमी आती है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्लास्टिक ग्लोबल वार्मिंग घटाने में सहायक है।
चुकी प्लास्टिक जैविक अपघटन से नष्ट नहीं होता इसलिए यह अपघटित हो कर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता। इस तरह से जैविक कचरे की तुलना में प्लास्टिक कचरा ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहायक है।
प्लास्टिक से प्रदूषण की समस्या "उपयोग करो और फेंको" के संस्कार के कारण होरही है। उपयोग करो और फेंको धीरे-धीरे सामाजिक चरित्र बनता जा रहा है। यदि इस चरित्र में सुधार लाया जाए और उपयोग किए गए प्लास्टिक को न फेंकने की आदत बना ली जाए। उपयोग किए गए प्लास्टिक को इकट्ठा करके कचरे वाले के मार्फत रिसाइकल के लिए भेज दिया जाए तो काफी हद तक प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निजात पाई जा सकती है।
प्लास्टिक को यूं ही जहां-तहां फेंकने से ही पर्यावरणीय समस्याएं खड़ी होती है। यह हमारी आदत बन गई है की उपयोग करके प्लास्टिक की थैलियों को यत्र तत्र फेंक देना। यह गैर जिम्मेदाराना हरकत है। समाज में लोगों को इस बारे में जागरूक करना बहुत आवश्यक है। यदि प्लास्टिक को फेंकने के बजाय इकट्ठा करने की सामाजिक चरित्र बनाई जाए तो बहुत हद तक प्लास्टिक की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
वैधानिक प्रावधान बनाकर प्लास्टिक बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले हानिकारक रसायनों का व्यवहार बंद कराया जा सकता है। लेकिन ऐसा कर दिए जाने के बावजूद भी प्लास्टिक का उपयोग निरापद नहीं होगा। ऐसी स्थिति में हमें अपने बचाव के लिए अपने स्तर से कुछ प्रयास करने होंगे।
१. प्लास्टिक का न्यूनतम व्यवहार करें. संकल्प लें की यथासंभव प्लास्टिक का व्यवहार नहीं करेंगे।
२. यदि परिस्थिति वश प्लास्टिक का इस्तेमाल करना भी पड़े तो प्लास्टिक का निपटारा उसका पुनर्उपयोग (Recycling) करके करेंगे।
३. यदि प्लास्टिक की थैली का इस्तेमाल करना परिस्थितिवश अपरिहार्य हो जाए तो 50 माइक्रोन से ज्यादा मोटाई वाले प्लास्टिक की थैलियों का व्यवहार करेंगे। पोस्टकार्ड या मोटे पेपर जितनी मोटाई वाले प्लास्टिक की थैलियां 50 माइक्रोन से ऊपर की होती हैं।
४. मोटी थैलियों के लिए दुकानदार थैलियों की कीमत लेते हैं क्योंकि मोटी थैलियां महंगी होती है। एक दो रुपए ज्यादा लगने पर भी 50 माइक्रोन से ज्यादा मोटी थैलियों का ही व्यवहार करना चाहिए।
५. कूड़े में जाने वाले उच्छिष्ट खाद्य पदार्थ के साथ प्लास्टिक थैलियों को कभी नहीं फेंकेंगे। क्योंकि खाद्य पदार्थ के साथ साथ प्लास्टिक की थैलियों को भी पशु खा जाएंगे और उनका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा । उनकी जान भी जा सकती है।
६. बेकार पड़ी प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल घर पर ही किसी अन्य कार्य के लिए करने का प्रयास करेंगे। उदाहरण के लिए बेकार पड़ी प्लास्टिक की थैलियों में मिट्टी डालकर पौधे उगाए जा सकते हैं। किचन में थोड़ी मात्रा में उपयोग आने वाले मसाले जैसे हरी मिर्च धनिया पुदीना करी पत्ता आदि आदि को सफलतापूर्वक प्लास्टिक की थैलियों में मिट्टी डालकर उगाया जा सकता है।
७. बेकार हो गई प्लास्टिक की थैलियों को जमा करें और उन्हें रद्दी वालों को दे दें ताकि उसका रीसायकल हो सके।
८. रद्दी प्लास्टिक की थैलियों को जलाएंगे नहीं क्योंकि इससे वायु प्रदूषण होता है।
९. अपनी जेब में रुमाल की तरह एक छोटी कपड़े की थैली रखें। प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल ना करें।
१०. कभी भी गर्म खाना या चाय के लिए प्लास्टिक के बर्तनों में उपयोग ना करें।
११. पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक शीट का व्यवहार यथासंभव ना करें।
१२. सभी दुकानदार निर्धारित मोटाई की ही प्लास्टिक का व्यवहार करें तथा प्लास्टिक बैग की कीमत ग्राहक से अवश्य लें।
१३. प्लास्टिक के पुनर्व्यव्यवहार (रीसाइकिल) को बढ़ावा दें।
१४. प्रायः देखने में आता है कि सामाजिक समारोहों आदि के उपरांत प्लास्टिक कचरा समारोह स्थल पर पड़ा रहता है इससे प्रदूषण बढ़ता है। वैधानिक प्रावधान किए गए हैं कि समारोह के प्रबंधक दायित्वपूर्वक कचरे का निपटान करें।
१५. यदि घर में अधिक प्लास्टिक की थैलियां जमा हो जाएं और रीसाइकिल के लिए भेजना संभव ना हो पाए तो एकत्रित प्लास्टिक को कसकर बांधें, और उसे मिट्टी में गहरे दबा दें। यह एक छोटे स्तर पर कार्बन पृथक्करण (कार्बन सीक्वेस्टेशन) होगा। ध्यान रखें प्लास्टिक को जलाना नहीं है।
लेखक सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पर्यावरण प्रमुख हजारीबाग।
संदर्भ:
* हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, Is plastic a threat to your health? Heating plastics in the microwave may cause chemicals to leach into your foods. Published: December, 2019
Harvard Women's Health Watch
* Rutan poly industries, inc. - Different types of plastic bags.
global plastic sheeting.
* Times of India. NewsTimes
Food. APRIL 10, 2016 CITY- Minimum thickness of plastic carry bags increased from 40 to 50 microns. Pranava Kumar Chaudhary | Updated: Apr 10, 2016,
* Waste Management: How India Is Drowning In Garbage. By Anisha Bhatia
August 11, 2017 . Independence Day, News, Waste Management.
Toxic Pollutants from Plastic Waste – A Review.
* UN environment program.
02 MAY 2019
Plastic bag bans can help reduce toxic fumes.
* world health organisation articleDioxins and their effects on human health 4 October 2016
WSJ / openion - Plastic Bags Help the Environment - Banning them provides no benefit other than to let activists lord their preferences over others.
By - John Tierney. Feb. 18, 2020.